सहज है साहित्य और मीडिया में थोड़ी असहजता

By: Mar 20th, 2017 12:04 am

सचिन संगर

साहित्य से प्रेरणा पाने वाले मीडिया तथा साहित्य के रिश्तों में थोड़ी असहजता स्वाभाविक है, कुछ उसी तरह जैसे बाप-बेटे के प्यार भरे रिश्ते में। लेकिन समस्या तब आन खड़ी होती है जब मीडिया, साहित्य होने की कोशिश करता है और साहित्य, मीडिया। अपनी हदों में बंधे दोनों एक-दूसरे के पूरक होकर अपने-अपने क्षेत्रों में नई ऊंचाइयां छू सकते हैं। दोनों की प्रकृति, प्रवृत्ति, भाषा तथा अभिव्यक्ति अलगन है। जब दोनों की नैसर्गिकता में अलगाव है तो फिर सभ्याचार भी जुदा ही होगा।  मीडिया चैनल में बतौर रिपोर्टर अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि मीडिया की गति उसे गंभीर नहीं होने देती। लेकिन समस्या तब खड़ी हो जाती है जब असली मुद्दे को दरकिनार कर मीडिया दर्शकों/पाठकों की भावनाओं का दोहन करने लगता है।

एंकर मॉडल हो जाता है, मीडिया ब्लॉटिंग पेपर और आम आदमी स्याही, जिसे चूसकर बाजार की उस गहरी मांद में फेंक दिया जाता है, जहां से बाहर निकलना उसके लिए संभव नहीं। बात का भात बनाने में मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने महारत हासिल कर ली है। टीआरपी के साथ नए मीडिया की क्लिक्स ने उसके सोचने की शक्ति छीन ली है।

वहीं साहित्य को भी अपनी खोई हरियाली वापस पाने के लिए अपनी जड़ों में बाजार का मट्ठा डालने से बचना होगा। खबरों की लहरों पर सवार साहित्यकार एक न एक दिन तो समय के समंदर में डूबेगा ही। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि साहित्यकार तप की बजाय मीडिया का जप करते हुए प्रसिद्धि के शिखर पर सवार होने का प्रयास कर रहे हैं। गुटों में बंटे साहित्यकार अपने गुट में उसी नए खिलाड़ी को शामिल करते हैं जो उनकी बोली में गुटर-गूं करे। तटस्थ या अच्छा साहित्यकार, भविष्य पर नजर रखता है और औसत, हाल पर। यही हाल मीडिया का भी है, नए मीडिया के आने से बाजार में नई चौपड़ बिछ गई है, जिसमें बिसात और मोहरों समेत खिलाड़ी भी बाजार के हैं। साहित्य को ई-साहित्य होने से लाभ तो पहुंचा ही है। सोशल मीडिया भी नए मुहावरे गढ़ते हुए साहित्यिक विमर्श की नई जमीन तैयार कर रहा है। अब ‘लप्रेकिए’ जो रच रहे हैं, उसे पढ़ा जा रहा है। हाइकू के बाद नैनो कहानियां चलन में हैं। प्रयोग का दौर है लेकिन लुगदी और गंभीर होने की जिद से बचते हुए नई जामीन तलाशनी होगी।

— साहित्य अन्वेषक तथा पूर्व मीडियाकर्मी सचिन संगर वर्तमान में कांगड़ा जिला में बतौर डीपीआरओ कार्यरत हैं।


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