कसौटी पर ‘वीर बजट’

By: Mar 12th, 2017 12:05 am

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 2017-18 के बजट में हर सेक्टर के लिए एक खास मंत्र दिया है। यह बात अलग है कि इन सपनों को सच करने के लिए धन मंत्र का कहीं जिक्र तक नहीं। इस बार दखल के जरिए जानें बजट पर बुद्धिजीवियों की राय …

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा शुक्रवार को वित्त वर्ष 2017-18 के लिए जो बजट पेश किया गया है, उसमें संसाधन जुटाने का कोई जिक्र नहीं है। हिमाचल की आमदन व खर्च हमेशा सुर्खियों में रही है। बढ़ता ऋण बोझ व कर्ज की ब्याज अदायगी से हर सरकार की किरकिरी होती रही है। बावजूद इसके संसाधन जुटाने के लिए कोई बड़े प्रयास नहीं किए जाते हैं। यही वजह है कि बेहतरीन बजट पेश करने के बावजूद अर्थशास्त्रियों की नजर में ऐसे बजट आंकड़ों के ही माया जाल माने जाते हैं। हिमाचल पर्यटन जैसे क्षेत्रों से स्वरोजगार व रोजगार के बड़े साधन जुटा सकता है। मगर केंद्रीय बैसाखियों से हट कर बजट में प्रदेश कोई नया प्रयास नहीं कर सका है। न तो हाई एंड टूरिज्म को विकसित करने का संकल्प है, न ही साहसिक पर्यटन को निखारने का कोई कदम। ईको टूरिज्म के लिए जरूर प्रयास हुए हैं। मगर बड़े प्रयासों के अभाव में ये अधूरे ही माने जाएंगे। पेश किए गए बजट में वित्त वर्ष 2017-18 में 35783 करोड़ का बजट परिव्यय प्रस्तावित किया गया है।  प्रदेश की जनता को घी के घूंट पिलाने वाले इस बजट में मुख्यमंत्री ने वित्तीय बोझ को लेकर चिंता भी जाहिर की है।  31 मार्च 2016 को राज्य का ऋण बोझ 38568 करोड़ रहा। वहीं 2017-18 में 3500 करोड़ का ब्याज इस पर चुकता किया जाएगा। चिंता इस बात की भी है कि नए वेतनमान लागू करने से इसमें और वृद्धि होगी। यानी प्रतिबद्ध दायित्वों के निर्वहन के बाद सरकार के पास पूंजीगत खर्च के लिए काफी कम राशि बचेगी। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए कुल 35783 करोड़ के बजट खर्च में से 9628 करोड़ वेतन, 4950 करोड़ पेंशन, 3500 करोड़ ब्याज अदायगी, 3105 करोड़ ऋण वापसी पर, जबकि अन्य ऋणों पर 448 करोड़ और रखरखाव पर 2311 करोड़ का खर्च अनुमानित है। बजट अनुमानों के मुताबिक कुल राजस्व प्राप्तियां 27714 करोड़, जबकि कुल राजस्व खर्च 28755 करोड़ अनुमानित है, जिससे 1041 का राजस्व घाटा होगा। सरकार के पूंजी खाते में 6164 करोड़ और लोक लेखा में भविष्य निधि में 1200 करोड़ की प्राप्तियां अनुमानित हैं। ऋण अदायगी समेत कुल पूंजी व्यय 7028 करोड़ रहने का अनुमान है। वर्ष 2017-18 में वित्तीय घाटा 4946 करोड़ रहने का अनुमान है।

आम आदमी के लिए कुछ नहीं

2017-18 के बजट में आम आदमी के लिए कुछ नहीं है। बजट किसान-बागबानों के लिए राहत भरा है। इसमें किसानों व बागबानों के लिए कई स्कीमें हैं। मगर आम जनता के लिए बजट में कुछ नहीं है। सरकार ने बजट में बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया है, जो बेरोजगारों के साथ खिलवाड़ है। सरकार ने बेरोजगारी भत्ता लेने की प्रक्रिया को जटिल कर दिया है

सुभाष वर्मा, पेंशनर

महिलाओं के लिए कोई राहत नहीं

बजट में महिलाओं के लिए कुछ भी विशेष नहीं है। बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान कर सरकार ने बेरोजगारों के साथ छलावा किया है। इसकी जगह अगर सरकार स्वरोजगार को तलाशती तो वह भविष्य में मील का पत्थर साबित होती। सरकार ने बजट में मजदूरों और आम जन के लिए कुछ भी विशेष नहीं दिया है। सरकार का यह बजट भी पिछले बजट की पुनरावृत्ति है

