कितना स्मार्ट शिमला

By: Apr 9th, 2017 12:05 am

शिमला यानी पहाड़ों की रानी, जिसकी प्राकृतिक खूबसूरती हर किसी को बरबस ही अपनी ओर चुंबक की तरह आकर्षित कर लेती है। शहर में हर रोज सैकड़ों सैलानी पहुंचते हैं, लेकिन सुविधाओं के लिहाज से कितना स्मार्ट है शिमला, इसी की तफतीश करता इस बार का दखल …

शिमला में नगर सरकार की शुरुआत दिसंबर 1951 में हुई थी। 1876 में पंजाब सरकार ने शिमला में नगर बोर्ड शिमला का गठन किया था। उस समय बोर्ड में 19 सदस्य थे, जिसमें सात अधिकारी व 12 गैर अधिकारी होते थे। 12 गैर अधिकारी सदस्यों में से नौ सदस्य चुनकर आते थे,जबकि तीन सदस्यों को सरकार द्वारा नामांकित किया जाता था। दिसंबर 1951 में शिमला नगर सरकार की शुरुआत हुई। 1962 से सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। उस समय तक नगर सरकार का स्वरूप पंजाब में संचालित होता था, लेकिन हिमाचल प्रदेश पुनर्गठन के बाद 1968 में हिमाचल प्रदेश नगर पालिका अधिनियम लागू किया गया। मौजूदा समय में नगर निगम शिमला में पार्षदों की संख्या 28 है, जिसमें से तीन पार्षद मनोनीत हैं। इन पार्षदों का चयन प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है। इनका चयन सामाजिक सेवा सहित अन्य जनहित के कार्यों पर किया जाता है। पार्षद वार्ड का प्रतिनिधित्व करता है। शिमला राजधानी होने के चलते शिमला में आबादी का बोझ बढ़ा है। शिमला कंकरीट के जंगल में तबदील हो चुका है। शहर के मुख्य क्षेत्रों सहित उपनगरों में बहुमंजिला भवन खड़े हो गए हैं। शहर में आबादी का बोझ बढ़ने से शहर में मूलभूत सुविधाओं का दायरा भी कम हुआ है, जो शहर की जनता के लिए आए दिन की परेशानी का कारण बनता जा रही है।

नेता-अधिकारियों की पहली पसंद

राजधानी होने के साथ-साथ शिमला शहर एक पर्यटन स्थल भी है।  ऐसे में हर किसी के दिल में यहां बसने की ख्वाहिश रहती है। नेता और अधिकारीगण तो शिमला में बसने के लिए लालायित रहते हैं। हिमाचल का शायद ही ऐसा कोई नेता हो, जिसका शिमला शहर में अपना घर न हो। इसी तरह सेवारत व सेवानिवृत्त अधिकारियों के  भी शहर में अपने भवन हैं। वहीं,प्रदेश के धन्नासेठ भी शिमला में अपना एक अदद आशियाना बनाना चाहते हैं। यही नहीं बाहरी राज्यों से भी लोग यहां अपना आशियाना बनाकर बसना चाहते हैं। लिहाजा यहां  फ्लैट और मकान बनाए जा रहे हैं। इससे न केवल यहां प्रापर्टी के रेट बहुत ज्यादा हो गए हैं बल्कि मौजूदा सुविधाओं पर भी भारी दबाव रहता है।  कही-कहीं तो अवैज्ञानिक तरीके से भी भवनों को बनाया जा रहा है।

निगम में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित

नगर निगम शिमला में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। निगम में पांच वर्ष बाद चुनाव होते हैं, जिसमें पार्षद, महापौर व उपमहापौर का चयन किया जाता है। निगम में माकपा, कांग्रेस व भाजपा समर्थित पार्षद हैं।

