जरूरी है पाठकों का जुड़ाव

By: Mar 27th, 2017 12:05 am

प्रतिक्रिया

चर्चित कथाकार, रंगकर्मी और पत्रकार मुरारी शर्मा के अतिथि संपादकत्व में ‘दिव्य हिमाचल’ के साहित्यिक पृष्ठ प्रतिबिंब के माध्यम से साहित्य विमर्श के प्रश्नों का जो रोचक और पठनीय विवरण शब्दों में पिरोया गया है, वह काबिलेतारीफ है। हिमाचली साहित्य पाठकों से दूर और दोषी कौन जैसे ज्वलंत मुद्दे पर इस विमर्श के सहभागी रचनाकारों के विचार पढ़े तो एक कमी शिद्दत से खली ,जिस पर इन साहित्यिक चिंतकों का ध्यान नहीं गया। हिमाचली साहित्य से पाठकों को दूर ले जाने में आज जनसंचार की नई तकनीकों का जबरदस्त हाथ है। हाथ से लिखे हुए का जैसे वजूद ही हाशिए पर चला गया है। फेसबुक और व्हाट्सएप में डाली गई फूहड़ और नीरसता भरी रचनाओं को पाठकों के आगे परोसा जा रहा है और धड़ाधड़ वाहवाही लूटी जा रही है। पाठकों की रुचि, जिज्ञासा और तृप्ति जाए भाड़ में। अब यदि ऐसे परिदृश्य में हिमाचली साहित्य पाठकों से दूर होगा तो उसका दोषी साहित्यकार नहीं यह तकनीक ही हुई न। एक सशक्त रचना को कई पाठक बार-बार पढ़ते हैं और दूसरों को भी इसे पढ़ने का सुझाव देते हैं। इससे नए-नए पाठक साहित्य से जुड़ते चले जाते हैं और रचनाकारों को और भी अच्छा लिखने की ओर प्रेरित करते हैं। तमाम विरोधाभासों और कमियों के बावजूद भाषा अकादमी ने साहित्यकारों की रचनाओं को आम पाठकों तक पहुंचाने में अपना अहम योगदान दिया है। विपाशा के पुराने अंक इसके गवाह हैं। जहां तक रहा सवाल लेखक का अकादमी के लिए साहित्य रचने का है, तो कहना चाहूंगा कि अच्छी रचना का मूल्यांकन हर स्तर पर होता है। इसका ज्वलंत उदाहरण मुरारी शर्मा की चर्चित कहानी ‘बाणमूठ’ है। यह कहानी अपने परिवेश से उठकर अंतरराष्ट्रीय फलक के कथानक को समेटते हुए अपनी पहचान का दायरा भी व्यापक करती चली जाती है। इस कहानी को व्यापक पाठक वर्ग ने पढ़ा वहीं पर इसका मंचन भी राष्ट्रीय स्तर पर हुआ और उसे खूब सराहा गया। उसी प्रकार साहित्य की पवित्र विधा कविता है। यह लोक के करीब है या नहीं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक लोकगीत की पंक्ति लोगों की जुबां पर चढ़ जाती है और वे उसे गुनगुनाते हैं। अब सवाल उठता है कि हिमाचली कवियों की कविताओं की कोई पंक्ति जनमानस गुनगुनाता है या नहीं। हिमाचल के लोक जीवन और माटी की गंध में गुंथी रचनाएं अगर लिखी जाएंगी, तो जनमानस उसे स्वीकार करेगा ही। अगर लेखक इसी मुगालते में रहेंगे कि उनकी रचनाएं पढ़ी जा रही हैं, तो उन्हें आत्मावलोकन अवश्य कर लेना चाहिए। अपने क्षेत्र के चर्चित हस्ताक्षरों को अतिथि संपादन का जिम्मा सौंपकर दिव्य हिमाचल ने बेहतर शुरुआत की है। मुरारी शर्मा के संपादन में हिमाचली साहित्य में विमर्श के नए आयाम स्थापित हुए हैं। यह कोशिश जारी रहनी चाहिए। हिमाचली लेखकों की बेहतरीन रचनाओं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने और नवांकुरों को मंच प्रदान करने का कार्य भी किया जाना चाहिए। इससे पाठकों का दायरा बढ़ेगा और यहां के साहित्यकारों की सृजनशीलता में भी निखार आएगा।

— तेजिंद्र कुमार, मकान नंबर 234/5, पैलेस कालोनी मंडी


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