हाब्बन में लहसुन का उत्पादन घटा
हाब्बन – क्षेत्र की नकदी की प्रमुख लहसुन की खेती का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है। लहसुन की क्षेत्र में वर्ष 1995 से खेती हो रही है। इससे पहले लहसुन रेणुका तहसील के घंडूरी ग्राम में वर्ष 1985 से उपजाया जा रहा था। उस समय लहसुन का बीज 20 से 30 रुपए प्रतिकिलो लिया जाता था व इसकी बिक्री 40 से 50 रुपए प्रतिकिलो होती थी। एक बीघा भूमि में 100 किलो बीज लगता था व पैदावार आठ से दस गुणा होती थी। घंडूरी ग्राम के बाद राजगढ़, पझौता, काटली, शावगा आदि के लोगों ने लहसुन की खेता अपनाई। इस नकदी फसल ने गांव के लोगों की आर्थिकी में अत्याधिक बढ़ोतरी की। लगातार उस समय से क्षेत्र में लहसुन की एकमात्र ऐसी फसल बन गई जिसने हर परिवार की दशा में परिवर्तन किया। अब यह खेती सड़न व थ्रीफ्स की बीमारी से लगातार कुछ वर्षों से प्रभावित हो रही है, जिस कारण अब प्रति बीघा लहसुन की पैदावार गिरकर चार से पांच गुणा रह गई है। लहसुन की फसल ऐसी फसल है जो वर्ष के पूरे 10 मास में तैयार होती है। यानी केवी एक ही फसल खेत में पूरे वर्ष में आती है। हरवर्ष अच्छे दाम मिल जाते हैं। लहसुन की खेती पिछले लगभग 22 वर्षों में मात्र वर्ष 2006-07 में बिक्री नहीं हो पाई। उस वर्ष लोगों ने लहसुन बिक्री न होने से फेंक दिया था, परंतु बार-बार इसके पैदा किए जाने से अब इस फसल का उत्पादन अत्याधिक घट रहा है। लहसुन उत्पादक सुभाष कुन्हाल, दुर्गा दत्त, अमित, टीटा, देवू आदि ने बताया कि वर्तमान में लहसुन की खेती में जो बीमारियां लग रही हैं उसका कारण एक ही फसल को लगातार लगाए जाने के कारण हैं। इन लोगांे ने बताया कि बीमारी की रोकथाम के लिए काफी दवाएं प्रयोग की जा रही हैं, परंतु हर वर्ष बीमारी बढ़ती जा रही है। इससे अब किसानों में डर पैदा हो चुका है कि वह दिन दूर नहीं जब क्षेत्र की यह नकदी की फसल क्षेत्र से मुंह मोड़ देगी। बेशक गत वर्ष लहसुन 150 रुपए किलो तक बिका, परंतु उत्पादन लगातार घटन से यह नकदी फसल अब कमाऊ फसल नहीं रह गई। किसानांे को अब फसल बदलाव करना पड़ेगा।
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