मोदी-शाह का मिशन-2019

By: Mar 23rd, 2017 12:05 am

पीके खुराना

( पीके खुराना लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं )

नरेंद्र मोदी की अब तक की रणनीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदुओं को संतुष्ट करने के बावजूद यहां भी मोदी के विकास के एजेंडे पर बात करते रहना पार्टी की नीति होगी। मोदी ने लोगों को विकास का जो सपना दिखाया है वह इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए है कि भाजपा सन् 2019 में और भी बड़ी जीत के साथ सत्ता में वापस लौटे। संघ के सहयोग से मोदी और अमित शाह इसी लक्ष्य पर काम कर रहे हैं और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए छोटी से छोटी बारीकियों तक जा रहे हैं…

विशेषज्ञ बार-बार गलत साबित हुए हैं। अन्ना हजारे से अलग होकर तथा अपना अलग राजनीतिक दल बनाकर अरविंद केजरीवाल कइयों की नजर में सिफर हो गए थे, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनावों में 28 सीटें जीत कर उन्होंने इतिहास रचा। लोकसभा चुनावों में मोदी ने वैसा ही करिश्मा दिखाया। राज्य विधानसभा चुनावों में उनकी जीत का रथ दिल्ली में रुका, जब एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने 67 सीटें जीत कर सारी भविष्यवाणियों की हवा निकाल दी। बिहार में फिर मोदी हारे और जीत का सेहरा प्रशांत किशोर के सिर बंधा। मीडिया के विशेषज्ञों ने प्रशांत किशोर के गीत गाने शुरू कर दिए। अब उत्तर प्रदेश में भाजपा की बड़ी जीत ने फिर से विशेषज्ञों की पोल खोली है। कई तरह के कयास लग रहे हैं। योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना एक आश्चर्य है और उनकी सफलता-असफलता को लेकर भी कयास लग रहे हैं, भविष्यवाणियां की जा रही हैं। मजे की बात है कि ज्योतिषी और मीडिया विशेषज्ञ दोनों ही बार-बार गलत साबित हुए हैं और कोई भी मानने को तैयार नहीं है कि उनका कयास पहले भी गलत था और अब जो कयास वे लगा रहे हैं, वे भी उतने ही गलत हैं।

यह सही है कि नए मुख्यमंत्री के सामने कई चुनौतियां हैं। वह नौकरशाही के तिकड़मों के आदी नहीं हैं, खजाना खाली है, कानून-व्यवस्था लचर है, लोगों की उम्मीदें बहुत बढ़ी हुई हैं, अल्पसंख्यकों में डर की भावना है, पर ऐसे सब कयास लगाने वाले मोदी को बहुत कम करके आंक रहे हैं। मोदी ने दिखाया है कि वह विशेषज्ञ माने जाने वाले लोगों की राय को दरकिनार करके सिर्फ चिडि़या की आंख पर निशाना साधे हुए हैं। अर्जुन की तरह उन्हें न चिडि़या दिखती है, न पेड़ और न बाकी सब कुछ। उत्तर प्रदेश उनका निशाना नहीं था, वह मंजिल का पड़ाव था। उनका लक्ष्य सन् 2019 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष को पूरी तरह से रौंदना है और वह तन्मयता से उसकी तैयारी में जुटे हैं। इसका सीधा-सा मतलब है कि मोदी ने दमित हिंदू भावनाओं को हवा दी है, लेकिन वह अल्पसंख्यकों को डराने का काम नहीं करेंगे। आइए, इसे कुछ और विस्तार में समझने का प्रयास करते हैं। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की आबादी इतनी है कि वह अपने आप में एक निर्णायक तत्त्व है। मुलायम सिंह यादव और यहां तक कि मायावती ने भी मुस्लिम समुदाय को रिझाने की कोशिशें की हैं। इससे हिंदू समाज में नाराजगी का भाव था, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे पूरी तरह से भुनाया है। उग्र हिंदुवादियों को रिझाने के लिए योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया है, लेकिन साथ ही केंद्र सरकार की योजनाओं का लागू होना सुनिश्चित करने के लिए दो उपमुख्यमंत्री भी साथ जड़ दिए और मंत्रिमंडल में नाममात्र ही सही, मुस्लिम समुदाय को भी प्रतिनिधित्व देकर यह संदेश दिया है कि सांप्रदायिकता को हवा नहीं दी जाएगी, अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण नहीं होगा और उन्हें परेशान भी नहीं किया जाएगा।

