कनिपक्कम मंदिर

By: Mar 25th, 2017 12:07 am

जब यह खबर उस गांव में रहने वाले लोगों तक पहुंची, तो वे सभी यह चमत्कार देखने के लिए एकत्रित होने लगे। तभी सभी को वहां प्रकट स्वयंभू गणेशजी की मूर्ति दिखाई दी, जिसे वहीं पानी के बीच ही स्थापित किया गया…

कनिपक्कम मंदिरवैसे तो गणेश जी के कई मंदिर हैं, लेकिन चित्तूर का विघ्नहर्ता कनिपक्कम गणपति मंदिर सभी मंदिरों में सबसे अलग है क्योंकि यह मंदिर नदी के बीचोंबीच स्थित है। इसकी स्थापना 11वीं सदी में कुलोतुंग चोल प्रथम ने की थी। मंदिर का विस्तार 1336 में विजयनगर साम्राज्य में किया गया। कहा जाता है कि यहां आने वाले सभी भक्तों के विघ्न गणपति जी हर लेते हैं।

क्या है मंदिर बनने की कथा- मंदिर की कहानी भी बेहद रोचक है, कहा जाता है कि तीन भाई थे। उनमें से एक गूंगा, दूसरा बहरा और तीसरा अंधा था। तीनों ने मिलकर अपने जीवनयापन के लिए जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा। जमीन पर खेती के लिए पानी की जरूरत थी। इसलिए तीनों ने एक सूखे कुएं को खोदना शुरू किया। बहुत खोदने के बाद पानी निकला। उसके बाद थोड़ा और खोदने पर एक पत्थर दिखाई दिया। जिसे हटाने पर खून की धारा निकलने लगी। थोड़ी ही देर में पूरे कुएं का पानी लाल हो गया। यह चमत्कार होते ही तीनों भाई जो कि गूंगे, बहरे या अंधे थे, वे एकदम ठीक हो गए। जब यह खबर उस गांव में रहने वाले लोगों तक पहुंची, तो वे सभी यह चमत्कार देखने के लिए एकत्रित होने लगे। तभी सभी को वहां प्रकट स्वयंभू गणेशजी की मूर्ति दिखाई दी, जिसे वहीं पानी के बीच ही स्थापित किया गया।

प्रतिदिन बढ़ रहा है गणपति का आकार- कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद विनायक की मूर्ति का आकार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस बात का प्रमाण उनका पेट और घुटना है, जो बड़ा आकार लेता जा रहा है। कहा जाता है कि विनायक के एक भक्त ने उन्हें एक कवच भेंट किया था, लेकिन प्रतिमा का आकार बढ़ने की वजह से अब उसे पहनाना मुश्किल हो गया है।

नदी से जुड़ी रोचक कथा- विनायक मंदिर जिस नदी में है उससे जुड़ी भी एक अनोखी कहानी है। कहते हैं संखा और लिखिता नाम के दो भाई थे। वे दोनों कनिपक्कम की यात्रा के लिए गए थे। लंबी यात्रा की वजह से दोनों थक गए। चलते-चलते लिखिता को भूख लगी। रास्ते में उसे आम का एक पेड़ दिखा तो वो आम तोड़ने लगा। उसके भाई संखा ने उसे ऐसा करने से बहुत रोका, लेकिन वह नहीं माना। इसके बाद उसके भाई संखा ने उसकी शिकायत वहां के शासक से कर दी। सजा के रूप में उसके दोनों हाथ काट लिए गए। कहा जाता है कि लिखिता ने जब कनिपक्कम के पास स्थित इस नदी में डुबकी लगाई उसके हाथ फिर से जुड़ गए। तभी से इस नदी का नाम बाहुदा रख दिया गया। बाहु जिसका मतलब होता है आम आदमी का हाथ।


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