काम से बनती है आपकी पर्सनेलिटी और पहचान

By: Mar 29th, 2017 12:07 am

अपने काम की एक लिमिट तय करें। उससे ज्यादा तभी करें जब बेहद जरूरी हो, उस ऊर्जा को अपने दूसरे कामों में लगाया जा सकता है। अपनी क्षमताओं को पहचानते हुए अपना कौशल बढाएं व नई तकनीकें सीखते रहें। इससे काम सहजता से कर सकेंगे। इसके लिए अपने कलीग्स, इंटरनेट या कोचिंग इंस्टीच्यूट की मदद लें…

वैसे तो अपने काम से पहचान बनती ही है, पर कभी-कभी भीड़ में अलग साबित होने के लिए खुद की ब्रैंडिंग करना भी जरूरी होता है। माना जाता है कि आपकी पर्सनेलिटी और पहचान आपके काम से बनती है। यह सही भी है पर कई बार आफिस में होने वाली समस्याओं के बारे में इंप्लाइज खुल कर अपना पक्ष नहीं रख पाते हैं और अंदर ही अंदर घुटने लगते है, जिसका सीधा असर उनके काम पर पड़ने लगता है। ऐसे में मैनेजमेंट को अपने इंप्लाइज के काम की अहमियत को समझना चाहिए और इंप्लाइज को भी कंपनी के प्रति ईमानदार रहते हुए अपनी जिम्मेदारियों को समय पर पूरा करते रहना चाहिए। ऐसे बना सकते हैं आप अपनी पहचान अपने काम व उसकी महत्ता के बारे में बॉस व एचआर से जानकारी लेते रहें। शिफ्ट जॉब होने पर साप्ताहिक ड्यूटी चार्ट चैक करते रहें। ऐसा न हो कि ईवनिंग शिफ्ट के लिए आप सुबह से पहुंच जाएं या मॉर्निंग शिफ्ट पर शाम तक पहुंचें। एक-दो बार तो ऐसी भूल को माना जा सकता है, पर बार-बार उसे दोहराने पर गलत इंप्रेशन पड़ता है। अगर आफिस से आने-जाने के लिए कैब की सुविधा मिलती हो, तो तय समय पर तैयार रहें। अपनी वजह से दूसरों को इंतजार न करवाएं। अगर किसी दिन आप छुट्टी पर हों या घर का पता बदला हो, तो कैब ड्राइवर को पहले ही सूचित कर दें।

कंपनी को उसके लक्ष्य पूरे करने में मदद करें

अपने लक्ष्यों को यूं निश्चित करें कि वे कंपनी को भी कुछ फायदा पहुंचाएं। इसके लिए अपने समय, कौशल व साधनों का सही उपयोग करें। छोटे-छोटे लक्ष्य बनाते हुए बड़े लक्ष्य तक पहुंचें। समय प्रबंधन सही तरीके से करना आना चाहिए। मैनेजमेंट को काम से मतलब होता है न कि इस बात से कि किसी काम को पूरा करने में आपने कितना समय लगाया। डेडलाइन पर काम न मिलने पर उसके प्रेजेंटेशन में लगाई गई आपकी मेहनत और समय का भी खास मोल नहीं रह जाएगा। कई बार ऐसा हो जाता है कि लोग आपकी मेहनत को नहीं समझ पाते हैं। ऐसे में ध्यान रखें कि आपको खुद ही सीनियर्स तक अपनी तारीफ  पहुंचानी होगी, पर वह किसी भी मायने में बहुत ओवर नहीं लगनी चाहिए। सीनियर्स के साथ पर्सनल रिलेशंस मेंटेन करके चलें।

डील और नो डील स्थितियों को पहचानना सीखें

बात चाहे प्रोमोशन की हो, कांट्रैक्ट की या पार्टनरशिप की, जरूरत पड़े तो न कहना भी सीखें। खुद को काम के बोझ तले दबाने से बेहतर है कि जितना काम करें, उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दें। अपने डिपार्टमेंट के रिपोर्टिंग स्ट्रक्चर को समझें। किसी से भी कुछ पूछने या सीखने में संकोच न करें। इसी तरह जब कोई आपसे कुछ सीखने या समझने आए, तो उसकी भी मदद करें। सीनियर्स के सामने अपने आइडियाज तथ्यों के साथ रखें और उनके रिजेक्ट होने के लिए भी तैयार रहें। जरूरी नहीं है कि हमेशा हर आइडिया स्वीकार ही हो जाए। अगर आप सही हैं और उसके लिए तर्क देना पडे़, तो निसंकोच अपनी बात कहें। सभी आवश्यक मेल्स को अपने पास सेव करके रखें। हर जरूरी बात को मेल द्वारा ही कहें व मंगवाएं ताकि कभी कोई बात होने पर आप उसे दूसरों को दिखा सकें। कंपनी में अपनी ज्वाइनिंग, सैलरी व ड्यूटी में अदला-बदली होने जैसी जरूरी बातों को अपने मेल बॉक्स में जरूर रखें। अपने काम की एक लिमिट तय करें। उससे ज्यादा तभी करें जब बेहद जरूरी हो, उस ऊर्जा को अपने दूसरे कामों में लगाया जा सकता है। अगर किसी और का कोई महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हों, तो मैनेजमेंट को उसकी जानकारी देना न भूलें। अपनी क्षमताओं को पहचानते हुए अपना कौशल बढाएं व नई तकनीकें सीखते रहें। इससे काम सहजता से कर सकेंगे। इसके लिए अपने कलीग्स, इंटरनेट या कोचिंग इंस्टीच्यूट की मदद लें। किसी मीटिंग में कभी कोई ऐसी बात चल रही हो, जिसकी ज्यादा जानकारी आपके पास न हो तो उस समय शांत रहना ही बेहतर होता है। गलत तर्क देकर दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश न करें। इसका सीनियर पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा ही, टीम के बाकी सदस्य भी डायवर्ट हो सकते हैं। सहकर्मियों व मेंटर के हालचाल लेते रहें। रीअल कम्युनिकेशन ई.कम्युनिकेशन से हमेशा बेहतर होता है। बातचीत ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वह बिना वजह की लगे, सामने वाले का मूड भी परखना सीखें।


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