अटकलों के बीच सुशांत

By: Mar 21st, 2017 12:05 am

हिमाचल में राजनीति का एक अलग एहसास व अर्थ जिस प्रकार केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा से जोड़कर देखा जा रहा है, उससे भाजपा के कुनबे में केंद्रीय प्रकाश आलोकित हो रहा है। शिमला में हालांकि एक औपचारिक कार्यक्रम की सरकारी भूमिका में नड्डा दिखाई दिए, लेकिन भाजपा के परिदृश्य में आकाशीय परिवर्तनों की उम्मीद बढ़ जाती है। खास तौर पर भाजपा की परिधि से बाहर हुए नेताओं की शिमला मुलाकात से पार्टी की गंगा में राजनीति अपना दामन साफ कर रही है। इसी गंगा में डा. राजन सुशांत ने डुबकी लगाकर अपनी आस्था का नया स्रोत भी बनाया है। इससे पूर्व इसी तरह पार्टी को अलविदा कह चुके महेश्वर सिंह की वापसी से बदलती निष्ठाओं का स्वरूप देखने को मिला था और अब डा. सुशांत ने भाजपा के बदलते यथार्थ में खुद की हाजिरी लगाई है। यह तो मानना पड़ेगा कि भाजपा का अर्थ अब सत्ता तक पहुंचना है, तो इस आरोहण का कुनबा भी इन्हीं आशाओं के अनुरूप बढ़ेगा। पहले ही कांग्रेस सरकार का समर्थन करते रहे निर्दलीय विधायक बलवीर वर्मा अपना चोला बदलने को तैयार बैठे हैं, तो दर्शन सैणी जैसे नेता भी अब खड़ाऊ बदल रहे हैं। जाहिर है ऐसे प्रतीक भाजपा का मनोबल बढ़ाएंगे और इससे महत्त्वपूर्ण यह है कि राज्य की राजनीति में केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा का रुतबा अब पार्टी को सशक्त कर रहा है। मुलाकातों के इस दौर में अगर कांग्रेसी सत्ता के खिलाफ यह किसी दावे सरीखा है, तो नड्डा-सुशांत मंत्रणा किसी शगुन से कम नहीं। यह तो माना ही जाएगा कि सुशांत केवल हाथ मिलाने नहीं, बल्कि अपनी भाग्यरेखा दिखाने गए होंगे। राजनीतिक ज्योतिष भी यही कहता है कि फौज बढ़ाने से ही जंग फतह होती है। जिन परिस्थितियों में पार्टी ने सुशांत को रुखसत किया, वहां गुण और दोष का कोई आधार नहीं और न ही अब कोई मैरिट बनाकर भाजपा अपनी राजनीति का मूल्यांकन कर रही है। जाहिर तौर पर राजनीति जहां पहुंच चुकी है, वहां कुनबा बड़ा व असरदार नजर आना चाहिए और इस दिशा में भाजपा अवश्य ही अन्य पार्टियों में सेंध लगाने में कहीं अधिक सफल होगी। भाजपा के लिए पांच राज्यों के चुनाव जिस प्रयोगशाला में हुए, वहां परिणामों में परिलक्षित जीत का  हिसाब पहले से ही तय था। कुछ इसी तरह हिमाचल में भी गोटियां फिट होंगी और राजन सुशांत का इतिहास बता रहा है कि उनकी नड्डा से मुलाकात, किन बहारों की खबर है। बतौर राजनेता भले ही राजन सुशांत की सीढि़यां टूटती रही हों, लेकिन अपने संघर्ष की बुनियाद पर लोहा मनवाने की हिम्मत इस शख्स में रही है। एक ऐसा वक्त भी था, जब सुशांत की हस्ती में शांता कुमार के उत्तराधिकार की चिंगारी देखी जाती थी। प्रदेश के ब्राह्मण नेताओं में सुशांत की शुमारी का अक्स कांगड़ा जिला की संभावनाओं को लबालब करता रहा है, लेकिन भाजपा की राजनीति का पिछला दशक जिन उल्टे पांवों से चला उससे ऐसे नेताओं का हश्र स्वाभाविक था। यह भी एक प्रमाणित परिपाटी है कि सबसे अधिक भाजपा नेता चित भी कांगड़ा में हुए और अपनी ही सत्ता को चुनौतियां भी यहां से ही मिलीं। जिस माइनस कांगड़ा की सियासत पर भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी, तो क्या उसका पुनरुद्धार नड्डा कर रहे हैं। क्या एक बार फिर भाजपा इसी बहाने कांगड़ा को राजनीतिक तौर पर सशक्त करना चाहती है, जो कि एक अनिवार्यता के रूप में पार्टी से अपना अधिकार व रुतबा मांग रहा है, जो भी हो सुशांत जैसे नेता को कुनबे में शरीक करके नड्डा न केवल कांग्रेस की चुनौती बढ़ाएंगे, बल्कि पार्टी के हाशियों को मिटाने का संकेत भी दे रहे हैं। सुशांत का लौटना, कांगड़ा में भाजपा की प्रासंगिकता, प्रभाव व ब्राह्मण समुदाय के जोश को भी एक नए मुकाम तक पहुंचाएगा। देखना यह होगा कि सुशांत के प्रवेश द्वार पर भाजपा के बीच कितना स्वागत होता है या इससे आंतरिक विरोधाभास की नई कमजोरियों को बल मिलेगा।


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