साहित्य और पारंपरिक मीडिया बनाम सोशल मीडिया

By: Mar 20th, 2017 12:04 am

राजकुमार शर्मा

साहित्य और पारंपरिक मीडिया अभी अपने अंतर्संबंधों को लेकर द्वंद्व में ही थे कि नए या सोशल मीडिया के आगमन ने दोनों को सिरे से हिलाकर रख दिया।  जिन प्रवृत्तियों ने साहित्य और पारंपरिक मीडिया के संबंधों में दरारें पैदा की थीं, उन्हीं प्रवृत्तियों ने पारंपरिक मीडिया और नए या सोशल मीडिया में दीवारें खड़ी कर दीं, विशेषकर फेसबुक ने। अब तो पारंपरिक मीडिया ने भी फेसबुकिया ढर्रा अपना लिया है। सोशल मीडिया में फेसबुक अपनी परिभाषाएं स्वयं तय कर रहा है। अगर आपको इस मंच पर ‘सर्इव’ करना है तो अति के साथ खड़ा होना पड़ेगा। आप ‘नार्मल’ या संतुलित होंगे तो हाशिए से भी बाहर धकेल दिए जाएंगे। विडंबना है कि खबरों का भविष्य फेसबुक तय कर रहा है। पारंपरिक मीडिया को भी अपने नए सहोदर के हिसाब से कदम बढ़ाने पड़ रहे हैं। आम पाठक बाजार की वृत्ति और प्रवृत्ति दोनों को पकड़ने में पिछड़े जा रहे हैं। सामाजिक सरोकार और मूल्य बीते जमाने की बातें हो गई हैं। ऐसे में साहित्य की अस्मिता को लेकर चिंतन बढ़ना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य कि साहित्य अब बाजार के दलदल में धंसता जा रहा है। साहित्यकारों को बिना नींव ऊपर जाने के लिए सीढि़यां चाहिए। ऐसी ऊंचाई जहां किसी लिफ्ट से ऊपर चढ़ा तो जा सकता है, लेकिन उसके बाद समय की खाई में गिरने के बाद कोई नामलेवा भी नहीं रहता। कुछ साल पहले तक पारंपरिक मीडिया की कई कृतियां या निर्माण साहित्य का अंग बने, लेकिन अब ऐसे इक्का-दुक्का उदाहरण ही सामने आ रहे हैं।

पारंपरिक मीडिया की विधा रेडियो ने साहित्य के संवर्धन और संरक्षण में अहम भूमिका निभाई है। आजकल आकाशवाणी देश भर के गांवों में जाकर लोकगीत रिकार्ड कर रहा है। इन गानों को पहले स्थानीय बोली में लिपिबद्ध किया जा रहा है; फिर हिंदी तथा अंग्रेजी में। आकाशवाणी देश के महान साहित्यकारों और संगीतकारों के कार्यक्रम, साक्षात्कार तथा उन पर आधारित कार्यक्रम रिकार्ड करता है। इस तरह की तमाम रिकार्डिंग उसके पास मौजूद है। पिछली सदी के अस्सी के दशक में दूरदर्शन पर मशहूर सीरियल मिर्जा गालिब, भारत एक खोज, महाभारत, रामायण वगैरह आजकल व्यक्तिगत संग्रह के लिए भी उपलब्ध हैं। यह सारा कार्य शोध के बाद ही संपन्न किया जाता है।

   – पिछले 35 वर्षों से प्रसार भारती में कार्यरत वरिष्ठ रंगकर्मी राजकुमार शर्मा वर्तमान में आकाशवाणी, शिमला में सहायक स्टेशन कार्यक्रम के पद तैनात है। उन्हें देश के विभिन्न रेडियो स्टेशन पर कार्य करने का अनुभव है। उन्होंने कई रेडियो रूपक,नाटक तथा अन्य साहित्यिक फीचर का निर्माण किया है।


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