कुछ दायित्व साझे हैं…

By: Apr 3rd, 2017 12:05 am

चंबा जनपद की हिमाच्छादित पर्वत शृृंखलाएं व मनमोहक घाटियां जिस तरह जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, उसी तरह लोक साहित्य में ढली लोक संवेदनाएं भी इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। जीवन के विविध आयाम चंबियाली लोक साहित्य में यत्र- तत्र बिखरे पड़े हैं। इन अमूल्य मोतियों को चुनने का कार्य कई विभूतियों ने अपने अपने स्तर पर बड़ी मेहनत व शिद्दत से किया है। यह लोक मानस के लिए गर्व की बात है कि कुछ विभूतियां जिनमें स्व. अमर सिंह रणपतिया , स्व. मंगत राम वर्मा , स्व. नंदेश , स्व. दीपक वर्मा, स्व.हरी प्रसाद सुमन, स्व. डी एस देवल , आदि का नाम विविधायामी  सृजनधर्मिता के लिए बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। इनका योगदान भावी पीढि़यों का सदैव मार्गदर्शन करता रहेगा।

वर्तमान में, कई वरिष्ठ साहित्यकार व युवा कवि लेखक भी सृजनधर्मिता को निभाते हुए निरंतर सृजनरत हैं। वरिष्ठ साहित्यकारों में देव बड़ोत्रा , पद्मश्री विजय शर्मा, चंचल सरोलावी कुलभूषण उपमन्यु , रमेश जसरोटिया अमीन शेख चिश्ती, शब्बीर तरन्नुम , राज सिंह राणा , उषा मेहता आदि कई नाम उल्लेखनीय हैं, अपनी अपनी कलम से लोक साहित्य में रंग भरने में जुटे हैं। हिमाचल के विस्तृत भूभाग में विभिन्न बोलियां बोली जाती हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोकाचार भी अलग- अलग हैं। फिर भी रंगोली के रंगों की मानिंद ये सब लोक जीवन की खूबसूरती को अपने अपने रंगों से एकाकार करते प्रतीत होते हैं।  यहां तक विभाग व अकादमी के दायित्व का प्रश्न है मैं स्वयं के साहित्यिक सफर का श्रेय रिटायर्ड भाषा अधिकारी परम शर्मा को देता हूं। उन्होंने मेरे भीतर के रचनाकार को पहचानते हुए मेरे कविता संग्रह की भूमिका लिखी,लोकार्पण किया और मुझे मंच भी दिया। जिन रचनाकारों को मैंने संदर्भित किया है, इन सबसे मैं अकादमी या भाषा विभाग के आयोजनों में ही परिचित हुआ हूं, फिर कोई विभाग या भाषा अकादमी के योगदान पर अंगुली कैसे उठा सकता है। कम से कम मैं तो नहीं।

हिमाचली को आठवीं अनुसूची में भाषा का दर्जा दिलाने के लिए मेरा मानना है कि विभाग ,अकादमी व साहित्यकार व सरकार सबका अपना अपना योगदान अपेक्षित है। सबकी एकजुटता व राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति ही इस मिशन को मंजिल तक पंहुचा सकती है। लोकधर्मी सर्जकों को विभाग व अकादमी को प्रोत्साहित करना चाहिए। इन सर्जकों के सहयोग से विभाग को विविध आयामी परियोजनाओं को चिन्हित कर उन पर कार्य करना चाहिए। राजाश्रय ही लोक साहित्य व लोक संवेदनाओं को सहेज सकने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। बहुत से क्षेत्रों में कार्य हुआ है परंतु मेरा मानना है कि अभी भी बहुत कुछ छूट रहा है जिसे सहेजा जाना नितांत आवश्यक है। मेलों, त्योहारों पर लोक साहित्य को भी स्थान दिया जाना चाहिए। कविता को बंद कमरों से खुले मंच तक लाया जाना चाहिए। मुंबइया कलाकारों के साथ- साथ लोक धर्मी  साहित्यकारों को भी बड़े मंचों पर स्थान मिलना चाहिए। विभाग, अकादमी व साहित्यिक मंचों को नवोदितों को अपने साथ जोड़ना चाहिए व उन्हें पल्लवित पुष्पित होने तक प्रोत्साहित करना चाहिए ,यह हम सबका साझा दायित्व है।

-अशोक दर्द, अपने लोकधर्मी साहित्य के लिए जाने जाते हैं। हिमाचली संदर्भों में उनकी साहित्यिक कृतियों को काफी लोकप्रियता मिली है।


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