न पानी पर्याप्त, न ही डाक्टर,बसें भी नाकाफी

शिमला में हर दिन 42 से 45 एमएलडी पानी की जरूरत है। शहर में 100 मेगावाट बिजली की आवश्यकता रहती है। इसके अलावा शहर में 250 के करीब बसें और एक हजार डाक्टरों की आवश्यकता रहती है। मगर जनता को जरूरत के अनुसार सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। शहर में विभिन्न पेयजल परियोजनाओं से 35 से 38 एमएलडी पानी मिल रहा है। शहर में पिछले एक डेढ़ वर्ष से पानी की किल्लत चल रही है। हालांकि नगर निगम पेयजल परियोजनाओं में पानी पर्याप्त मात्रा में होने का दावा कर रहा है, मगर लीकेज की समस्या के चलते काफी पानी व्यर्थ में ही बह रहा है।  शहर में मौजूदा समय में 200 के करीब बसें चल रही हैं। मगर बसों का आपरेशन सही से न होने के कारण उक्त बस सेवा भी जनता के लिए कम पड़ रही है। निगम की दर्जनों बसें सुबह व शाम के समय स्कूली छात्रों को लेकर जाती हैं। ऐसे में अन्य वर्ग को दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि शहर में चलने वाली बसों की संख्या में और बढ़ोतरी की जाए। शिमला में आईजीएमसी, केएनएच और रिपन अस्पताल में डाक्टरों की संख्या 500 के करीब है, जो जरूरत के अनुसार कम है। अस्पतालों में 700-800 डाक्टरों की जरूरत रहती है।  शहर में बिजली, बसें, स्वास्थ्य सुविधाएं और बेहतर पुलिस सेवा का जिम्मा सरकार का रहता है। मगर सरकार जरूरत के लायक सुविधा जुटाने में नाकाम रही है। शहर में पार्किंग व पेयजल की जिम्मेदारी नगर निगम पर है। नगर निगम प्रशासन भी जनता की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा है। शहर में पार्किंग स्थल भी सीमित हैं, जिस कारण वाहन सड़कों के किनारों पर ही पार्क हो रहे हैं, जो जाम का कारण बन रहे हैं।

विकास नहीं हुआ

हेत राम वर्मा का कहना है कि जिस तरह शिमला शहर बसा है और शहर में आबादी का भार बढ़ा है, उस हिसाब से मूलभूत सुविधाओं का विस्तार नहीं हो पाया है। शहर के विकास के लिए कुछ नहीं हो पाया है। शहर में ट्रैफिक जाम व पेयजल किल्लत बढ़ती जा रही है। जिसको सुधारने के लिए योजना के तहत कार्य करने की जरूरत है।

विकास से अछूता

सुभाष वर्मा का कहना है कि राजधानी शिमला में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ है। अंग्रेजों ने शिमला के लिए जो पानी लाया था,आज भी उक्त सुविधा यथावत है। इसके सुधार के प्रयास नहीं हुए, शहर में जाम की भारी दिक्कतें हैं। मगर सर्कुलर रोड को चौड़ा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। शहर में जाम की समस्या विकराल हो गई है।

कंकरीट का जंगल बना

प्रताप चंद का कहना है कि पिछले 50 वर्षों के दौरान शिमला कंकरीट के जंगल में तबदील हो गया है। शहर में अव्यवस्थित तरीके से निर्माण हुआ है, जो आज शहर के लिए परेशानी का सबब बन गया है। शहर में ग्रीन एरिया खत्म हो रहा है। शहर के लिए आवश्यक है कि अधिक संख्या में पेड़ों को रोपित किया जाए।

प्राकृतिक सौंदर्य को ग्रहण

रविंद्र सिंह ने कहा कि हिल्स क्वीन प्राकृतिक सुंदरता के लिए विश्व प्रख्यात है। मगर पिछले 50  वर्षों के दौरान प्राकृतिक सौंदर्य को संजोए रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया, जिसके चलते शिमला की प्राकृतिक सुंदरता खोने लगी है। आज आवश्यकता है कि इसे बचाने के लिए वनीकरण के लिएकदम उठाए जाएं।

शिमला बचाने आगे आया एनजीटी

शहर पर बढ़ते दबाव को लेकर सरकारों में चिंता नहीं दिख रही, यही वजह है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)को आगे आना पड़ा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सरकार से शहर की कैरिंग कैपेसिटी की रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश करीब एक साल पहले दे रखे हैं। शिमला शहर में तेजी से हो रहे शहरीकरण और प्रदेश व बाहर से लोगों के पलायन को देखते हुए एनजीटी ने सरकार को कहा था कि वह यह देखे कि शिमला शहर की कैरिंग कैपेसिटी कितनी है। जितनी जनसंख्या और वाहनों का दबाव शिमला शहर पर है, क्या शहर उसके लिए सक्षम है कि नहीं। यही नहीं, एनजीटी ने सरकार से शिमला शहर के भविष्य की योजना का जिक्र भी इस रिपोर्ट में करने को कहा है।  यही नहीं ,इस रिपोर्ट में यह भी बताना होगा कि भविष्य की आबादी के लिए सरकार किस तरह पर्यावरण को सुरक्षित रखकर सुविधा प्रदान कर सकती है। एनजीटी ने शिमला में मौजूदा समय में 17 हरित क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर रोक लगा रखी है।

