आत्मविश्लेषण के साथ बढ़े यह काफिला

By: Mar 27th, 2017 12:05 am

मां के आंचल की तरह ही, शब्द की छाया भी हमारे विचारों-संस्कारों को गढ़ती है। पहचान को परिभाषित करने का जिम्मा भी इसी शब्द के पास होता है। पर न जाने क्या बात है कि शब्दों का यह कोमल संसार, आधी दुनिया के आकलन के समय कठोर मुद्रा अख्तियार कर लेता है। साहित्यिक कृतियों का गुण-दोष के आधार पर आलोचना करने के बजाय लैंगिक उलाहने-आक्षेपों की बात की जाने होने लगती है। आधी दुनिया का लेखन इस पूर्वाग्रही आलोचना से आक्रांत दिखता है। प्रतिक्रिया स्वरूप कभी-कभी अति का दूसरा छोर छूने की कोशिश होती है। ऐसे में उन आवाजों को सुनना, उन व्यक्तित्वों से परिचित होना आवश्यक हो जाता है, जिन्होंने आक्षेपों-उलाहनों के ताप को सहते हुए सृजन को विस्तार दिया है। इनसे परिचित होकर ही हम संतुलन के उन बिंदुओं की चिन्हित कर सकते हैं जो हर परिस्थिति में कुछ नया गढ़ने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। कंचन शर्मा के अतिथि संपादकत्व में प्रतिबिंब का यह अंक वास्तव में संतुलन बिंदुओं के पहचान का प्रयास ही है…                       