मैं वरिष्ठ टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई के इस विश्लेषण से सहमत हूं कि भारतीय जनता पार्टी ने विशाल बहुमत हासिल करने के बाद भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया है, तो इससे यही जाहिर होता है कि पार्टी की राजनीति में अगर लॉग-इन विकास है तो पासवर्ड हिंदुत्व है। भाजपा की राजनीति में यह कोई नई बात नहीं है। वे विकास की बात जरूर करते हैं और विकास की योजनाएं लागू भी करते हैं, लेकिन उनका पूरा अस्तित्व हिंदुत्व के मुद्दे पर टिका है। पार्टी की मूल पहचान जिस हिंदुत्व में है, उसमें योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की बड़ी भूमिका रही है, लेकिन इस बात को भी नहीं भुलाया जा सकता उत्तर प्रदेश के भाजपा कैडर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय नेता हैं। उल्लेखनीय है कि गत लोकसभा चुनावों के समय मोदी ने मुस्लिम टोपी पहनने से सार्वजनिक रूप से इनकार कर दिया था। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा। मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों ही, अपने-अपने समुदाय के साथ मुसलमानों के वोट बैंक पर भरोसा रखे रहे, जबकि मोदी ने अन्य पिछड़े वर्गों, अति पिछड़े वर्गों और हिंदुओं को लक्षित किया। उन्हें उदार मुस्लिम वोट मिले, शेष मुस्लिम समुदाय सपा, बसपा और कांग्रेस में बंट गया।

अखिलेश और मुलायम के झगड़े ने तो भाजपा को लाभ पहुंचाया ही, मायावती की मुस्लिमों को अपील ने भी हिंदू वोटों से भाजपा की झोली भर दी। लेकिन उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बाद भाजपा को एक और चुनौती का सामना करना होगा, जो उसे अपने ही काडर से मिल सकती है। करीब डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी नई भाजपा सरकार के सामने अब वे तमाम मुद्दे भी चुनौती के रूप में सामने आएंगे, जिन्हें वह केंद्र और राज्य दोनों जगह पूर्ण बहुमत न होने की बात कहकर टाल देती थी। किसानों को कर्ज माफी तथा रोजगार के नए अवसरों के सृजन जैसे घोषणा पत्र के विभिन्न मुद्दों के अलावा अब राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा अवश्य उठेगा और भाजपा नेता इस पर ज्यादा बहानेबाजी नहीं कर पाएंगे, हालांकि पार्टी के नेता इस पर लगातार यह कहते रहे हैं कि वे अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन अब इस प्रचंड बहुमत के कारण पार्टी के भीतर काफी दबाव होगा और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व तथा नए मुख्यमंत्री के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं है। संघ और उससे जुड़े कुछ दूसरे संगठनों के एजेंडे भी नई सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, जिसमें कई जगहों के नाम बदलना, कैराना में पलायन का मुद्दा आदि। मोदी, आदित्यनाथ और संघ इन्हें साथ लेकर चलने का भरसक प्रयत्न करेंगे।

इसके बावजूद मुझे लगता है कि कुछ विशेषज्ञों का यह डर बेबुनियाद है कि हिंदुत्व का एजेंडा इतना प्रभावी हो जाएगा कि विकास पीछे रह जाएगा या अल्पसंख्यकों की मुसीबतें बढ़ जाएंगी। मोदी संघ तथा अन्य अनुषंगी संगठनों को यह समझाने में कामयाब रहे हैं कि सत्ता में रहकर हिंदुत्व का एजेंडा तेजी से आगे बढ़ाना ज्यादा आसान है और सत्ता में रहने के लिए कुछ दिखावे तथा समन्वय आवश्यक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अब तक की रणनीति के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदुओं को संतुष्ट करने के बावजूद यहां भी मोदी के विकास के एजेंडे पर बात करते रहना पार्टी की नीति होगी। मोदी ने लोगों को विकास का जो सपना दिखाया है वह इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए है कि भाजपा सन् 2019 में और भी बड़ी जीत के साथ सत्ता में वापस लौटे। संघ के सहयोग से मोदी और अमित शाह इसी लक्ष्य पर काम कर रहे हैं और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए छोटी से छोटी बारीकियों तक जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जीत एक पड़ाव था, 2019 का चुनाव दस्तक दे रहा है और मोदी का निशाना भी वही है। मोदी और शाह की जोड़ी इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम शुरू कर चुकी है। यह देखना रुचिकर होगा कि अगले दो सालों में विभिन्न विपक्षी दलों की नीति और कारगुजारियां क्या होंगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगले दो साल देश की राजनीति में निर्णायक मोड़ लाएंगे।

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