कृषि हेल्पलाइन

By: Mar 21st, 2017 12:05 am

शिमला मिर्च को बचाएं ब्लाइट डाइबैक से

शिमला मिर्च को कई प्रकार के रोग और कीट नुकसान पहुंचाते हैं और इनमें फल सड़न और ब्लाइट प्रमुख हैं :  इस कारण फलों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे पड़ जाते हैं और फल पूर्णतया सड़ जाता है। फूल आते हुए और फल बनते समय पत्तों पर छोटे-छोटे तेली धब्बे उभरते हैं, जिससे पौधे काले पड़ने और सड़ने लगते हैं। पौधा कमजोर हो जाता है। अधिक बरसात में रोग शीघ्रता से फैलता है। रोग से मुक्ति के लिए रोगमुक्त बीज व पौध का प्रयोग करना चाहिए।

बीज का उपचारः दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज मैन्कोजेब से करें। सड़े फलों को एकत्रित करके नष्ट कर दें। बरसात आने से पहले रिडोमिल एम जेड का 200 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। बाद में बोर्डों मिश्रण 800 ग्राम नीला थोथा 800 ग्राम अनबुझा चूना+100 लीटर पानी या ब्लाइटॉक्स-50 (300 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का 8-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

एन्थ्रेक्नोज या डाइबैक : रोगग्रस्त टहनियां ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं। फलों पर गहरे गुलाबी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं। इसके लिए उपरोक्त दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।

पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग में शुरू में पत्तों पर छोटे पीले धब्बे और पत्तों की निचली सतह पर चूर्ण जैसा पदार्थ उभरता है और धीरे-धीरे निचली सतह चूर्ण से भर जाती है और बाद में पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं। इससे पत्तों और फलों की बढ़ोतरी रुक जाती है और फल कम और निम्न गुणवत्ता वाले होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए सल्फेक्स (250 ग्राम) या कैराथेन (100 मिलीलीटर) या नीम तेल (700 मिलीलीटर) का दस दिन के अंतर पर अथवा हैक्साकोनाजोल 5 ईसी (50 मिलीलीटर) या टैबूकोनोजोल 0.04 प्रतिशत (40 ग्राम) का 15 दिन के अंतर पर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

फ्यूजेरियम विल्ट : पौधे मुरझाकर पीले पड़ जाते हैं। रोपण से पहले पौधे को कार्बेडाजिम (100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) के घोल में 20 मिनट तक डुबोकर रखें। फूल आने के समय मेन्कोजेब एम 45 (250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) या कार्बेडाजिम (100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) से पौधों की सिंचाई करें।

मोजैक : इस रोग में पत्ते बिना हरे रंग के, मटमैले धब्बों वाले और मोटी हरी धारियों वाले हो जाते हैं और मुड़ने लगते हैं। रोगी पत्ते मोटे और गुच्छेदार हो जाते हैं। पौधों की बढ़ोतरी रुक जाती है, फूल गिर जाते हैं और फल विकृत हो जाते हैं, जिनका बाजार में सही भाव नहीं मिलता है। यह रोग एफिड या थ्रिप्स  द्वारा फैलता है। रोग के संक्रमण को रोकने के लिए मक्की या बाथू जैसी फसल उगानी चाहिए। मैलाथियॉन 100 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी का छिड़काव करें।

थ्रिप्स : ये पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्ते ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं, पत्तों और पौधे की बढ़ोतरी घट जाती है तथा ऊपज पर असर पड़ता है। अधिक संक्रमण से पत्ते काले पड़कर सूख जाते हैं तथा फल अनियमित लगते हैं।

इसके लिए प्रभावित पत्तों, फूलों और फलों को निकाल दें। गिरे हुए पौधे के भागों को हटाकर खेत साफ रखें। मैलाथियान100 मिलीलीटर/100 लीटर पानी का छिड़काव करें और अगर प्रकोप बना रहे तो 15 दिन बाद फिर छिड़काव करें। छिड़काव के बाद सात दिन तक फल न तोड़ें।

एफिड : एफिड या तेला के शिशु और प्रौढ़ पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पौधे की बढ़ोतरी और उपज पर असर पड़ता है। पत्तियां मुड़ जाती हैं। पौधे पर तेले की उपस्थिति के लिए नजर रखें।

दीमक : ये फसल की जड़ों पर पलती है और पौधों को नष्ट कर देती है। निचले और मध्यम क्षेत्रों में इसकी समस्या गंभीर है। खेत तैयार करते समय मिट्टी में मैलाथियान धूल पांच प्रतिशत (15-20 किलोग्राम प्रति बीघा) मिलाएं।

—डा. कृष्ण चंद शर्मा

सौजन्यः डा. राकेश गुप्ता, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन


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