-फीचर संपादक

कंचन शर्मा, अतिथि संपादक

आज के संदर्भ में जब किसी महिला की रचनाओं को लेखन की कसौटी पर उतारने की बात आती है, तो पुरुष साहित्यिक वर्ग यही कहता है कि महिलाओं के पास दुख-दर्द, रोना-धोना और चूल्हे-चौके के सिवाय कुछ लिखने के लिए है ही नहीं। यही समकालीन लेखिकाओं के समक्ष चुनौती भी है। उसके लेखन में भावुकता हावी हो जाती है और वैचारिकता की कमी दर्शाई जाती है। यदि वह सतर्क है तो उसमें रूखापन दिखता है। अभिव्यक्ति सांकेतिक है तो उसमें बोल्डनेस की कमी पाई जाती है और यदि उसका लेखन बोल्ड है तो न केवल उनके लेखन का अपितु चरित्र का भी दोष मान लिया जाता है। यदि लेखन का दायरा उसके घर, पति, बच्चे हो तो उसका लेखन रसोई तक ही सीमित मान लिया जाता है। अगर हम अतीत को खंगालना शुरू करें तो ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां आधी दुनिया की रचनाशीलता को तंग नजरिए से देखे जाने की बात सामने आती है। साहित्य के नोबेल पुरस्कार प्राप्त लेखक विद्याधर सूरज प्रसाद नॉयपॉल ने 2011 में स्त्री लेखन पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मैं किसी भी रचना के एक दो पैरा पढ़कर बता सकता हूं कि इसे किसी पुरुष लेखक ने लिखा है या स्त्री ने ़ ़ ़़ मेरी तरह लाख कोशिश कर ले, कोई स्त्री लिख ही नहीं सकती। यही बात कुछ दशक पहले लेखन के लिए पुलित्जर अवार्ड जीतने वाले नॉर्मन मेलर ने ‘एडवर्टाइजमेंट्स फॉर माईसेल्फ’ में लिखा था कि मैं किसी प्रतिभावान स्त्री लेखक के लिखे के बारे में कुछ नहीं कह सकता इसमें मेरा कोई दोष नहीं बल्कि इसमें पढ़ने लायक कुछ भी नहीं होता है। महिलाओं के प्रति पुरुषों का यह नजरिया अत्यंत दुखदायी है। दरअसल साहित्य या कला को जेंडर के खांचे में विभाजित करना ही गलत बात है। अगर हिमाचल के महिला लेखन की तरफ बढ़ें तो चंद महिला साहित्यकारों को छोड़ कर अभी तक हिमाचल का महिला लेखन राष्ट्रीय स्तर पर अपनी आत्मा बिखेरने के बाद भी, उस मुकाम पर नहीं पहुंचा जहां उसे होना चाहिए। साहित्यकार एसएन जोशी जी के शब्दों में ईस्मत चुगताई की निधड़कता या निरूपमा दत्त की बुरी औरत का खुलापन हमारे यहां महिला लेखन में नजर नहीं आता और संभवतः आएगा भी नहीं क्योंकि हिमाचली समाज ने महिला को उस प्रकार प्रताडि़त नहीं किया, जिस प्रकार अन्य, विशेषकर मैदानी इलाकों के समाज ने किया है। हिमाचल जैसे शांत प्रदेश में नव जागरण काल के दौरान स्त्री आंदोलन नहीं चला, सामाजिक विसंगतियां कम रहीं, स्त्रियों ने विरोध के बजाय स्थितियों के साथ सामंजस्य बिठा लिया। जहां सामंजस्य है वहां विचारोत्पत्ति यूं ही रुक जाती है। जो झेला नहीं वह शब्दों से खेला नहीं। अच्छा साहित्य झेलने से पनपता है। शायद यही एक वजह रही कि आजादी के बाद भी हिमाचल में औरतें लिखती रहीं। मगर उनके लेखन में विरोध नहीं रहा। इसी कारण आजादी के दो-तीन दशक बाद तक उनका लेखन राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति नहीं पा सका। बहुमुखी प्रतिभा की धनी, कैदियों की ‘मां’ दिवंगत श्रीमती सरोज वशिष्ठ के साहित्यिक योगदान को भुलाया जा सकता है क्या?  इधर रेखा वशिष्ठ, संतोष शैलजा, सरोज परमार, रेखा डढवाल जैसे नामों ने राष्ट्रीय फलक पर सतत रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। पिछले दशक में तो हिमाचल में महिला लेखिकाओं की एक बाढ़ सी आ गई है। यकीनन सोशल मीडिया की भी इसमें खासी भूमिका रही है। समीक्षा-आलोचना के क्षेत्र में भी महिलाएं अपनी धार पैनी कर रही हैं। ‘भारतः एक विमर्श’ में देखा जा सकता है कि महिलाओं के नेत्र सामाजिक सरोकारों के प्रति बंद नहीं हैं। हिमाचल के महिला लेखन पर कुछ लिखने के लिए बहुत सी लेखिकाओं के साथ संपर्क साधा। दुःख हुआ जानकर महिला लेखिकाएं अभी एक-दूसरे का साहित्य नहीं पढ़ पाई हैं, जो इस पर कुछ लिखकर विचार व्यक्त कर सकें। हिमाचल भाषा व कला संस्कृति विभाग ने पिछले वर्ष से महिला साहित्यकार सम्मेलन की शुरुआत कर एक अच्छी पहल की है, जिससे महिला लेखिकाएं एक-दूसरे को जानने, सुनने व पढ़ने के लिए एक मंच पर इकट्ठे हो रही हैं। कितनी ही ऐसी महिलाएं हैं, जिनके साहित्यिक व्यक्तित्व पर वक्त की धूल पड़ी हुई है। इस धूल को हटाना अत्यावश्यक है। सुश्री अंबिका, श्रीमति सत्यपुरी, कला ठाकुर, श्रीमति सुदर्शन डोगरा, श्रीमति प्रेमलता वर्मा, संतोष कुमारी, श्रीमति कृष्णा शर्मा सब महिलाओं ने हिंदी, पहाड़ी में अनेकों विधाओं में लिखा। उनके कृतित्व को एक बार फिर से रोशनी में लाना जरूरी है। मृदुला श्रीवास्तव ने भी इस वर्ष कहानी के क्षेत्र में अपनी सशक्त दावेदारी पेश की है। देवकन्या ठाकुर की  ‘नो वूमन लैंड’ को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है। तो वहीं अर्चना फुल्ल ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी कलम की धार का लोहा मनवाया है। इसके अलावा कम से कम सौ लेखिकाओं के नाम हैं, जो पहाड़ों के कठिन जीवन से बावस्ता होने के बावजूद साहित्य में अपना स्थान बना रही हैं। महिलाएं लेखन में अपने ही भोगे दर्द को नहीं अपितु समाज के जटिल प्रश्नों से उलझती हुई उन्हें साहित्य में स्थान दे रही हैं। ये लेखिकाएं सामंती मूल्यों से लड़ती ही नहीं अपितु कविता में भी स्थान देती हैं, इसलिए यहां की महिलाओं के लेखन में आक्रोश मिलता है तो वह सहज ही है तथा पुरुष प्रधान समाज में औरतों के साथ होने वाले छद्म भी इनकी कविताओं में देखने को मिलते हैं। इनका साहित्य महज मन की उधेड़बुन ही नहीं अपितु अपने समाज का एक पूरा चित्र प्रस्तुत करता है। इन औरतों के लिए कविता, कहानी लिखना यहां के कठिन जीवन पर विजय पाने जैसा है। साहित्यिक उपस्थिति सुधर रही है लेकिन उपन्यास, यात्रा संस्मरण, बाल साहित्य जैसी कई विधाओं में अब भी काफी ‘स्पेस’ है। हिमाचल में महिला साहित्यकारों का एक बड़ा काफिला साहित्य के सफर में तो है। यह आवश्यक है कि काफिला आत्मविश्लेषण करते हुए आगे बढ़े। महिला रचनाकारों को राष्ट्रीय पटल पर पहचान बनाने के लिए अपने साहित्य को प्रदेश से बाहर ले जाने की मुहिम चलानी होगी।

– लेखिका सिंचाई एवं जन-स्वास्थ्य विभाग, शिमला में बतौर सहायक अभियंता कार्यरत हैं। त्रैमासिक पत्रिका ‘हिम समृद्धि’ का संपादन किया है। हिमाचल में वूमन अचीवर्स अवार्ड से सम्मानित। इलाहाबाद की गुफ्तगु संस्था ने ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की है


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