दोषियों के खिलाफ नहीं मिली चालान की अनुमति

दूषित पानी पिलाया और पूरा शहर लिटाया

यूं तो शिमला प्रदेश की राजधानी है, लेकिन यहां पर पानी जैसी सुविधाओं की कमी तो है ही साथ में यहां पानी की गुणवत्ता को लेकर समय-समय पर सवाल उठे हैं। इसका उदाहरण शहर में बीते साल फैला पीलिया है। पीलिया ने शहर की एक बड़ी आबादी को अपनी चपेट में लिया और करीब दो दर्जन लोगों की जान भी चली गई। दरअसल सीवरेज के पानी के पेयजल स्रोतों में मिलने की वजह से शहर में पीलिया फैला था। दिसंबर 2016 में पुलिस की एक विशेष जांच टीम ने इस मामले की जांच पूरी कर चार्जशीट तैयार भी की और इसे अगली कार्रवाई के लिए सरकार को भेज रखा है। चार्जशीट में कुल 24 लोगों को आरोपी बनाया गया है। चार्जशीट में 22 अधिकारियों के अलावा दो अन्य को नामजद किया गया है। चार्जशीट में नौ लोगों को मुख्य आरोपी बनाया गया है, जिनमें आईपीएच विभाग के सात अधिकारियों के अलावा सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का ठेकेदार और  सुपरवाइजर शामिल है। पुलिस ने अपनी जांच में इन लोगों को शिमला में पीलिया फैलने के लिए दोषी पाया था। इनके अलावा जार्चशीट में 15 अधिकारियों को सहआरोपी बनाया गया। इनमें आईपीएच के अधिकारियों के अलावा नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दो-दो अधिकारी भी शामिल थे। हालांकि पुलिस पांच माह पहले इस केस में चार्जशीट सरकार को सौंप चुकी है,लेकिन अभी तक सरकार ने आरोपी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी नहीं दी है।

25000 के शहर में दो लाख आबादी

एक वर्ग किलोमीटर का शहर दरअसल अंग्रेजों ने 25 हजार की आबादी के लिए बनाया था, लेकिन इसके बाद तेजी से यहां की आबादी बढ़ी है। 2001 में शिमला की आबादी 1.42 लाख से ज्यादा थी, जो कि 2011 में 1.70 लाख के करीब थी। अब यह आबादी दो लाख को भी पार कर गई है। इसके अलावा हर साल यहां सैकड़ों सैलानी भी आते हैं। यहां की आबादी का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां 4,197 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में रह रहे हैं।

समय के साथ नहीं हुआ विकास

अंग्रेजों के समय में बनी आधारभूत सुविधाओं को आज की दो लाख से ज्यादा आबादी भोग रही है। यही वजह है कि शिमला शहर पर सुविधाओं के लिए भारी दबाव पड़ा है। दरअसल जिस तेजी से शिमला शहर बढ़ा है,उसी अनुपात में शिमला शहर में सुविधाओं का विस्तार नहीं हुआ है। शहर में अंग्रेजों द्वारा बिछाई गइर्ं सीवरेज की लाइनों पर मौजूदा आबादी का भार है। शहर में पुरानी सीवरेज लाइनें बिछी  हैं ,जो कि अब खराब हो रही हैं। वहीं,हालात ये हैं कि आज भी शहर के कई हिस्सों में सीवरेज लाइन नहीं है।

आपदा में बचाव कार्य मुश्किल

शिमला शहर में यदि भूकंप जैसी कोई आपदा आती है, तो यहां बचाव कार्य करना बेहद मुश्किल होगा। एक जानकारी के अनुसार शिमला शहर का करीब 80 फीसदी हिस्सा आपदा के लिहाज से सुरक्षित  नहीं है। आपदा  आने पर इन क्षेत्रों में राहत दल का पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। लोअर बाजार, मिडल बाजार, राम बाजार, कृष्णानगर, कुटाधार, संजौली, समिट्री, सांगटी, ढली का इंद्रनगर आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर एंबुलेंस का पहुंचना भी मुश्किल हो जाएगा।

