मावणा प्रशासन प्रणाली है हिमाचल की प्राचीनतम प्रणाली

By: Mar 22nd, 2017 12:05 am

समय बीतने पर ये मावणे सर्वेसर्वा बन गए और पंचायतों पर इन्होंने अपने अधिकार चलाने शुरू किए। उनका पद वंशानुगत बन गया। मावणा प्रशासन प्रणाली हिमाचल प्रदेश की प्राचीनतम प्रणाली थी और इसमें ग्राम देवी या देवता का मुख्य स्थान था…

प्रागैतिहासिक हिमाचल

आज भी बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्र में ऊन के वस्त्र पहने जाते हैं, जो प्रायः हाथ से ही कात कर और बुनकर बनाए जाते हैं। पालतू जानवरों का उपयोग उन्होंने सामान ढोने और परिवहन के लिए आरंभ किया। पशुओं के सामान ढोने की सुविधा के कारण उन्होंने सिंधु क्षेत्र के लोगों के साथ अपने व्यापारिक संबंध स्थापित किए। सिंधु प्रदेश को निर्यात होने वाली वस्तुओं में मुख्य थी देवदार की लकड़ी, बारहसिंगे के सींग, जड़ी-बूटियां और शिलाजीत। इसके बदले में वहां से खाद्य सामग्री, सूती कपड़ा और धातु के औजार अायात करते होंगे। जब उन घुमंतुओं का जीवन स्थायी हो गया तो उन्होंने संगठन की आवश्यकता को अनुभव किया, जो सामाजिक व्यवस्था चलाए और शासकीय प्रबंध करे। इसके लिए उन्होंने गांव या कुछ गांवों के समूह के बड़े-बुजुर्गों (सियाणों) को चुनकर मुखिया बना दिया और उसे मावी, मावणा या मवाणा कहने लगे। मावणा शब्द उपाधिसूचक लगता है और परंपराओं के अनुसार शासक मावी या मावणा कहा जाता था। वह पंचायत का मुखिया होता था और उसका पद वंशानुगत बन गया। शासन चलाने तथा समाज पर उसका नियंत्रण रखने के लिए उसे ग्राम देवता के प्रतिनिधि का रूप दिया गया। प्राचीन काल में ग्राम देवता ही किसी ग्राम या समाज की गतिविधियों का केंद्र होता था। सभी लोग उससे डरते थे कि समाज विरोधी काम करने से कहीं देवता रुष्ट न हो जाएं, जिससे उन्हें दंड मिले और उन्हें कष्ट भोगना पड़े। समाज तथा प्रशासन संबंधी सभी कार्य देवस्थान जिसे ‘थान’ ‘स्थानङ’ या ‘थाती’ कहते थे, में होता था। कठिनाई की स्थिति में वे लोग ग्राम देवता का भी परामर्श लेते थे। लोग मावणों को कर भी देते थे, जिससे वे अपना जीवनयापन कर सकें और शासन भी चला सकें। समय बीतने पर ये मावणे सर्वेसर्वा बन गए।  उनका पद वंशानुगत बन गया। मावणा प्रशासन प्रणाली हिमाचल प्रदेश की प्राचीनतम प्रणाली थी और इसमें ग्राम देवी या देवता का मुख्य स्थान था। हिमाचल की भौगोलिक धारणा जिस प्रकार हमारे सामने आज विद्यमान है, उस अर्थ में हिमालय शब्द वेदों में उपलब्ध नहीं है। वेदों में प्रायः हिमवान, हिमवत अथवा हिमवंत आदि शब्दों द्वारा वर्तमान हिमालय का संकेत मिलता है। ऋग्वेद के मंडल दस, सुक्त 12.1 मंत्र चार में उल्लिखित श्लोक का अर्थ है कि जिसकी महिमा से ये सब हिमाच्छादित पर्वत उत्पन्न हुए हैं, जिसकी सृष्टि यत ससागरा धरित्रि कही जाती है और जिसकी भुजाएं ये सारी दिशाएं हैं, उसके नाम वाले देव की हम हृदय से पूजा करें।


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