हर दिन खुलता है जीवन का लिफाफा

By: Feb 1st, 2017 12:05 am

सपने देखना एक खुशगवार तरीके से भविष्य की दिशा तय करना ही तो है। किसी भी उम्र के मन में सपनों की विविधता या विस्तार उसके महान या सफल होने का दिशा सूचक है। स्वप्न हर उम्र का व्यक्ति संजोता है, जो बहुत आवश्यक है…

उम्र के हर लम्हे को जी भर कर जीना चाहिए और उनमें सपनों के रंगों की तरह रंग भरने चाहिए। हर पीढ़ी सपने देखती है और उन सपनों में जिन्दगी के रंग भरती है। ढलती उम्र के साथ विश्वास भी ढलने लगता है, लेकिन कुछ जीनियस होते हैं, जो ढलती उम्र को अवरोध नहीं बनने देते। वे अकसर एक कदम आगे की एवं नयेपन की सोचते हैं। इसी नए के प्रति उनके आग्रह में छिपा होता है विकास का रहस्य। कल्पनाओं की छलांग या दिवास्वप्न के बिना हम संभावनाओं के बंद बैग को कैसे खंगाल सकते हैं। सपने देखना एक खुशगवार तरीके से भविष्य की दिशा तय करना ही तो है। किसी भी उम्र के मन में सपनों की विविधता या विस्तार उसके महान या सफल होने का दिशा सूचक है। स्वप्न हर उम्र का व्यक्ति संजोता है, जो बहुत आवश्यक है। खुली आंखों के सपने जो हमें अपने लक्ष्य का गूढ़ नक्शा देते हैं। अकसर लोग स्वप्नशील लोगों पर हंसते हैं, लेकिन स्वप्नशील लोग ही सफल होते हैं। इसलिए सपनों की महत्ता पर यकीन करना ही चाहिए। शेख सादी ने बहुत मार्मिक कहा है कि जो व्यक्ति विवेक के नियम को तो सीख लेता है पर उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारता वह ठीक उस किसान की तरह है, जिसने अपने खेत में मेहनत तो की है पर बीज बोए ही नहीं। इसलिए जीवन को संवारने एवं उपयोगी बनाने के लिए हर लम्हे को जीना जरूरी है। यह सच है कि हर दिन के साथ जीवन का एक नया लिफाफा खुलता है, नए अस्तित्व के साथ, नए अर्थ के साथ, नई शुरुआत के साथ। हर आंख देखती है इस संसार को अपनी ताजगी भरी नजरों से। गायक बनने की इच्छा रखने वाला करोड़ों दर्शकों के सामने गीत गाने का ख्वाब बुनता रहता है। दुनिया जीत लेने की चाहत हर इनसान की होती है। यह तो है सकारात्मक मन की उड़ान, सपनों का संसार। एक चित्रकार रंगों से, लेखक शब्दों से, संगीतकार धुनों से और अभिनेता भावों से अपने संसार को रचता है, उसमें रंग भरता है। उन्नत विचारों का जो बीज बो दें, तो वही उग आता है। कुछ लोग विजनरी होते हैं, वे जानते हैं स्वप्नों का महत्व। डा. एपीजे अब्दुल कलाम के कहे अनुसार ‘सपने वे नहीं जो नींद में लिए जाएं बल्कि सपने वे होते हैं जो सोने नहीं देते।’ अर्नाल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक सर्वाइविंग द फ्यूचर में सलाह देते हुए लिखा है ‘मरते दम तक जवानी के जोश को कायम रखना’। होता यही है कि उम्र के हर मोड़ पर हम जो मूल्य बनाते हैं, दिमाग में अच्छे विचारों के बीज बोने की क्षमता को विकसित रखते हैं, उसी से जीवन सफल और सार्थक होता है। आज इस सोच का सर्वथा अभाव है। इसीलिए उम्रदराज लोग निष्क्रिय हो जाते हैं, जीवन से पलायन की सोच उनमें घर कर जाती है। आखिर क्यों बढ़ती उम्र को हथियार बनाकर निष्क्त्रियता एवं अकर्मण्यता को जीने की होड़ पनप रही है। क्यों इस उम्र में आराम करने की उम्र के रूप में जीने की मानसिकता पनप रही है।

-ललित गर्ग, पटपड़गंज, दिल्ली


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