किरण, गृहिणी

पिछले बजट की कार्बन कापी

सरकार ने 2017-18 को बजट में किसानों व बागबानों को बड़ा तोहफा दिया है। सरकार ने बजट में किसानों-बागबानों के लिए योजनाओं को शामिल किया है और उसके लिए बजट का प्रावधान किया है। उसके बूते पर किसानों-बागबानों को बड़ा लाभ मिलेगा। मगर सरकार ने बजट में आम जनता के लिए कुछ भी विशेष नहीं दिया है। यह बजट पिछले बजट की ही कार्बन कापी है

हेतराम वर्मा, ग्रामीण

बेरोजगारी भत्ते की प्रक्रिया जटिल

प्रदेश सरकार ने बजट में हिमाचल के लाखों बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ते देने का ऐलान किया है। सरकार का यह फैसला सराहनीय है। मगर भत्ता प्रदान करने की प्रतिक्रिया को जटिल कर दिया है। बेरोजगारी भत्ता हासिल करने के लिए बेरोजगारों को कई दिन अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ेंगे। वहीं बेरोजगारी भत्ते की प्रस्तावित राशि भी बहुत कम है

रतन लाल, छात्र 

चुनावी वादे को पूरा करने का अधूरा प्रयास

प्रो. एनके शारदा अर्थशास्त्री

सरकार द्वारा प्रदेश के लिए पेश किए गए बजट एक लोक लुभावना बजट नहीं है। हां काफी हद तक इसमें हर वर्ग को राहत देने का प्रयास तो किया गया है, लेकिन बावजूद इसके भी बहुत से वर्ग ऐसे हैं, जिनके लिए बजट में आवश्यक योजना और घोषणाएं होनी चाहिए थीं, लेकिन वे घोषणाएं इस बजट में नहीं हो पाई हैं। सरकार ने जो घोषणा युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की की है, उसमें जो जमा दो की योग्यता वालों को देना तय किया गया है, वह तर्क संगत नहीं है।  दिव्यांग वर्ग को दिए जाने वाला 1500 रुपए का भत्ता भी कार्यकाल के अंतिम वर्ष में सरकार का अपना चुनावी वादा पूरा करने का अधूरा प्रयास है।  वहीं,  इस लोक लुभावने बजट में प्रदेश के महिला वर्ग को कुछ खास और अलग से लाभ न देते हुए महिलाओं को निराश किया है।  एक अर्थशास्त्री के रूप में अगर मैं पूरे बजट को देखूं तो इस बजट में कुछ राहत बेरोजगार युवा वर्ग को दी गई है। हालांकि मुझे अपेक्षा थी कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के कृषकों को इस बजट में लाभान्वित करने वाली योजनाएं देकर लाभ देगी। बजट में इरिगेशन और पब्लिक हैल्थ के लिए विशेष प्रावधान करना चाहिए था, जो इस बजट में शामिल नहीं किया गया है।

चुनावी घोषणा पत्र जैसा है बजट

हरीश चौहान, अध्यक्ष, फल-सब्जी एवं फूल उत्पादक संघ

यह बजट चुनावों के घोषणा पत्र जैसा है। सरकार ने बागबानी के क्षेत्र में 12 करोड़ बागबानी उपकरणों के उपदान के लिए प्रावधान किया है, जो कि काफी नहीं है।  पिछले बजट में इसके लिए 10 करोड़ का प्रावधान किया था,लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। अभी भी उपकरणों पर उपदान के लिए बागबानी विभाग में भारी संख्या में आवेदन पड़े हुए है। ओलावृष्टि के लिए हेलनेट का उपदान पिछले साल केवल 5 बागबानों को ही मिला। वहीं एंटी हेलगन, के लिए भी कोई प्रावधान नहीं किया गया। बजट में बागबानी क्षेत्र में प्रोसेसिंग  संयंत्रों के लिए  कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है। बजट में फलों के लिए दिए जाने वाले समर्थन मूल्य को भी नहीं बढ़ाया गया है

