टीबी केस पकड़ने में हिमाचल देश में नंबर-दो पर
मंडी — टीबी (ट्यूबर क्लोसिस) के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में हिमाचल देश में अव्वल है। ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा’ के नारा का झंडा बुलंद किए हुए है। हिमाचल प्रदेश एक लाख की जनसंख्या पर 300 टीबी केस आइडंटिफाई कर रहा है, जबकि केरल में एक लाख की आबादी पर 309 मरीजों की पहचना की जा रही है। यह आंकड़ा इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार (डब्ल्यूएचओ) एक लाख की आबादी पर 357 लोगों की टीबी होने की संभावना है। ऐसे में सुखद पहलू यह है कि हिमाचल में उक्त आंकड़ों की पहचान हो रही है, जिससे कि मरीजों का इलाज समय पर शुरू हो पाता है। इस मामले में गोवा तीसरे नंबर, तो मणिपुर सबसे निचले पायदान पर है। टीबी पर जागरूकता के लिए अब पंचायती राज स्तर पर भी पहल शुरू कर दी। इसमें नोर्थ जोन स्टेट के करीब 200 मेडिकल कालेजों में हिमाचल की पीठ थपथपाई जा रही है। उधर, एनएचएम के निदेशक डा. हंस राज ने बताया कि अपने खर्चे पर न्यूटीशियन डाइट देने वाला हिमाचल पहला राज्य है। कई जगह और बेहतर करने के प्रयास जारी हैं। वहीं 2017 में अब तक प्रदेश में एमडीआर के 411 व एक्सडीआर के 14 मामले आए हैं। इसमें एमडीआर मरीजों के सबसे अधिक मामले कांगड़ा जिला में हैं, जहां 77 एमडीआर व तीन एक्सडीआर के मरीज हैं। लाहुल-स्पीति में कोई मामला सामने नहीं आया है। हिमाचल प्रदेश में जहां 2005 में टीबी मरीजों की संख्या 13697 थी वहीं अब 15137 हो गई है।
न्यूट्रीशियन डाइट देने में इकलौता राज्य
एमडीआर मरीजों को अपने खर्चे पर न्यूट्रीशियन डाइट देने वाला भी हिमाचल देश का इकलौता राज्य है। यही नहीं, हिमाचल सरकार ने टीबी के सभी मरीजों को भी न्यूट्रीशियन डाइट देने का ऐलान कर दिया है। इसके अलावा सीबीनेट (जीन एक्सपर्ट मशीन) हर जिला में लगाने वाला हिमाचल देश का पहला राज्य है।
टीबी की दवा न लेने पर आएगी कॉल
हिमाचल में जल्द दी टीबी मरीजों के लिए नई सुविधा शुरू की जाएगी। इसमें टीबी मरीजों को दी जाने वाली दवाओं पर बाकायाद सीरियल नंबर व अन्य तरह की व्यवस्था होगी। टीबी मरीज अगर दवा ले जाने के बाद उस दिन की डॉट नहीं खोलता है तो उसे संबंधित डॉट प्रोवाइडर की कॉल आ जाएगी। इसके अलावा अगर मरीज डॉट ले लेता है, तब वह डॉट प्रोवाइडर को मिस कॉल करेगा। इसकी खासियत यह है कि दवा खाई गई है या नहीं इस बात का पूरा रिकार्ड रहेगा।
2022 तक टीबी रोग से आजाद होगा प्रदेश
शिमला — हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2021-22 तक टीबी रोग से मुक्त हो जाएगा। राज्य में इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है और अगले वित्त वर्ष के बजट में इस रोग से लड़ने को मुख्यमंत्री क्षय रोग निवारण योजना की घोषणा की गई है, जो सीएम वीरभद्र सिंह ने की है। ये शब्द स्वास्थ्य मंत्री ठाकुर कौल सिंह ने शुक्रवार को आईजीएमसी में विश्व क्षय रोग दिवस के मौके पर कहे। वहीं कौल सिंह ठाकुर ने विश्व क्षय रोग दिवस के अवसर पर इंदिरा गांधी चिकित्सा महाविद्यालय शिमला में 21 देशों के 33 प्रतिभागियों और छात्रों द्वारा आयोजित जागरूकता रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस रैली में आईजीएमसी शिमला के चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी हिस्सा लिया। यह रैली ऐतिहासिक रिज मैदान पर संपन्न हुई। इस जागरूकता रैली में पीजीआई चंडीगढ़ के स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के अंतरराष्ट्रीय जन स्वास्थ्य प्रबंधन विकास कार्यक्रम के तहत अंतरराष्ट्रीय प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसका नेतृत्व पीजीआई चंडीगढ़ के चिकित्सा विशेषज्ञ डा. सोनू गोयल ने किया। इससे पूर्व आईजीएमसी शिमला