90 हजार गाडि़यां, पर पार्किंग की दिक्कत

पहाड़ों की रानी शिमला में हर साल ट्रैफिक का दबाव बढ़ता जा रहा है।  आंकडों के अनुसार, शिमला शहर में करीब 90 हजार वाहन पंजीकृत हैं। वहीं हजारों की तादाद में यहां वाहन सैलानियों और प्रदेश के दूसरे हिस्सों से यहां पहुंचते हैं।  जानकारी के अनुसार 1995 में शिमला में पंजीकृत वाहनों की तादाद करीब 16,500 थी,  जो कि अब 90,000 तक जा पहुंची है। वहीं, शिमला शहर में वाहनों के लिए पार्किंग सुविधा नहीं है। इससे इनमें से अधिकांश वाहन शहर की सड़कों पर ही पार्क होते हैं, जो यहां अकसर ट्रैफिक जाम को बढ़ावा दे रहे हैं।

सड़कों को चौड़ा करने की जरूरत

समर सीजन में यहां आने वाले वाहनों की तादाद तीन से चार गुना बढ़ जाती है। सड़क पर वाहनों के दबाव को कम करने के लिए शिमला शहर में जहां मौजूदा सड़कों को चौड़ा करने की जरूरत है, वहीं नई सड़कें भी बनाई जानी चाहिएं। हालांकि अब शिमला की लाइफ लाइन कहलाने वाले कार्ट रोड को चौड़ा करने का काम किया जा रहा है। सड़क पर करीब 70 स्थानों को चिन्हित किया है, जहां इस इसे चौड़ा किया जाना है। वैसे सरकार ने प्लान बनाया है कि शहर में वैकल्पिक सड़कों का निर्माण किया जाएगा। इनमें होटल होली-डे होम से कृष्णा नगर होकर एनएच बाइपास तक, होली-डे होम से लालपानी, छोटा शिमला से  फ्लावर डेल, धोबीघाट से मल्याणा और रूलदूभट्टा से शांकली की सड़कें प्रस्तावित हैं, लेकिन ये सड़़कें कब धरातल पर बनेंगी, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

शिमला के आसपास नहीं बना नया शहर

राजधानी शिमला पर जनसंख्या का भारी दबाव है। ऐसे में जरूरत यह थी कि इससे आसपास सेटेलाइन टाउन बनते, जो कि शिमला शहर पर पड़ रहे भार को कम करते, लेकिन सरकारें आती और जाती गईं, किसी भी सरकार ने शिमला शहर के दबाव को कम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसका परिणाम यह हुआ कि शिमला शहर फैलता गया। आज शिमला के नगर निगम से ज्यादा का क्षेत्र शहर के चारों ओर विकसित हो गया है। शोघी से लेकर नालदेहरा तक शिमला में तेजी से आवास बने हैं। अब तो मुख्य शहर के साथ लगते क्षेत्रों में भारी सख्ंया में लोग बस रहे हैं।

जुब्बड़हट्टी में  सेटेलाइट टाउन का प्लान

शहर के समीप प्लांड नगर बनाने की जरूरत थी, जो कि अब तक पूरी नहीं हुई है। हालांकि अब सरकार ने शिमला के समीप जुब्बड़हट्टी में एक सेटेलाइट टाउन का प्लान तैयार किया है। यह शहर सिंगापुर की  मदद से बनाया जाना है। यहां पर 450 बीघा में शहर बनाने की योजना है। इसमें सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद रहेंगी। सिंगापुर इस पूरे प्रोजेक्ट पर करीब 2500 करोड़ रुपए का निवेश करेगा।

कंकरीट का जंगल बन गया शहर

शिमला शहर कंकरीट के जंगल में तबदील होता जा रहा है।  शहर का हरित क्षेत्र दिनोंदिन सिकुड़ता जा रहा है। कहने को यहां 17 ग्रीन बैल्ट सरकार ने घोषित कर रखे हैं, जहां भवन निर्माण के कार्यों पर पूरी तरह से रोक है। यही नहीं, इन क्षेत्रों में सरकार की अनुमति के बिना पुराने घरों में बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन सरकार ही अपने इन दिशा निर्देशों का खुद उल्लंघन कर यहां हरित क्षेत्र में ही ऊंची पहुंच वाले लोगों को बड़े फ्लैट व होटल बनाने की अनुमति दे रही है।


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