कहानी की फसल सूखी जाए रे

By: Apr 10th, 2017 12:05 am

आजकल हिमाचल में कवि तो बड़ी उछलकूद मचा रहे हैं, परंतु कथाकारों की चाल धीमी हो गई है। क्या कथा की जमीन इतनी पथरीली है, इतनी खुश्क है कि तोड़ने में बहुत ताकत लगती है और सब्र और समय चाहिए। क्या ज्यादा कागज काले करने पड़ते हैं। कहानी से सृजनकर्मी बचते हुए क्यों दिखते हैं। प्रारंभ के कथाकारों को ही देख लीजिए। ‘बर्फ के हीरे’ के ग्यारह हीरों में केवल खेमराज गुप्त और रतन सिंह हिमेश में ही चमक बची रही। ‘एक कथा परिवेश’ के 17 कथाकारों में पहले दो के अलावा सुंदर लोहिया, सुशील कुमार फुल्ल, विजय सहगल, जिया सिद्दिकी, कैलाश भारद्वाज, ले. कर्नल विष्णु शर्मा ही आगे जा कर कहानीकार बने। शेष कुछ उपन्यासकार हो गए और कुछ कवि। छठे दशक में कथाकार त्रयी  सामने आई, जिस में सुंदर लोहिया, विजय सहगल और सुशील कुमार फुल्ल थे। आठवें दशक में एक और कथाकार त्रयी केशव, सुदर्शन वशिष्ठ और योगेश्वर शर्मा। सन् 2000 के बाद फिर एसआर हरनोट, राज कुमार राकेश और बद्रीसिंह भाटिया त्रयी। सन् 2009-10 के बाद मुरारी शर्मा अकेले पड़ गए लगते हैं। उनका साथ किसी ने नहीं दिया। ऐसा नहीं है कि इन तिकडि़यों के समय और कथाकार नहीं आए। इस बीच कम से कम तीस कथाकारों की सूची है, जिसमें कुछ नाम छूट भी गए होंगे। गंगाराम राजी, कृष्ण कुमार नूतन, रमेश चंद्र शर्मा, सत्यपाल, सैनी अशेष, महाराज कृष्ण काव, श्रीनिवास जोशी, यशवीर धर्माणी, अशोक सरीन, गौतम व्यथित, प्रत्यूष गुलेरी, ज्ञान वर्मा, संसारचंद प्रभाकर, एमसी सक्सेना, रतन चंद रत्नेश, साधुराम दर्शक, दिनेश धर्मपाल, शंकर लाल शर्मा, पीसीके प्रेम, अरुण भारती, वासुदेव प्रशांत, रजनीकांत, ओंकार राही, प्रेम कुमारी ठाकुर, कुलदीप चंदेल, केआर भारती, त्रिलोक मेहरा, जगदीश शर्मा, मदन गुप्ता सपाटू, सुदर्शन भाटिया, श्याम सिंह घुना, संतोष शैलजा, सुदर्शना पटियाल, उषा दीपा मेहता, स्नेहलता भारद्वाज, भारती कुठियाला, डा. राज कुमार, आत्मा रंजन, सुरेश शांडिल्य, ओम भारद्वाज, उमेश कुमार अश्क, आशु जेठी आदि। मंडी और पालमपुर की जमीन कथाकारों के लिए बहुत उपजाऊ सिद्ध हुई। मंडी, जो साहित्यकारों का गढ़ माना जाता है, कथा का भी घर रहा। छठे दशक में कहानी में राष्ट्रीय स्तर पर दिखते हुए सुंदर लोहिया ने जल्दी ही चुप्पी साध ली। उनकी जगह योगेश्वर शर्मा नें ढाढस बंधाया और कभी-कभी लिखते हुए भी ‘भराड़ी घाट आ गया’ तक का सफर किया। एक और युवा नरेश पंडित बिजली की चमक से आए और आंखें चुंधियाते हुए बादलों में विलीन हो गए। हंसराज भारती भी बीच-बीच में कहानी- कहानी खेलते रहे। ऐसे ही एक और तेजेंद्र शर्मा बादलों में छिपते और झांकते रहे। पालमपुर की सर जमीन ने केशव सा कथाकार दिया, जिसका अंतर्मन काव्यमय रूप में कहानी देता रहा। सुशील कुमार फुल्ल समय-समय पर रहस्यमयी स्ट्रोक देते रहे। सुदर्शन वशिष्ठ सीधी सादी भाषा में कुछ न कुछ हौले-हौले सुनाते रहे। वैसे साहित्य का संसार भी अनोखा है जनाब। साहित्य परंपरा से भी चलता है। गुलरी जी ने मात्र साढ़े तीन कहानियां लिखीं तो यशपाल ने कितने ही उपन्यासों के  साथ सत्रह कहानी संग्रह लिख डाले। कोई क्या कर सकता है। कोई भी गुलेरी बन सकता है तो कोई भी यशपाल। इधर शिमला में बद्री सिंह भाटिया गांव की मिट्टी लाए। राजेंद्र राजन बीच-बीच में गुनगुनाते रहे। एसआर हरनोट ने ग्राम्य परिवेश से भारत भर में कुछ न कुछ पहुंचाया। मंडी के ही राजकुमार राकेश ने शिमला आकर एक रहस्यमयी चादर दूर तक फैला दी। धीरे-धीरे पुनः खामोशी छाने लगी। कवि ऊंचे-ऊंचे स्वरों में गाने लगे। कथाकारों की फुसफुसाहट दबने लगी। एक वीराना सा छाने लगा। आज कथा से मुलाकात कभी-कभी होती है। फुल्ल बीच-बीच में बुरांस से लाल हो जाते हैं तो कभी हरनोट अमलतास से लिखते हैं। राजन फेसबुक में बतियाते हैं, हंसराज भारती देर बाद लाल सुर्ख हो जाते हैं, तो भाटिया पीली सरसों से महकते हैं। राजकुमार कहीं दूर जा कर तान छेड़ते हैं। मुरारी अकेले ही गाते हैं। वशिष्ठ यह सब देख मंद-मंद मुसकराते हैं। बाकी तो वीराना है। भाई जी पाठक बड़ा सयाना है।

– सुदर्शन वशिष्ठ ने कहानी लेखन के साथ-साथ लोक संस्कृति पर भी महत्त्वपूर्ण काम किया है।


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