में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कौल सिंह ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में 74 स्वास्थ्य ब्लॉक में 72 टीबी यूनिट्स हैं और 200 डायग्नोस्टिक माइक्रो स्कोपिक केंद्र हैं। प्रदेश में आईएमआर दर 28 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 37 व प्रदेश में सीएमआर दर 33, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 43 है। वहीं कौल सिंह ठाकुर ने आईजीएमसी में उपचाराधीन मरीजों का कुशलक्षेम जाना। इस अवसर पर विदेशी प्रतिभागी आरिफा व रवि पी, निदेशक चिकित्सा शिक्षा प्रो. अनिल चैहान, डा. बलदेव ठाकुर, प्रो. अशोक शर्मा, डा. रमेश चंद, प्रो. अनमोल गुप्ता, डा. आरके बारिया, डा. एके भारद्वाज, डा. संजय आदि मौजूद रहे।
अभी मिटानी होगी कई दिक्कतें
प्रदेश में डाक्टरों, फील्ड स्टाफ की कमी से कैसे दूर होगा क्षय रोग
मंडी — टीबी के खात्मे के लिए शुक्रवार को विश्व एकजुट था। हालांकि टीबी को जड़ से मिटाने के लिए हमें अभी लंबा समय तय करना पड़ेगा। हिमाचल प्रदेश में टीबी को रोकने के लिए बेहतर कार्य हो रहे हैं, लेकिन एक हकीकत यह भी है कि प्रदेश में टीबी चिकित्सकों व अन्य स्टाफ की कमी है। साथ ही टीबी फील्ड स्टाफ को बहुत कम मानदेय मिल पा रहा है। ऐसे में 15 सालों से भी ज्यादा सालों से अनबुंध आधार पर तैनात फील्ड स्टाफ में निराशा है। केंद्र द्वारा टीबी डाक्टर के लिए जहां 40 हजार रुपए मानदेय दिया जाता है, वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 26 हजार रुपए मानदेय दिया जा रहा है। राज्य में जहां टीबी से लड़ने के लिए देश में सबसे बेहतर मशीनें हैं, वहीं अब भी कुछ और मशीनों की आवश्यकता है, जिससे कि टीबी से लड़ा जा सकता है। एक तरफ प्रदेश सरकार 2021 तक टीबी के जड़ से खात्मे का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन जमीन स्तर पर पूरा काम नहीं हुआ तो यह टारगेट बहुत आगे खिसक सकता है। उधर, इस बारे में एनएचएम डायरेक्टर हंस राज ने बताया कि कुछ मामले सरकार के पास विचाराधीन हैं। टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है।
स्टाफ को टीबी का खतरा
टीबी के मरीजों से अधिक खतरा टीबी का इलाज करने वाले स्टाफ को रहता है। इसमें फील्ड स्टाफ को टीबी मरीजों से मिलना होता है व उनका चैकअप या एंबुलेंस आदि में स्टाफ को टीबी होने का खतरा रहता है। चौंकाने वाली बात यह है कि राज्य में टीबी के इलाज करने वाले स्टाफ में टीबी बीमारी के लक्षण पाए जाने के मामले सामने आए हैं। ऐसे में टीबी की चपेट में आने वाले इस स्टाफ के लिए विभाग द्वारा कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है।
तीन और जिलों में जल्द लगेगी सीबीनेट मशीन
शिमला — टीबी से लड़ने के लिए हिमाचल पूरी तरह तैयार है। टीबी का समय पर पता लगाने के लिए जल्द ही प्रदेश के तीन और जिलों किन्नौर, लाहुल-स्पीति और कुल्लू में भी सीबीनेट मशीनें स्थापित की जाएंगी। इसके पश्चात उपमंडल स्तर पर रामपुर और पालमपुर में भी ऐसी मशीनें स्थापित करने की योजना तैयार की गई है। अभी तक तक केवल नौ जिलों में ही यह सुविधा है। इतना ही नहीं, जल्द ही यह सुविधा ब्लॉक स्तर पर भी उपलब्ध कराई जाएगी। रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबर क्लोसिस प्रोग्राम जोनल टास्क फोर्स के चेयरमैन डा. अशोक भारद्वाज का दावा है कि हिमाचल प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां पर जिला अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है और अब ब्लॉक स्तर पर भी उपलब्ध करवाई जाएगी। डा. भारद्वाज ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की टास्क फोर्स के कार्य को देश में बेहतरीन आंका गया है। इसके लिए टास्क फोर्स को दिल्ली में 11 अप्रैल को सम्मानित किया जाएगा।
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