बेरोजगारी भत्ते में ‘शर्त’ का पेंच

जीवन शर्मा सेवानिवृत्त शिक्षा उपनिदेशक व प्रध्यापक संघ के पूर्व प्रधान

प्रदेश में नौ लाख के करीब बेरोजगार हैं। सरकार ने जो बजट पेश किया है,उसमें बेरोजगारों को सीधे-सीधे गुमराह किया गया है। सरकार ने जो 1000 बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही है, वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। इसके लिए बारहवीं पास की शर्त भी रखी गई है। जाहिर है कि इस योग्यता को पूरा करने वाले युवाओं के अलावा भी एक ऐसा वर्ग है जो बारहवीं पास की योग्यता को पूरा नहीं करता। सरकार की ओर से ऐसे युवाओं के लिए कुछ भी नहीं किया गया। अच्छा होता कि सरकार सभी बेरोजगारों के लिए कौशल विकास की ऐसी कोई योजना बनाती,ताकि सभी बेरोजगारी भत्ते के हकदार हो जाते।   पीटीए, पैरा और अन्य एसएमसी जैसी नियुक्तियां राजनीति लाभ के लिए के लिए की गई और आज इनका सरकार अपने लाभ के लिए जमकर शोषण कर रही है।  सरकार ने आउटसोर्स के लिए जो नीति बनाने की घोषणा की है वह भी दरअसल छलावा ही प्रतीत हो रही है। आउटसोर्स पर जो भर्तियां हुई,उसमें योग्य और प्रशिक्षित युवाओं की अनदेखी हुई।  शिक्षा प्रणाली में सरकार सही में सुधार करना चाहती है तो योजनाएं बनाने से पहले सरकार को शिक्षा विभाग में रिक्तियों को भरना होगा तभी योजनाओं को सिरे चढ़ाने की उम्मीद की जा सकती है

बजट में व्यापारियों की अनदेखी

सोमेश शर्मा प्रदेशाध्यक्ष  व्यापार मंडल

बजट से व्यापारी वर्ग को भारी निराशा हाथ लगी है। हिमाचल व्यापार मंडल के प्रदेशाध्यक्ष सोमेश शर्मा ने कहा कि  सरकार ने बजट में व्यापारी वर्ग की पूरी तरह अनदेखी की है।   व्यापार मंडल ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिलकर तीन प्रमुख मांगे रखी थीं, जिसमें व्यापारियों को उनकी सालाना टर्नओवर के अनुपात में 2 से 50 लाख रुपए तक का इंश्योरेंस कवर प्रदान करना, व्यापारी कोष की स्थापना करके व्यापारियों द्वारा जमा करवाए जाने वाले शुल्क से पांच प्रतिशत भाग को कोष में डालना व उससे विपत्ति आने पर व्यापारी की आर्थिक मदद करना तथा व्यापारी वर्ग को अवैतनिक कर्मचारी घोषित कर स्वास्थ्य संबंधी सहूलियतें प्रदान करना शामिल था, लेकिन इनमें से एक भी बात का जिक्र तक नहीं किया गया।  चूंकि केंद्र सरकार निकट भविष्य में जीएसटी बिल को लागू कर रही है,इसलिए राज्य सरकार ने न तो कोई टैक्स बढ़ाया,न ही घटाया। जीएसटी से भी प्रदेश सरकार को राजस्व में बढ़ोतरी होगी।  वीरभद्र सिंह ने राज्य में पांच नए आबकारी एवं कराधान अधिकारी वृत्त कार्यालय खोलने की बात कही है,इससे व्यापारी वर्ग को अपना कामकाज करवाने में आसानी होगी,लेकिन इंस्पेक्टरी राज भी बढ़ेगा। व्यापार मंडल के प्रदेशाध्यक्ष सोमेश शर्मा ने कहा कि चुनावी वर्ष में भी बजट में व्यापारी वर्ग की अनदेखी की गई है।

