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By: Mar 27th, 2017 12:05 am

चंद्ररेखा डढवाल

लेखन को पुरुष या महिला के स्तर पर बांटने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं। लेखन का स्तर सोचने व समझने पर निर्भर करता है। आप जीवन को लेकर क्या सोचते हैं और उसकी पेंचीदगियों को कितना समझ पाते हैं। संवेदना व वैचारिक अनुभवों पर यह निर्भर करता है। अनुभव लोगों से मिलने, स्थान-स्थान पर घूमने, प्रकृति से एकरस होने व अध्ययन से परिपक्व होते हैं। आग्रह-दुराग्रह से मुक्त रहते, आधुनिक चेतना से संपन्न स्थितियां, घरवालों, दुर्घटनाओं को उनके सही परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करती दृष्टि, इस सोच व समय को विस्तृत आयाम देती है। इस सब में स्त्री या पुरुष होने से कोई अंतर नहीं पड़ता, परंतु स्त्री का लेखन अपेक्षाकृत ज्यादा महत्वपूर्ण तो है ही क्योंकि वह सृजन घनीभूत क्षणों में भी घर और समाज से पूर्णतया अलग नहीं हो पाती। अपने लिए निःसंग एकांत नहीं रच पाती। इसका परिणाम यह भी हो सकता है कि कुछ विषयों से वह परहेज करे। मुख्यतया इसकी वजह से उसका लेखन स्वधर्मी न रहकर परधर्मी हो जाता है। उसके सरोकार सामाजिक हो जाते हैं। एक कविता है- ‘पुरुष ने लिखी/छापी/बेची-खरीदी/पढ़ी अक्षर-अक्षर पुरुष ने ही/ औरत के हिस्से में नहीं आई कोई किताब।’ स्त्री के बौद्धिक व निर्णायक होने की क्षमता को नकारते हुए उसकी रचनात्मकता को गैर जरूरी माना जा रहा है। आज बाजार ने उसे एक बहुत उपयोगी वस्तु में तबदील करते हुए ऐसा तिलिस्म रचा है कि स्त्री के कर्ता होने का भ्रम होता है। इस भ्रमजाल से मुक्त होने का प्रयत्न करने व घर-समाज के दबाव से लड़ते हुए स्त्री दिखती है, यह बड़ी बात है। हिमाचल की महिला साहित्यकारों के सामने भी यह सब तो है ही साथ ही संकोच भी है। आलोचना का नहीं, अस्वीकार का भय है।   किसी विषय विशेष पर लिखने में कोई भय महिला रचनाकारों में नहीं है फिर भी,हर कोई हर विषय पर लिखे, यह जरूरी भी तो नहीं। उनका कोई साझा साहित्यिक मंच भी नहीं, यह कमी उनकी लेखन की संप्रेषणीयता को कम करती है, समकालीन विषयों पर उनके विचार बहुत कम ही सामने आते हैं। एक क्षेत्र में तो हिमाचल की महिला रचनाधर्मियों का योगदान बहुत की कम है, वो है पत्र-पत्रिकाओं का संपादन। स्त्री लेखन को लेकर आश्वस्त हूं, पर उनकी निहित क्षमताओं की अभिव्यक्ति को अभी और मुखर होना है।

-राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धर्मशाला से विभागाध्यक्ष (हिंदी) के पद से सेवानिवृत्त। कविता, कहानी व संस्कृति पर राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त हस्ताक्षर


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