ट्रंप के बहाने खुद को मजबूत कीजिए

By: Mar 15th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवालाडा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं )

हमारे देश में अमरीका, चीन तथा अन्य देशों में बने सस्ते माल का भारी मात्रा में आयात हो रहा है। चीन के सस्ते माल के सामने हमारे तमाम कारखानों ने घुटने टेक दिए हैं। ऐसे में यदि हम भी आयात करों को बढ़ा देते हैं, तो चीन का सस्ता माल भारत में प्रवेश नहीं कर सकेगा। तब खिलौने एवं बल्ब बनाने के हमारे कारखाने चल निकलेंगे। इस प्रकार से दवा और गलीचे के क्षेत्र में हुए नुकसान की भरपाई खिलौनों एवं बल्ब के क्षेत्र से हो जाएगी…

अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों को लेकर देश में आशंकाएं जताई जा रही हैं, लेकिन असल समस्या ट्रंप की नहीं, बल्कि हमारी अपनी नीतियों की है। जैसे क्रिकेट की विपक्षी टीम तेज गेंद फेंकने वाली हो, तो नरम पिच बनाकर उस पर जीत हासिल की जा सकती है। हम नरम पिच न बनाएं और विपक्षी टीम के तेज गेंदबाजों को अपनी हार के लिए दोषी ठहराएं तो बात नहीं बनती। इसी प्रकार ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों का सामना हम स्वयं संरक्षणवादी नीतियों को अपना कर सकते हैं। ट्रंप की पहली नीति आयात कर बढ़ाने की है। वह चाहते हैं कि अमरीका में बिकने वाले माल का अधिकाधिक उत्पादन अमरीका में ही हो, जिससे अमरीकी श्रमिकों को रोजगार मिले। अमरीकी कंपनियों द्वारा मेक्सिको, चीन एवं भारत में माल का भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है, चूंकि यहां श्रमिक की दिहाड़ी कम है। इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए ट्रंप ने अमरीका में प्रवेश करने वाले माल पर आयात कर बढ़ाने के संकेत दिए हैं। ऐसा होने पर भारतीय माल जैसे दवाओं और गलीचों का निर्यात प्रभावित होगा, लेकिन हम इस संकट को सुअवसर में बदल सकते हैं। हमारे देश में अमरीका, चीन तथा अन्य देशों में बने सस्ते माल का भारी मात्रा में आयात हो रहा है। चीन के सस्ते माल के सामने हमारे तमाम कारखानों ने घुटने टेक दिए हैं। ऐसे में यदि हम भी आयात करों को बढ़ा देते हैं, तो चीन का सस्ता माल भारत में प्रवेश नहीं कर सकेगा। तब खिलौने एवं बल्ब बनाने के हमारे कारखाने चल निकलेंगे। इस प्रकार से दवा और गलीचे के क्षेत्र में हुए नुकसान की भरपाई खिलौनों एवं बल्ब के क्षेत्र से हो जाएगी। हालांकि आयात कर बढ़ाने में एक और संकट है। सस्ते आयातों से संरक्षित हमारे उद्योग अकुशल हो जाते हैं। जैसे सत्तर के दशक में अपने देश में घटिया फिएट तथा एंबेसेडर कारों का ही निर्माण होता था, चूंकि विदेश में बनी उन्नत कारों का आयात प्रतिबंधित था।

