हफ्ते का खास दिन

By: Feb 12th, 2017 12:05 am

सरोजिनी नायडू

जन्मदिन  13 फरवरी,1879

सरोजिनी के लिए गणित के सवालों में मन लगाने के बजाय एक कविता लेख लिखना ज्यादा आसान था। सरोजिनी ने महसूस किया कि वह अंग्रेजी भाषा में भी आगे बढ़ सकती है और पारंगत हो सकती हैं। उन्होंने अपने पिताजी से कहा कि वह अंग्रेजी में आगे बढ़ कर दिखाएगीं…

सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में हुआ था। श्री अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और वरदा सुंदरी की आठ संतानों में वह सबसे बड़ी थीं। अघोरनाथ एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे। वह कविता भी लिखते थे। माता वरदा सुंदरी भी कविता लिखती थीं। अपने कवि भाई हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय की तरह सरोजिनी को भी अपने माता-पिता से कविता, सृजन की प्रतिभा प्राप्त हुई थी। अघोरनाथ चट्टोपाध्याय ‘निजाम कालेज’ के संस्थापक और रसायन वैज्ञानिक थे। वह चाहते थे कि उनकी पुत्री सरोजिनी अंग्रेजी और गणित में निपुण हों। वह चाहते थे कि सरोजिनी जी बहुत बड़ी वैज्ञानिक बनें। यह बात मनवाने के लिए उनके पिता ने सरोजिनी को एक कमरे में बंद कर दिया। वह रोती रहीं। सरोजिनी के लिए गणित के सवालों में मन लगाने के बजाय एक कविता लेख लिखना ज्यादा आसान था। सरोजिनी ने महसूस किया कि वह अंग्रेजी भाषा में भी आगे बढ़ सकती हैं और पारंगत हो सकती हैं। उन्होंने अपने पिताजी से कहा कि वह अंग्रेजी में आगे बढ़ कर दिखाएंगी। थोड़े ही परिश्रम के फलस्वरूप वह धाराप्रवाह अंग्रेजी भाषा बोलने और लिखने लगीं। उस समय लगभग 13 वर्ष की आयु में सरोजिनी ने 1300 पदों की ‘झील की रानी’ नामक लंबी कविता और लगभग 2000 पंक्तियों का एक विस्तृत नाटक लिखकर अंग्रेजी भाषा पर अपना अधिकार सिद्ध कर दिया। अघोरनाथ सरोजिनी की अंग्रेजी कविताओं से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एस चट्टोपाध्याय कृत ‘पोयम्स’ के नाम से सन् 1903 में एक छोटा-सा कविता संग्रह प्रकाशित किया।

भाषा

सरोजिनी चट्टोपाध्याय ने अपनी माता वरदा सुंदरी से बंगला सीखी और हैदराबाद के परिवेश से तेलुगु में प्रवीणता प्राप्त की। वह  शब्दों की जादूगरनी थीं। शब्दों का रचना संसार उन्हें आकर्षित करता था और उनका मन शब्द जगत में ही रमता था। वह बहुभाषाविद थीं। वह क्षेत्रानुसार अपना भाषण अंग्रेजी, हिंदी, बंगला या गुजराती भाषा में देती थीं। लंदन की सभा में अंग्रेजी में बोलकर उन्होंने वहां उपस्थित सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था।

शिक्षाः बारह साल की छोटी सी उम्र में ही सरोजिनी ने मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी और मद्रास प्रेसिडेंसी में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद उच्चतर शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया, जहां उन्होंने क्रमशः लंदन के ‘किंग्ज कालेज’ में और उसके बाद ‘कैंब्रिज के गर्टन कालेज’ में शिक्षा ग्रहण की। कालेज की शिक्षा में सरोजिनी की विशेष रुचि नहीं थी और इंग्लैंड का ठंडा मौसम भी उनके स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं था। वह स्वदेश लौट आईं।

कविता में उड़ानः यद्यपि सरोजिनी इंग्लैंड में दो साल तक ही रहीं किंतु वहां के प्रतिष्ठित साहित्यकारों और मित्रों ने उनकी बहुत प्रशंसा की। उनके मित्र और प्रशंसकों में ‘एडमंड गॉस’ और ‘आर्थर सिमन्स’ भी थे। उन्होंने किशोर सरोजिनी को अपनी कविताओं में गंभीरता लाने की राय दी। वह लगभग बीस वर्ष तक कविताएं और लेखन कार्य करती रहीं और इस समय में, उनके तीन कविता-संग्रह प्रकाशित हुए। उनके कविता संग्रह ‘बर्ड ऑफ टाइम’ और ‘ब्रोकन विंग’ ने उन्हें एक प्रसिद्ध कवयित्री बना दिया।

 भारतीय और अंग्रेजी प्रथम कविता-संग्रह

सरोजिनी के प्रथम कविता-संग्रह ‘द गोल्डन थ्रेशहोल्ड’ 1905 में बहुत ही उत्साह के साथ पढ़ा गया। सरोजिनी को एक सक्षम, होनहार और नवोदित कवयित्री के रूप में सम्मानित किया गया। इंग्लैंड के बड़े-बड़े अखबारों ‘लंदन-टाइम्स’ और ‘द मेंचैस्टर गार्ड्यन’ में इस कविता-संग्रह की प्रशंसा युक्त समीक्षा, लिखी गईं। ‘द गोल्डन थ्रेशहोल्ड’ के बाद ‘बर्ड ऑफ टाइम’ नामक संग्रह सन् 1912 में प्रकाशित हुआ। सरोजिनी नायडू की जब 2 मार्च सन् 1949 को मृत्यु हुई, तो उस समय वह राज्यपाल के पद पर थीं, लेकिन उस दिन मृत्यु तो केवल देह की हुई थी। अपनी एक कविता में उन्होंने मृत्यु को कुछ देर के लिए ठहर जाने को कहा था।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App