ध्यान का नियमित अभ्यास

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

श्रीश्री रवि शंकर

जब हम विश्व को अपने भाग की तरह गोचर करते हैं, तब प्रेम प्रभावशाली रूप से विश्व तथा हमारे बीच प्रवाहित होता है। यह प्रेम हमें जीवन के विरोधात्मक बलों एवं उपद्रवों पर काबू पाने के लिए सशक्त करता है…

ध्यान न कर सकने के बड़े कारणों में से एक यह है कि लोगों के पास पर्याप्त समय नहीं है, लेकिन अगर वे ध्यान करना आरंभ करते हैं तो पाते हैं कि उनके पास अधिक समय है। इसकी वजह है कि वे केंद्रित हो सकते हैं और अधिक कार्य कर सकते हैं। ध्यान का नियमित अभ्यास बेहतर अंतर्ज्ञान की ओर ले जाता है। यह मन को तीक्ष्ण बनाता है एवं विश्राम द्वारा मन को विकसित करता है। क्या आप ने निरीक्षण किया है कि आप के मन में हर पल क्या चलता रहता है? यह भूतकाल और भविष्य के बीच में डोलता रहता है। यह या तो जो बीत गया है, उसमें व्यस्त है या फिर भविष्य के बारे में सोचता रहता है। ज्ञान मन के इस तथ्य से जागरूक होना है। इस बात से जागरूक होना है कि जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं, तब मन में क्या चल रहा है। जानकारी तो पुस्तकें पढ़ने या इंटरनेट को देख कर भी प्राप्त की जा सकती हैं। आप किसी भी विषय पर पुस्तक खोल सकते हैं, लेकिन मन की जागरूकता पुस्तक से नहीं सीखी जाती। मन की एक और प्रवृत्ति है। यह नकारात्मकता को जकड़े रहता है। अगर दस सकारात्मक घटनाओं के बाद एक नकारात्मक घटना हो जाए तो मन नकारात्मक घटना से चिपका रहेगा। ध्यान द्वारा आप मन की इन दो प्रवृत्तियों से सजग हो जाएंगे और उसे वर्तमान में ले आएंगे। खुशी, आनंद, उत्साह, कार्यक्षमता ये सब वर्तमान में हैं। जब आप ध्यान द्वारा मन को उन्नत करते हैं तो इसकी नकारात्मकता को पकड़े रखने की प्रवृत्ति अदृश्य हो जाती है। आप वर्तमान क्षण में जीने का सामर्थ्य पा लेते हैं और भूतकाल को छोड़ने में सक्षम हो जाते हैं। अपने दैनिक जीवन में आप सभी प्रकार की परिस्थितियों से रू-ब-रू होते हैं, जो चुनौतीपूर्ण व आप पर भार डालने वाली हो सकती हैं। आप को जागरूकता के ऐसे स्तर की आवश्यकता है, जिससे आप अच्छा चुन सकें। ध्यान मन की विभिन्न अवस्थाओं के बीच संतुलन ला सकता है। आप भीतर के कठोर पहलुओं तथा नाजुक पहलुओं में अदल-बदल करना सीख सकते हैं। जरूरत पड़ने पर आप टिके भी रह सकते हैं और जरूरत पड़ने पर पकड़ ढीली भी कर सकते हैं। यह क्षमता सभी में उपस्थित है और ध्यान आपको इन अवस्थाओं के बीच सहजता से अदल-बदल करने के लिए समर्थ बनाता है।

यह सारा अभ्यास कठोर और नाजुक पहलुओं के बीच आगे-पीछे, अदल-बदल करने की क्षमता का विकास करने के लिए है। व्यक्ति के दैनिक जीवन में ध्यान करने से चेतना की पांचवीं अवस्था, जिसे ब्रह्म चेतना कहते हैं, प्रकट होती है। ब्रह्म चेतना का अर्थ है पूरे ब्रह्मांड को स्वयं का भाग रूप समझना। जब हम विश्व को अपने भाग की तरह गोचर करते हैं, तब प्रेम प्रभावशाली रूप से विश्व तथा हमारे बीच प्रवाहित होता है। यह प्रेम हमें जीवन के विरोधात्मक बलों एवं उपद्रवों पर काबू पाने के लिए सशक्त करता है। क्रोध और निराशा पल भर के लिए आकर ओझल हो जाने वाली क्षणिक भावनाएं मात्र बन जाती हैं। विश्राम व क्रिया विरोधाभासी मूल्य हैं, लेकिन वे एक-दूसरे की पूरक हैं। ध्यान इस क्षण को स्वीकार करना और प्रत्येक क्षण को गहराई में पूर्ण रूप से जीना है।


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