कातिल राह, मंजिल पर मौत

By: Apr 20th, 2017 12:02 am

दर्द से चीखते मंजर ने न जाने कितनी अर्थियां एक साथ अपने कंधे पर उठा लीं और सड़क दुर्घटना का पुनः एक विकराल चेहरा हिमाचल के आंचल में सिमट गया। मातम में डूबी हिमाचल की पहाडि़यां और कलंकित हुई वह राह, जिस पर यह प्रदेश पर्यटक को बुलाता है। यहां कोई फरियादी नहीं, बल्कि जिंदगी के साहिल पर मौत खड़ी रहती है। यह इसलिए क्योंकि हिमाचली रास्तों पर उत्तराखंड के अवैध परिवहन ने अपने बीहड़ खोज लिए हैं। यह बस खटारा-नाकारा तो थी, साथ ही ओवरलोडिंग के जुनून में रेंग-रेंग कर कमाई बटोर रही थी। करीब 44 लोगों की मौत भले ही हिमाचली क्षेत्र में हुई, लेकिन ताबूत बनकर दौड़ रही बस का चाल-चलन, उत्तराखंड के परिवहन माफिया का दस्तूर रहा। यात्रियों की पहचान बताएगी कि इस सफर की निशानियों में कितने परिवार, घर, मोहल्ले और बस्तियां सूनी हुईं। आश्चर्य यह कि इस रूट पर सवारियों को भी माल समझ कर ढोया जाता है और यह भी कि बिना अनुमति ऐसी बसें हिमाचल से होकर उत्तराखंड की परिवहन व्यवस्था का नासूर बनकर दर्ज हो रही हैं। बेरोकटोक ऐसी परिवहन सेवाओं का हिमाचल में शरीक होना हमें एक ऐसा जख्म दे गया, जो निर्दोष लोगों की मौत का कफन बनकर वर्षों तक चस्पां रहेगा। करीब अठारह किलोमीटर हिमाचली सीमा में घुसकर ऐसी बसें हिमाचल को भी तोहमत देती हैं, लेकिन आश्चर्य यह कि प्रदेश की सीमा पर चौकसी नदारद है। बाहरी प्रदेशों की बसों की यांत्रिक पड़ताल करना अगर कठिन है, तो भी ओवरलोडिंग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। परिवहन समझौतों में यह भी तो ताकीद हो कि प्रदेश के संपर्क मार्गों पर बाहरी राज्यों की बसों का आकार-प्रकार कैसा हो। चौपाल क्षेत्र सरीखे हालात कमोबेश हिमाचल की सीमा से जुड़े अंतरराज्यीय रूटों पर स्थायी रूप से उपस्थित हैं। ऊना, सिरमौर, सोलन, कांगड़ा, चंबा या शिमला के बार्डर पर पहुंच रहीं अंतरराज्यीय बसों की स्थिति अत्यंत खराब पाई जाती है। इतना ही नहीं, मिट्टी के तेल पर भी गाडि़यां दौड़ाने तक की सूचनाएं विभाग को हैं, लेकिन समाधान की दृष्टि से कायदे-कानून दुबक कर रह जाते हैं। जाहिर तौर पर उत्तराखंड की खटारा बस ने न केवल अपने प्राण हिमाचल में त्यागे, बल्कि मासूम यात्रियों की जान भी ले ली। इस तरह की बसों से अब तक, उत्तराखंड से जुड़े हिमाचल में अगर 88 लोगों की जान गई है, तो इस पर विभागीय सख्ती अभिलषित है। हिमाचल में जीरो वैल्यू पर दौड़ रही बसों पर तुरंत अंकुश लगाना चाहिए और यह नियम एचआरटीसी की बसों पर भी अमल में लाया जाए। विडंबना यह है कि हिमाचल के सरकारी फ्लीट के शानदार रुतबे के बावजूद कुछ बसें भयावह तस्वीर पेश करती हैं। कुछ जिला मुख्यालयों या पर्यटक स्थलों से दिल्ली या शिमला कूच कर रहीं डीलक्स या सेमी-डीलक्स बसों को एचआरटीसी के बेड़े से हटाने की जरूरत है। अंत में ऐसी दुर्घटनाओं के बाद कई तरह के मुआयने स्वाभाविक तौर पर होंगे और यह भी देखा जाएगा कि सड़क से उछल कर बस क्यों नदी में समा गई। कहने को दुर्घटना स्थल से एनएच ही गुजर रहा था, लेकिन पर्वतीय अंचल में आवश्यक मानदंडों की किरकिरी भी कई बार मौत की सौदागर बन जाती है। यह दुर्घटना हिमाचल के विकास पथ पर चौपाल क्षेत्र का विश्लेषण दो तरह से भी करेगी। पहले यह देखा जाएगा कि आपदा प्रबंधन के वादे में हिमाचल कितना सक्षम हुआ और दूसरे यह भी देखना होगा कि आवश्यक चिकित्सीय सेवाओं या ट्रॉमा सेंटर की स्थापना से कितनी दूर रहा यह घातक मंजर। काश! हिमाचल की सतरंगी बसों में से कोई एक तो ऐसे दुरूह क्षेत्रों से निकले ताकि परिवहन की सुरक्षा में सरकारी बसें और नाम कमाएं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App