खेतीबाड़ी के कारण स्थायी निवास की परंपरा पड़ी

By: Mar 15th, 2017 12:05 am

खेतीबाड़ी के आरंभ हो जाने पर वे लोग एक स्थान पर रहने लगे और उनका पारिवारिक जीवन स्थायी होने लगा। इसी प्रकार धीरे-धीरे सामूहिक निवास अथवा समाज की बुनियाद पड़ी। हिम देश में रहने के कारण उनको कठिन शीत से  बचने के लिए विशेष प्रकार के घर बनाने पड़े होंगे…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

अपनी सभ्यता और संस्कृति के आरंभिक चरणों में इन लोगों का क्या जीवनयापन रहा होगा, निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अन्य देशों की भांति शुरू-शुरू में वे लोग भी अन्न पैदा करने वाले नहीं अपितु भोजन सामग्री जुटाने वाले रहे होंगे। आरंभिक काल में वे लोग कंद मूल, फल आदि खाकर अपना पेट पालते होंगे अथवा जंगली जानवरों को मारकर उनका मांस खाते होंगे। धीरे-धीरे उन्होंने वन्य पशुओं को पकड़ कर अपने वश में कर लिया और उनका पालन-पोषण करके अपने कार्यों में उनका उपयोग किया। उनका दूध पीने लगे और बोझा ढोने के लिए उनका उपयोग करने लगे। जब पशुधन बढ़ गया तो चारे की खोज में अपने पशुओं के साथ दूर-दूर घाटियों और पर्वतों में जाने लगे और उनका जीवन चरवाहे सा बन गया। आज भी किन्नौर के कनावरे, भरमौर के गद्दी, लाहुल और स्पीति के लाहुले अपने पशुधन के साथ ग्रीष्म ऋतु में ऊंचे पहाड़ों पर, शरद ऋतु में नीची घाटियों में चले जाते हैं। इस प्रकार घूमते-फिरते उनका मिलन दूसरे लोगों से भी होने लगा। पशुओं की रक्षा के लिए उनमें आपस में भी मेलजोल बढ़ गया और वे समूहों में रहने लगे। इसी घुमंतू जीवन में उन्होंने कृषि करनी भी सीख ली। आरंभिक काल में खेतीबाड़ी का काम निचली घाटियों और नदी-नालों के किनारे रहा होगा। सबसे पहले उन्होंने गेहूं ही उपजाया होगा, क्योंकि वनस्पति विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं सबसे पहले हिंदुकुश और पंजाब के मध्य भाग-हिमालय में कहीं उपजाया गया था। खेतीबाड़ी के आरंभ हो जाने पर वे लोग एक स्थान पर रहने लगे और उनका पारिवारिक जीवन स्थायी होने लगा। इसी प्रकार धीरे-धीरे सामूहिक निवास अथवा समाज की बुनियाद पड़ी। हिम देश में रहने के कारण उनको कठिन शीत से बचने के लिए विशेष प्रकार के घर बनाने पड़े होंगे। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार उनके वस्त्र पहले-पहले जंगली जानवरों की बालदार खालों के रहे होंगे। बाद में उन्हीं की ऊन से उन्होंने कात कर बुनकर अपने वस्त्र बनाए। आज भी बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्र में ऊन के वस्त्र पहने जाते हैं, जो प्रायः हाथ से ही कातकर और बुनकर बनाए जाते हैं। पालतू जानवरों का उपयोग उन्होंने सामान ढोने और परिवहन के लिए आरंभ किया। पशुओं के सामान ढोने की सुविधा के कारण उन्होंने सिंधु क्षेत्र के लोगों के साथ अपने व्यापारिक संबंध स्थापित किए। सिंधु प्रदेश को निर्यात होने वाली वस्तुओं में मुख्य थी देवदार की लकड़ी, बारहसिंगे के सींग, जड़ी-बूटियां और शिलाजीत। इसके बदले में वहां से खाद्य सामग्री, सूती कपड़ा और धातु के औजार आयात करते होंगे।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App