उद्योगों पर बिजली-ट्रक यूनियनों का दबाव बरकार

औद्योगिक पैकेज की मियाद खत्म होने के बाद विशेष रियायतों की आस लगाए बैठे उद्योग जगत के लिए प्रदेश सरकार का बजट सितमगर ही साबित हुआ है। उद्यमियों को उम्मीद थी कि प्रदेश सरकार बिजली की दरों में कमी के अलावा ट्रक यूनियनों के एकाधिकार के मसले पर कोई बड़ा कदम उठाएगी, लेकिन इस मसले पर सरकार ने चुप्पी ही साधे रखी, जिसे लेकर उद्यमियों में मलाल जरूर है। सीआईआई, एचडीएमए सरीखे औद्योगिक संगठन ट्रक यूनियनों की मनमानी को लेकर सरकार से एहतियातन कदम उद्योग हित में उठाने की मांग कर रहे थे, लेकिन सरकार ने चुनावी साल में इस मुद्दे से दूरी ही बनाए रही। बताते चले कि विशेष औद्योगिक पैकेज के तहत बाकी कुछ रियायतों की मियाद 31 मार्च को समाप्त हो रही है। इसके मद्देनजर प्रदेश सरकार से उद्यमी इस उम्मीद में थे कि राज्य सरकार इस बार के बजट में अपने स्तर पर उद्योगों के लिए राहतों की बहार लेकर आएगी, लेकिन इस दिशा में खास कुछ नहीं हुआ। सीआईआई ने बजट से पहले प्रदेश सरकार को सौंपे ज्ञापन में राज्य में ट्रक यूनियन के एकाधिकार, संपत्ति कर तथा इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी जैसे गंभीर मुद्दों पर बजट में कारगर कदम उठाने की मांग की थी।

अतिरिक्त वस्तु कर में छूट बेहतरीन

एनआईए के अध्यक्ष संजीव अग्रवाल ने लोहा, स्टील व प्लास्टिक के कच्चे माल तथा निर्मित माल पर अतिरिक्त वस्तु कर एजीटी में समुचित कमी करने के फैसला का स्वागत किया है। एनआईए के प्रेस सचिव अनिल शर्मा ने कहा कि एकमुश्त कर योजना के दायरे को 30 लाख से बढ़ाकर 40 लाख किया गया है, साथ ही उद्योगों को समयबद्ध वैट विवरणी सुनिश्चित करने के लिए प्रणालियों का सरलीकरण करने का फैसला भी सही है। इसके अलावा 100 करोड़ से अधिक का कारोबार करने वाली बड़ी इकाइयों को समुचित सुविधा प्रदान करने के मकसद से उप आबकारी व कराधान आयुक्त के अधीन व्यापक करदाता इकाई प्रस्तावित करने का कदम बड़े उद्योगों के लिए राहत भरा कदम बताया है।

आधा प्रतिशत प्रवेश शुल्क सही

बीबीएन उद्योग संघ के महासचिव वाईएस गुलेरिया ने कहा कि पिछले वर्ष के बजट में उद्योगों का प्रवेश शुल्क दो से घटाकर एक प्रतिशत किया गया था तथा नए उद्योगों का शुल्क आधा प्रतिशत तय हुआ था, अब वर्तमान में स्थापित उद्योगों का प्रवेश शुल्क भी आधा प्रतिशत कर दिया गया है, जो कि सराहनीय कदम है। उन्होंने सेवा उद्योग के लिए प्रदेश के सभी औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि उपयोग के लिए अनुमति देने, एकल बिंदु पंजीकरण पोर्टल संचालित करने की योजना को उद्यमियों के लिए राहत भरा कदम करार दिया। बजट से उद्योग जगत खुश है  सरकार के इन प्रयासों से राज्य में औद्योगिक विकास को गति मिलेगी, जिससे प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

सूक्ष्म-लघु उद्योगों के लिए कुछ नहीं

लघु उद्योग भारती बद्दी के अध्यक्ष एनपी कौशिक ने कहा कि सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिए बजट में कुछ खास नहीं है, हम एससआई सेक्टर के लिए अलग से पालिसी की मांग कर रहे थे, जो पूरी नहीं हुई। हिमाचल स्टील एसोसिएशन के पदाधिकारी प्रेम शर्मा, लघु उद्योग भारती के महासचिव अशोक राणा ने कहा कि प्रचुर मात्रा में बिजली उपलब्ध होने के बाद भी बिजली सस्ती नहीं हुई, बकौल राणा हर्बल और एग्रो इंडस्ट्रीज को बढ़ावा देना समय की जरूरत थी। लघु उद्योग भारती के राज्य महासचिव ने कहा कि औद्योगिक विकास में बाधक बन चुकी धारा 118 के सरलीकरण के लिए बजट में कोई कारगर पहल होती नहीं दिखी।

