आजादी के बाद भी अंधेरे में कैद कुल्लू का शाक्टी-मरोड़ गांव

By: Mar 2nd, 2017 12:04 am

NEWSकुल्लू— भारत आजाद होने के बाद से देश भर में बदलाव देखने को मिला है। डिजिटल इंडिया की बात देश में हो रही है, लेकिन कुल्लू-मनाली का एक गांव ऐसा भी है, जहां आज तक बिजली नहीं पहुंच पाई। यह गांव आजाद भारत में आज भी अंधेरे की दीवारों में कैद है। यह उस राज्य का हाल है, जो बिजली राज्य के नाम से मशहूर है। हम बात कर रहे हैं जिला के शाक्टी-मरोड़ गांव की, जो आजादी के बाद भी अंधेरे की जंजीरों से आजाद नहीं हो पाया। विभाग के अधिकारियों की मानें तो वन विभाग की अनुमति न मिलने से यहां बिजली की लाइन नहीं पहुंच पा रही है। करीब 14 किलोमीटर घना जंगल होने के चलते कार्य रुका हुआ है। हालांकि गांव को 38 सोलर लाइटें बांटी गई थीं, लेकिन वह भी अब दम तोड़ चुकी हैं। सात साल से गांव में बांटी गई ये सोलर लाइटें बंद हैं, जो कि अब पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं। लोगों का कहना है कि बिजली न होने से ग्रामीणों को काफी दिक्कत झेलनी पड़ती है। खासतौर पर स्कूली छात्रों को, जब उन्हें पढ़ाई करने के लिए रोशनी की कमी खलती है। यही नहीं, गांव में अभी तक प्रदेश सरकार की योजनाओं का बखान तक नहीं हुआ है। लोगों को पता ही नहीं है कि सरकार ने जनता की सुविधा के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चला रखी हैं। पंचायत प्रधान की मानें तो चुनावों के समय राजनेता उन्हें कई तरह के प्रलोभन देते हैं, जिससे उन्हें विश्वास हो जाता है कि कोई न कोई जरूर उनके गांव तक बिजली पहुंचाएगा, सड़क सुविधा से जोड़ेगा, लेकिन जो भी वादे चुनावों के समय हुए हैं, वे अभी तक पूरे नहीं हुए है। गांववासियों के सब्र का बांध टूटता जा रहा है और उन्होंने दो टूक कह दिया है कि गांव में विकास कार्य नहीं हुए तो वे आने वाले चुनावों का बहिष्कार करेंगे।

कोई अधिकारी-नेता सुध लेने नहीं आता

उपायुक्त के साथ जिला रेडक्रॉस सोसायटी की  बैठक में सोसायटी के सदस्य महेंद्र पालसरा ने गांव की समस्या से अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि गांव की सुध लेने कोई नहीं आता है। गांव में बहुत से जरूरतमंद लोग हैं। कई बुजुर्ग व नेत्रहीन बच्चे हैं, जो मदद के लिए तरस रहे हैं। ऐसे में सरकारी कैंप उनके गांव में लगाया जाए।

सरकारी कैंप तक नहीं लगा

सरकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की बात भले ही सरकार करती हो, लेकिन पंचायत में एक भी कैंप नहीं लगा है। ऐसे में गांववासियों तक योजनाओं की सही जानकारी नहीं पहुंच पाती है।


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