पूर्व सैनिकों की क्षमता का लाभ ले प्रदेश

By: Mar 28th, 2017 12:07 am

NEWSअनुज आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

हिमाचल में इस समय भूतपूर्व सैनिकों की संख्या लगभग एक लाख 30 हजार 225 है और वीर नारियों की संख्या 30 हजार 980। बड़ी संख्या मेें सेवानिवृत्त सैनिकों का पुनर्वास करना किसी चुनौती से कम नहीं है। पूर्व सैनिकों द्वारा सैन्य सेवाकाल के दौरान अर्जित सेवा भावना, दक्षता एवं हुनर का सदुपयोग हो, इसकी व्यवस्था होनी चाहिए…

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के साथ-साथ वीरभूमि के नाम से भी विख्यात है। चार परमवीर चक्र, 10 महावीर चक्र, दो अशोक चक्र, 18 कीर्ति चक्रों सहित कुल 847 वीरता पदकों को अपने नाम करने वाले अनेक हिमाचली योद्धाओं ने युद्धभूमि में प्राणों का बलिदान देकर वीरगाथाआें से परिपूर्ण कहानियों को जन्म देकर भावी पीढि़यों को भी सैन्य परंपरा का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया है। पहाड़ी युवाओं द्वारा भारतीय फौज की वर्दी पहनकर मातृभूमि की सेवा करने का एक गौरवशाली इतिहास और परंपरा रही है। प्रथम विश्वयुद्ध हो चाहे द्वितीय विश्वयुद्ध या फिर 1948 की भारत-पाक जंग के दौरान पहला परमवीर चक्र अपने नाम करने वाले कांगड़ा जिला के डाढ़ निवासी मेजर सोमनाथ शर्मा तथा सभी सैनिकों ने देश पर मर मिटने का अभूतपूर्व जज्बा प्रदर्शित कर प्रदेश का नाम रोशन किया है। आज भी हिमाचल के हजारों सपूत भारतीय सशस्त्र सेनाआें और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों का मजबूत हिस्सा बनकर सीमा प्रहरियों के रूप में वीरता एवं बहादुरी का दमखम दिखाते मिल जाएंगे।

हिमाचल प्रदेश में इस समय भूतपूर्व सैनिकों की संख्या लगभग एक लाख 30 हजार 225 है और वीर नारियों की संख्या 30 हजार 980। सेना को हमेशा युवा, आक्रामक और लड़ाकू बनाए रखने के चलते प्रतिवर्ष अमूमन 18 से 22 वर्ष का सेवाकाल पूरा कर चुके सैनिकों को सेवानिवृत्त कर घर भेज दिया जाता है। चूंकि हिमाचल प्रदेश से गौरवशाली सेना का हिस्सा बनने की हमेशा से ही परंपरा-रिवायत रही है, लिहाजा हालिया वर्षों में उसी अनुपात में सेवानिवृत्त होने वाले भूतपूर्व सैनिकों का प्रतिशत भी बढ़ा है। बड़ी संख्या में ऐसे कम आयु वाले सेवानिवृत्त सैनिकों का पुनर्वास करना किसी चुनौती से कम नहीं है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने इन्हीं शूरवीरों के कल्याण एवं पुनर्वास के लिए सैनिक कल्याण विभाग का गठन किया है। यह विभाग भूतपूर्व सैनिकों के लिए प्रदेश सरकार के अनेक विभागों में सरकारी नौकरियों में 15 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करता है। पहली जनवरी, 2016 से 31 दिसंबर, 2016 की अवधि में सैनिक कल्याण विभाग के सौजन्य से प्रदेश सरकार के 45 विभागों में कुल 723 भूतपूर्व सैनिकों को मनोनीत करके उनकी पुनर्स्थापना की व्यवस्था की है। यद्यपि अब अनुबंध पर नौकरी मिलने के कारण पूर्व सैनिकों को आर्थिक रूप से भारी नुकसान भी हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे के कारण कई भूतपूर्व सैनिकों की पदोन्नति भी लटक गई है। प्रदेश सरकार को इस दिशा में भी कारगर उपाय करने की जरूरत है, तभी भूतपूर्व सैनिकों के पुनर्वास का राज्य सरकार का संकल्प पूरा होगा।

