बजट को धरातल पर उतारने की परीक्षा

By: Mar 15th, 2017 12:02 am

( कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं )

एक बजट के मार्फत प्रदेश की समूची आकांक्षाओं को संबोधित नहीं किया जा सकता, अतः हर कदम पर लीक से हटकर नएपन की अपेक्षा रहेगी। यह भी कि प्रदेश जिस तरह कर्ज के मर्ज से बेहाल है, वहां से प्रदेश सरकार को कई नकारात्मक आदतें भी बदलनी होंगी, ताकि वित्तीय अनुशासन की परिपाटी पुष्ट हो सके…

दस मार्च, 2017 को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने विधानसभा में अपने राजनीतिक जीवन का 20वां बजट पेश कर एक नई इबारत लिखी। निश्चित तौर पर इस बजट में सरकार की आगामी एक वर्ष तक की आर्थिक नीति की झलक देखी जा सकती है। इसी के तहत सरकार के कुछ अहम प्रस्तावों व नीतिगत फैसलों का भी आभास हुआ। बजट का आकार 35,783 करोड़ का रहेगा, जिसमें से 14,578 करोड़ अर्थात 40 प्रतिशत वेतन व पेंशन के व्यय पर खर्च होगा। कर्ज में डूबे प्रदेश को ब्याज अदायगी, ऋण वापसी तथा अन्य ऋणों पर 7053 करोड़ देय होंगे। इसके अलावा जो पैसा राजस्व में आएगा, वह प्रदेश सरकार द्वारा सरकार को चलाने तथा अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च होगा। प्रदेश की अदायगी में 48.16 केंद्रीय अनुदान से प्राप्त होता है अर्थात प्रदेश की आर्थिक केंद्र पर भी ज्यादा निर्भर रहती है। इसी वर्ष प्रदेश में चुनाव प्रस्तावित हैं, तो बजट का लोक लुभावना होना लाजिमी ही था। कहना न होगा कि इस बजट का स्ट्रोक युवा वर्ग को आकर्षित करना रहा। बजट में 19000 नए पदों का सृजन, बेरोजगारी भत्ता, कम्प्यूटर शिक्षकों व आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक माह में नई नीति तैयार करने का ऐलान इसी आकांक्षा को इंगित करता है। इसके अलावा स्वरोजगार को प्रोत्साहन देना सरकार की रणनीति को स्पष्ट करता है। चाहे बजट चुनावी कलम में लिखा हो, पर कहीं न कहीं प्रदेश के करीब दस लाख युवाओं को नई उम्मीद जरूर दिखेगी। कांग्रेस ने वर्ष 2012 के चुनावों में बेरोजगारी भत्ते की बात की थी। पिछले कुछ महीनों से कांगे्रस के भीतर व बाहर भी इस भत्ते ने खूब सुर्खियां बटोरीं, जिसमें युवा नेता विक्रमादित्य युवाओं से फेसबुक पर लाइव संवाद करके रू-ब-रू हुए। विपक्ष की मानें तो बेरोजगारी भत्ते के लिए 600 करोड़ की जरूरत होगी, जबकि बजट में महज 150 करोड़ की ही व्यवस्था की गई है। ऐसे में बेरोजगारी भत्ते की घोषणा को किस तरह से व्यावहारिक धरातल पर उतारा जा सकेगा? अनुबंध कर्मचारी तीन वर्ष की आस लगाए बैठे थे, लेकिन बजट में इस वर्ग को झुनझुना ही मिला। अब देखना दिलचस्प होगा कि बेरोजगारी भत्ता युवाओं को कितना काबिल या निठल्ला बनाता है, वह वक्त बताएगा। इसी कॉलम के जरिए जैविक खेती व औद्योगिकीकरण विकास को भी बजट में तरजीह दी गई है। इन दोनों क्षेत्रों में प्रदेश की दशा व दिशा को बदलने की ताकत है।

इसके अतिरिक्त किसानी व बागबानी तथा भाषा व संस्कृति के उत्थान के लिए भी वर्ष भर ‘दिव्य हिमाचल’ के संपादकीय पेज पर छपे लेखों ने बजट निर्माताओं को नई राह दिखाई है। किसानों के लिए कीवी प्रोत्साहन योजना, कृषकों व बागबानों को पावर स्प्रेयर, पावर टिल्लर तथा अन्य उपकरणों पर 12 करोड़ उपदान, नई पौधशाला प्रोत्साहन, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला, खेत संरक्षण योजना, पोली शीट बदलने हेतु ग्रीन हाउस परिवर्धन योजना, जैविक खेती पुरस्कार, उत्पादन चारा उत्पादन, गैर मौसमी/विदेशज सब्जियों को प्रोत्साहन इत्यादि योजनाओं से कृषि क्षेत्र में नई क्रांति लाई जा सकती है। लेकिन अब से प्रदेश सरकार के पास अब महज छह महीनों का कार्यकाल शेष बचा है, लिहाजा सियासी व्यस्तताओं के बीच इतनी सारी नई योजनाएं धरातल पर कैसे उतारी जा सकेंगी, यह तो आने वाला वक्त ही बता पाएगा।शिक्षा के लिए 6204 करोड़ की व्यवस्था, विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा प्लस तथा प्रयास प्लस योजनाएं लाई गई हैं। वहीं नैक-एक ग्रेड प्राप्त विश्वविद्यालय को सबसे ज्यादा 100 करोड़ का बजट शिक्षा की नई इबारत लिखने के लिए अति आवश्यक था। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों को महंगाई भत्ता देकर लाभान्वित किया गया, तो दूसरी तरफ जलगार्डों, सिलाई अध्यापिकाओं, मिड-डे मील वर्करों को भी वेतन वृद्धि दी गई है। हालांकि एक बजट के मार्फत प्रदेश की समूची आकांक्षाओं को संबोधित नहीं किया जा सकता, अतः हर कदम पर लीक से हटकर नएपन की अपेक्षा रहेगी। यह भी कि प्रदेश जिस तरह कर्ज के मर्ज से बेहाल है, वहां से प्रदेश सरकार को कई नकारात्मक आदतें भी बदलनी होंगी, ताकि वित्तीय अनुशासन की परिपाटी पुष्ट हो सके। इसके तहत जहां सरकार को राजस्व जुटाने की अनछुई संभावनाओं की तलाश कर उन्हें परिणाम में बदलने के प्रयास करने होंगे, वहीं सरकारी परंपरा में गैर जरूरी खर्चों पर भी नकेल कसनी होगी। साढे़ चार घंटे तक चले इस ऐतिहासिक बजट ने जहां नई योजनाओं के अनेक द्वार खोले, वहीं हर वर्ग को कुछ न कुछ देने की पेशकश की गई है। प्रदेश के हित में ऐसे बजट को हर कोई सलाम तो करेगा ही। हिमाचल जैसे प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न प्रदेश में हर वर्ष ऐसा बजट पेश किया जा सकता है। प्रदेश के अनुभवी आर्थिकी विश्लेषक भी इस बात को मान चुके हैं, तो चुनावी वर्ष में ही क्यों ऐसा जनकल्याणकारी बजट आता है, लंबे समय से यह प्रश्न हर हिमाचली के जहन में रहता है। कोई न कोई ऐसा नेतृत्व तो जरूर मिलेगा, जो प्रदेश को हर वर्ष ऐसे जनकल्याणकारी बजट के सपने को धरातल पर लाएगा।

ई-मेल ः ksthakur25@gmail.com


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