यदि हम चीन के सस्ते माल का प्रवेश बंद करेंगे, तो हमारे उद्यमी घटिया माल बनाना चालू कर देंगे, चूंकि उन्हें चीन से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी होगी। इस समस्या का निदान है कि हम घरेलू प्रतिस्पर्धा नीति को गंभीरता से लागू करें। जैसे सत्तर के दशक में टाटा ने देश में कार का उत्पादन करने की अनुमति मांगी थी। भारत सरकार ने वह अनुमति नहीं दी। इस कारण वालचंद तथा बिड़ला पर प्रतिस्पर्धा का दबाव नहीं बना और वे घटिया फिएट तथा एंबेसेडर कार बनाते रहे। अतः आयात कर बढ़ाने के साथ-साथ यदि हम घरेलू प्रतिस्पर्धा बढ़ाते हैं, तो हमारे उपभोक्ता को सस्ता माल भी मिलता रहेगा। ट्रंप की नीति का अनुपालन करना हमारे लिए एक और कारण से लाभदायक रहेगा। वर्तमान में हमारा विदेशी व्यापार घाटे में चल रहा है। हम 100 रुपए का निर्यात करते है, तो 125 रुपए का आयात करते हैं। ऐसे में आयात कर बढ़ाने से खिलौनों एवं बल्ब के क्षेत्र में घरेलू उत्पादन में 125 रुपए की वृद्धि होगी, जबकि गलीचे एवं दवा के उत्पादन में 100 रुपए की गिरावट आएगी। इसलिए डोनाल्ड ट्रंप के विषय को छोड़ दें, तो भी हमें आयात कर बढ़ाने ही चाहिए और मुक्त विदेशी व्यापार से पीछे हटना चाहिए। ट्रंप की दूसरी नीति अमरीकी पूंजी का अधिकाधिक निवेश अमरीका में कराने का है। आपने अमरीकी कंपनियों को धमकी दी है कि यदि वे विदेशों में निवेश करेंगे, तो उन पर लागू टैक्स की दर में वृद्धि की जाएगी। ट्रंप के इस कदम से अमरीकी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश कम किया जाएगा। साथ-साथ ट्रंप द्वारा ऊपर बताई गई संरक्षणवादी नीतियां अपनाने से अमरीकी अर्थव्यवस्था में तेजी आ रही है। अमरीकी डाओ जोंस सूचकांक 21,000 के ऐतिहासिक स्तर से आगे निकल गया है। अमरीकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ ने बीते समय ब्याज दरों में वृद्धि की है और चालू वर्ष में दो या तीन बार और वृद्धि करने के संकेत दिए हैं। ब्याज दरों की इस वृद्धि से संपूर्ण विश्व की पूंजी का बहाव अमरीका की ओर होगा। इससे भारत में आने वाला विदेशी निवेश पुनः प्रभावित होगा। ट्रंप की इस नीति का सामना हम अपनी पूंजी के पलायन को रोक कर कर सकते हैं। बीते समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफसोस व्यक्त किया था कि भारतीय उद्यमी भारत में निवेश करने के स्थान पर विदेशों में निवेश करना ज्यादा पंसद कर रहे हैं। मोदी के इस वक्तव्य से संकेत मिलता है कि भारत से पूंजी का पलायन हो रहा है। पनामा पेपर्स से संकेत मिलता है कि भारत से भारी मात्रा में पूंजी गैर कानूनी ढंग से विदेश जा रही है। हमारी पूंजी का यह पलायन खुले वित्तीय संसार को अपनाने की नीति के कारण हो रहा है।

ट्रंप को समझ आ गया है कि खुला वित्तीय संसार अमरीका के हित में नहीं है। ट्रंप चिंतित हैं कि अमरीकी पूंजी का पलायन हो रहा है। हमें भी चिंतित होना चाहिए कि भारतीय पूंजी का पलायन हो रहा है। यदि हम अपनी पूंजी के पलायन को रोक लें, तो ट्रंप के कारण भारत में अमरीकी पूंजी का न आना निष्प्रभावी हो जाएगा। यदि अमरीकी कंपनियों की 100 करोड़ की पूंजी नहीं आती है तो हमारे उद्यमी 150 करोड़ की पूंजी का भारत में ही निवेश कर सकते हैं। ऐसा करने पर ट्रंप की पालिसी हमारे लिए लाभप्रद हो जाएगी। सारांश है कि ट्रंप की नीतियां वैश्वीकरण से पीछे हटने की हैं। फुटबाल के मैच में ट्रंप ने अमरीकी गोल के सामने दीवार बनाने का मन बनाया है। ऐसे में हम यदि अपने गोल को खुला रखेंगे, तो निश्चित रूप से हारेंगे। हमें चाहिए कि ट्रंप की तरह अपने गोल के सामने भी दीवार बना दें। तब मैच खेलेंगे तो हम जीत सकते हैं। अतः ट्रंप की नीतियों का अनुसरण करते हुए हमें भी वैश्वीकरण से पीछे हटना चाहिए। आयात कर बढ़ाने चाहिएं और अपनी पूंजी के पलायन को रोकना चाहिए। इस दिशा परिवर्तन में रोड़ा अपने देश के नौकरशाहों का है। हमारे सचिवों का सपना होता है कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें विश्व बैंक में सलाहकारी के ठेके मिल जाएं। केंद्र सरकार के एक सेवानिवृत्त सचिव ने बड़े गर्व के साथ मुझे बताया था कि विश्व बैंक उन्हें 4,000 रुपए प्रति घंटा की दर से सलाहकारी का भुगतान करता है। इसलिए वह विश्व बैंक द्वारा बताई गई वैश्वीकरण की नीति भारत में धकेलते जाते हैं। इसी प्रकार नौकरशाहों के लिए लाभप्रद है कि देश के उद्यमी को चोर के रूप में पेश करें, जिससे नौकरशाही द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा पड़ा रहे। इसलिए नोटबंदी और बेनामी संपत्तियों के मुद्दे उठाकर उद्यमियों को प्रताडि़त किया जा रहा है। ऐसे वातावरण में भारत के उद्यमी अपने देश में निवेश नहीं करेंगे। मोदी के सामने चुनौती ट्रंप की नहीं है। ट्रंप की नीतियों को अपने पक्ष में बदला जा सकता है। मोदी के सामने असल चुनौती अपने नौकरशाहों से लोहा लेने की है, जो अपने क्षुद्र स्वार्थ की सिद्धि के लिए देश को वैश्वीकरण के उस गड्ढे में धकेलने जा रहे हैं, जिससे ट्रंप अमरीका को निकाल रहे हैं।

ई-मेल ः bharatjj@gmail.com


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