सतलुज की बड़ी सहायक नदी है बास्पा नदी

By: Mar 15th, 2017 12:05 am

शोङठोङ के स्थान पर बारङ खड्ड के सतलुज में मिलने के बाद करछम में इसके बाएं तट पर बास्पा नदी इसमें मिलती है। बासपा सतलुज की वह बड़ी सहायक नदी है, जो किन्नौर की खूबसूरत बास्पा, सांगला उपत्यका में बहती हुई यहां पहुंचती है…

हिमाचल की नदियां

सतलुज नदी – मुलगुन खड्ड को स्थानीय लोग ‘कोयङ गारङ’ भी कहते हैं। यह पांगी नाला के नाम से भी ख्यात है। यह मुलगुन उपत्यका के शीश से बनकर आती है। मुलगुन खड्ड की दायीं तरफ स्थित कल्पा के आगे ‘टोन्नङ-चे’ तक का क्षेत्र ‘साएराक’ के नाम से जाना जाता है। इसे होपु और शोबाल्यङ भी कहा जाता है। शोङठोङ के स्थान पर बारङ खड्ड के सतलुज में मिलने के बाद करछम में इसके बाएं तट पर बास्पा नदी इसमें मिलती है। बास्पा सतलुज की वह बड़ी सहायक नदी है, जो किन्नौर की खूबसूरत बास्पा, सांगला उपत्यका में बहती हुई यहां पहुंचती है। यह बाहरी धौलाधार पर्वत शृंखला की उत्तर-पूर्वी ढाल  से निकलती है। यह उपत्यका दक्षिण-पूर्व से धौलाधार और उत्तर-पूर्व से रल्दङ कैलाश पर्वत से घिरी है। रूक्ली खड्ड पर एक लघु विद्युत परियोजना स्थापित है। करछम में बसपा विद्युत परियोजना के चालू हो जाने के बाद बास्पा रूतुरङ के आगे अपने रास्ते से न आकर सुरंग के रास्ते आती है और  करछम में अपने संगम स्थल से कुछ की दूरी पर बाहर निकल कर सतलुज में गिरती है। इस उपत्यका में स्थित मसतरङ से ऊपर का संपूर्ण छितकुल क्षेत्र सांप-बिच्छु, छिपकली-मक्खी कीड़ा-मकोड़ा युक्त क्षेत्र है। सांप-बिच्छु आदि  के मसतरङ, खड्ड से पार छितकुल की सीमा में प्रवेश होते ही वे मूर्छित हो पड़े रहते हैं, खड्ड से पार आते ही वे पुनः चलना शुरू कर देते हैं। इसे छितकुल क्षेत्र की सुप्रसिद्ध ग्राम्यदेवी ‘छितकल माथी’ तथा उसके दामाद ‘कारूदेव’ की करामात माना जाता है। करछम से ओ ‘चोलिङ’ पहुंचने पर सतलुज के दाएं तट पर युलङ उपत्यका के शिखर से युला खड्ड जिसे स्थानीय लोग ‘खोटोगो-गारङ’ भी कहते हैं, मिलती है। करछम से आगे बाएं तट पर  रोपङ (सापनी) की लिखिगारङ, सतलुज में मिलती है। इसके आगे आने पर बायीं तरफ ‘बाटीचु किल्बा’ यानी प्याला सा (सुंदर) ‘किल्बा’ गांव आता है। चोलिंङ से आगे बढ़ने पर सतलुज की दायीं  तरफ टापरी से ऊपर ‘चगांव’ जिसे स्थानीय लोग ठोलङ भी कहते हैं, स्थित है। टापरी से आगे सतलुज के बाएं तट पर वांगतु पुल तक क्रमशः दूलिङ, मेल्लगर, ‘पनगर’ आदि खड्डें  इसमें मिलती हैं। टापरी के पार दूलिङ खड्ड जिस जगह पर सतलुज में मिलती है, उस जगह को ‘शोल्तु’ कहा जाता है। वांगतु के पास सतलुज के दाएं तट  पर ‘बड-पो या भाबा उपत्यका से वगार तथा सुरची’ नाम की दो खड्डों के मिलने से बनकर आने वाली वंगर खड्ड इसमें मिलती है।


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