जहां तक भूतपूर्व सैनिकों तथा उनके आश्रितों को मिलने वाली अन्य सुविधाओं की बात है, तो केंद्रीय सैनिक बोर्ड द्वारा प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत पूर्व सैनिकों के बच्चों को व्यावसायिक कोर्सों में पढ़ाई हेतु लड़कों को प्रतिमाह दो हजार रुपए और लड़कियों को 2250 रुपए प्रतिमाह की दर से छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। इस वर्ष हिमाचल से 2016-2017 के शैक्षणिक सत्र के लिए कुल 82 छात्रों के नामों की संस्तुति इस छात्रवृत्ति हेतु की गई है। केंद्रीय सैनिक बोर्ड द्वारा ‘चिल्ड्रन एजुकेशन ग्रांट’ के अंतर्गत भूतपूर्व सैनिकों के दो बच्चों को शिक्षा अनुदान के रूप में प्रतिमाह एक हजार रुपए की दर से वर्ष 2016-2017 सत्र के लिए प्रदेश के 724 बच्चों के नामों को स्वीकृति प्रदान की गई है। झंडा दिवस निधि से जरूरतमंद पूर्व सैनिकों, अपंग पूर्व सैनिकों एवं विधवाओं को भी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।  हिमाचल सरकार द्वारा जिला के मुख्यालय धर्मशाला में युद्ध संग्रहालय एवं स्मारक बनाने के लिए आठ करोड़ रुपए की राशि जारी की जा चुकी है। भूतपूर्व सैनिकों को राज्य सरकार और  रक्षा मंत्रालय, केंद्र सरकार की समस्त योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से विभाग द्वारा एक त्रैमासिक पत्रिका ‘शूरवीर हितैषी’ का प्रकाशन भी किया जा रहा है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं की चर्चा हो तो उनके त्याग, साहस, शौर्य, वीरता, पराक्रम, बलिदान समय की पाबंदी, अनुशासन और देशभक्ति जैसे गुणों की जरूर बात होती है। भारतीय सशस्त्र सेनाओं से प्रतिवर्ष लगभग 55 हजार सैनिक सेवानिवृत्त होते हैं। नौकरियां प्रदान करने के मामले में हमारी सेनाओं के तीनों अंग शुरू से ही बड़े नियोक्ता भी रहे हैं, जो प्रतिवर्ष दो से तीन हजार अधिकारियों और लगभग 60 हजार जवानों को अपने यहां रोजगार प्रदान करते हैं। जवानों की भर्ती के मामले में 2001 की जनगणना के आधार पर रिक्रूटेबल मेल पापुलेशन (आरएमपी) फैक्टर को प्रयेग में लाया जा रहा है। इसके अनुसार किसी भी राज्य की पुरुष आबादी की संख्या के अनुपात में नए सैनिकों की भर्ती के लिए रिक्तियों का कोटा बांटा जाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान सहित भारत के 10 बड़े राज्य कुल रिक्तियों का अकेले 75 प्रतिशत हिस्सा ले जाते हैं।

मजे की बात यह भी है कि भर्ती संबंधी योग्यता, पात्रता एवं लिखित परीक्षा के पैमाने पर इन बड़े राज्यों के युवाओं का स्कोर 32 फीसदी रहता है, जबकि हिमाचल और हरियाणा के युवा 60 से 70 फीसदी स्कोर लेकर भी कम रिक्तियों के चलते फौज में भर्ती होने से वंचित रह जाते हैं। पहले के मुकाबले अब यह आरएमपी फार्मूला हिमाचली युवाओं के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो रहा है। इसके लिए प्रदेश के दोनोें दलों के बड़े नेताओं को एक मंच पर आकर केंद्र सरकार के समक्ष यह मुद्दा उठाने तथा फार्मूले में फेरबदल के लिए समवेत स्वर में आवाज उठाने की दरकार है। इसी प्रकार भूतपूर्व सैनिकों द्वारा सैन्य सेवाकाल के दौरान अर्जित सेवा भावना, कौशल, दक्षता एवं हुनर का समाज एवं हित में सदुपयोग हो इसकी भी कारगर व्यवस्था होनी चाहिए।

ई-मेल : rmpanuj@gmail.com


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