इधर बजट हुआ उधर ऋण लिया
( सुरेश कुमार, योल, कांगड़ा )
चार घंटे 26 मिनट बजट सुनने की खुशी अभी काफूर भी नहीं हुई थी कि अगले दिन ही समाचार पढ़ने को मिला कि प्रदेश सरकार 700 करोड़ रुपए का ऋण लेगी। यह तो होना ही है, भला प्रदेश सरकार के पास पैसा है ही कहां कि घोषणाओं को अमलीजामा पहनाया जा सके। अभी तो छठे वेतन आयोग का बोझ सरकार पर पड़ने वाला है, तब क्या होगा। आंकड़ों के अनुसार प्रदेश का 62 प्रतिशत बजट कर्मचारियों और पेंशनरों के वेतन-भत्तों पर और कर्ज की किस्त और ब्याज की अदायगी पर खर्च होता है, बाकी का 38 प्रतिशत ही विकास के लिए मिला है और इस 38 प्रतिशत की मैनेजमेंट के लिए मुख्यमंत्री महोदय ने चार घंटे, 26 मिनट लगा दिए। मैं यह नहीं कहता कि बजट अच्छा नहीं रहा, पर बजट के लिए पैसा है ही कितना। हर महीने-दो महीने में प्रदेश कर्ज उठाता रहेगा और वेतन-भत्ते इसी रफ्तार से बढ़ते रहे, तो एक दिन इस 38 प्रतिशत की जगह सिर्फ आठ प्रतिशत ही विकास के लिए होगा। बेशक राज्य कुछ ही महीनों में चुनाव के दौर से गुजरेगा, पर बजट को चुनावी बजट बनाने के लिए पैसा भी तो चाहिए। देखते हैं कि मुख्यमंत्री ने जो कहा, वह कहां तक पूरा हो पाता है। अनुभव तो यही है कि बजट हर साल आता है और कर्ज का कद भी हर साल बढ़ जाता है। सरकार कोई भी हो, हर सरकार ने प्रदेश का कर्ज से कूबड़ ही निकाला है।
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