प्रापर्टी टैक्स को उद्योगों पर थोपना गलत

संजय खुराना चेयरमैन सीआईआई हिमाचल प्रदेश स्टेट काउंसिल ने कहा कि उद्योग राज्य में मेंटीनेंस तथा एकस्ट्रा डिवेलपमेंट चार्ज का विभिन्न विभागों को भुगतान करते हैं। हाल ही में म्यूनिसिपल कमेटी ने प्रापर्टी टैक्स को उद्योगों पर लागू करने का फैसला लिया है, जो पूरी तरह से गलत है। सीआईआई ने राज्य में ट्रक यूनियन के एकाधिकार को समाप्त करने की भी मांग रखी थी, ताकि राज्य में उद्योग सही तरीके से पनप और बढ़ सके। सीआईआई का कहना है कि यूनियन के कारण प्रदेश ब्रांड की छवि पहले ही खराब होती आ रही है, जिसके चलते राज्य में नया निवेश कम हो रहा है। उन्होंने प्रदेश सरकार से आग्रह किया था कि जो उद्योग अपने वाहन लगाकर इनके माध्यम से काम लेना चाहते हैं, उन्हें इसकी अनुमति दी जाए। लेकिन बजट में इस दिशा में भी कोई कदम नहीं उठाया गया।

इनकी आस अधूरी

हिमाचल में निजी क्षेत्र में रोजगार के बड़े साधन उपलब्ध नहीं है। जब से विशेष औद्योगिक पैकेज खत्म हुआ है, तभी से निजी क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं भी शून्य दिख रही हैं। यही वजह है कि हिमाचल का पढ़ा-लिखा युवा सरकारी क्षेत्र पर नजरें टिकाए रहता है। ताजा बजट में भी पैरा व पैट के साथ-साथ पीटीए को बड़ी आस थी, मगर उनके लिए कोई बड़े ऐलान नहीं हो सके हैं।

घाटे के बोर्ड-निगमों को मिली मायूसी

हिमाचल में 36 से भी ज्यादा घाटे के बोर्ड-निगम सरकारों के लिए सिरदर्दी का सबब बनते आ रहे हैं। कई बोर्ड-निगम ऐसे भी हैं, जहां वेतन तक के लाले पड़ते हैं। इनमें हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम, एचआरटीसी, बिजली बोर्ड, खादी बोर्ड, मात्र खाद्य एवं आपूर्ति निगम व एचपीएसआईडीसी को छोड़कर कोई भी ऐसा बोर्ड निगम नहीं है, जो लाभ में चल रहा हो। बावजूद इसके बजट में ऐसी कोई तरकीब नहीं सुझाई जा सकी है, जो इन सफेद हाथियों के लिए भविष्य उज्ज्वल बनाने का मंत्र पेश करती हो।

डाक्टरों की कमी दूर करने के लिए प्रयास नहीं

हिमाचल में डाक्टरों के 600 के लगभग पद खाली हैं। वॉक-इन-इंटरव्यू के जरिए जो डाक्टर आते हैं, उन्हें 23 हजार की पगार पर तैनात करने की कवायद रहती है। पांच वर्ष की मुश्किल पढ़ाई पर जो लोग लाखों का खर्च करते हैं, उन्हें इतने कम वेतन पर रखकर बेहतरीन सेवाएं लेने के इरादे अधूरे ही साबित होते हैं। उम्मीद थी कि ऐसे डाक्टरों की सेवाएं स्थायी तौर पर लेने के लिए बजट में कोई बड़े ऐलान होंगे, मगर ऐसा नहीं हो सका है। यही वजह है कि डाक्टर मजबूरी में तैनातगी तो ले लेते हैं, मगर उन्हें अतिरिक्त पैसा जुटाने के लिए निजी प्रेक्टिस करने को मजबूर होना पड़ता है।

उद्योगों को मिलेगी रफ्तार

सीआईआई के पूर्व चेयरमेन अरुण रावत    ने कहा कि सरकार द्वारा औद्यौगिक क्षेत्र के लिए बजट में जो प्रावधान किया गया है, उससे इस क्षेत्र को गति मिलेगी। सरकार ने उद्योगों के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस का प्रावधान किया है, यह बेहतर कदम है। वहीं सरकार ने स्टार्टअप योजना जो लागू की है उससे नए उद्यमियों को सहायता मिलेगी। सरकार ने सर्विस सेक्टर के लिए भी कई अहम कदम उठाए हैं,जो काबिले तारीफ हैं। बजट में सरकार ने शिमला में सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क स्थापित करने का फैसला किया है, इससे आईटी पेशेवरों को रोजगार मिलेगा। यह सहरानीय कदम है।

 


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