कुलिंद थे श्रेष्ठ गणराज्य के पोषक

By: Apr 19th, 2017 12:05 am

कुलिंदों को श्रेष्ठ गणराज्य का पोषक माना गया है-कुलिंद्रेने गण पंगवान यूनानी विद्वान टालेमी ने भी उनका उल्लेख किया है। उन्होंने उनके क्षेत्र को कुलिंद्रेने कहा है, जहां से ब्यास, सतलुज और यमुना नदियां निकलती हैं…

 प्रागैतिहासिक हिमाचल

कुनिंद : हिमाचल प्रदेश से संबंधित प्राचीन जनपदों या गणराज्यों में कुनिंदों का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनका ज्ञान हमें साहित्य और पुरातत्त्व दोनों स्रोतों से उपलब्ध होता है। महाभारत में उन्हें कुलिंद कहा गया है। भीष्मपर्व, नवमाध्याय, श्लोक (63) अर्जुन ने इन पर विजय प्राप्त की थी। वे पहाड़ों में रहते हुए त्रिगर्तों के पड़ोसी थे। इनके पहाड़ों की जनजाति होने का प्रमाण विष्णु पुराण में भी मिलता है, जहां उन्हें (कुलिंदोपत्यका) अर्थात पर्वतीय घाटियों में रहने वाले कुनिंद कहा गया है। वराहमिहिर द्वारा रचित वृहत्संहिता में कुलिंदों को श्रेष्ठ गणराज्य का पोषक माना गया है-कुलिंद्रेने गण पंगवान यूनानी विद्वान टालेमी ने भी उनका उल्लेख किया है। उन्होंने उनके क्षेत्र को कुलिंद्रेने कहा है, जहां से ब्यास, सतलुज और यमुना नदियां निकलती हैं। मार्कंडेय पुराण में उनको कौलिंद कहा गया है। कुनिंदों से संबंधित सबसे रोचक तथ्य उनके सिक्कों से मिलता है। इनके सिक्के कांगड़ा से लेकर अंबाला, सहारनपुर तथा कुमाऊं तक के क्षेत्र मेें मिले हैं। इनके 54 सिक्के चांदी के, 21 यूनानी सिक्कों के साथ हमीरपुर जिला के मेवा टप्पा से प्राप्त हुए हैं। ज्वालामुखी से भी तीस यूनानी सिक्कों के साथ कुनिंदों के तीन चांदी के सिक्के मिले हैं। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के आरंभ में सिकंदर के आक्रमण के बाद भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र और अफगानिस्तान में कई यूनानी राज्य स्थापित हुए थे तथा कई सदियों तक जीवित रहे और लगभग कुषाणों के समय तक यूनानी राज्य और संस्कृति का प्रभाव रहा। यूनानी सिक्कों के साथ कुनिंदों के सिक्कों का मिलना इस बात का प्रमाण है कि कुनिंद इस युग से पहले ही सशक्त स्थापित थे। कुनिंदों के सिक्कों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है-अमोघभूमि सिक्के और छत्रोश्वर सिक्के। पहली श्रेणी के सिक्कों में एक ओर ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में राणा कुणिंदास अमोघमूतिस महारास लिखा गया है और समस्त पद को संस्कृत का राज्ञ कुनिंदस्य अमोघभूतिस्य महाराजस्य लिखा गया है। सिक्कों की दूसरी ओर कमल सहित लक्ष्मी की मूर्ति, एक मृग, वृक्ष तथा कुछ अन्य चिन्ह उकेरित हैं। दूसरी श्रेणी के सिक्कों में एक तरफ भगवतो छत्रोश्वर महात्मनहं ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। बीच में त्रिशूलधारी जटाजूट शिव की मूर्ति अंकित है। दूसरी ओर मृग, स्वस्तिक चिन्ह, एक वृक्ष और बिंदियों का वृत्तचित्र है। कुछ विद्वान वृक्ष को बोधिवृक्ष समझ कर कुनिंदों को बौद्ध धर्म का अनुयायी मानते हैं। कुछ अन्य विद्वान देवदारू वृक्ष मानकर इन्हें पहाड़ों के गणराज्य के सिद्धांत को समर्थित करते हैं। जेएन बैनर्जी ऋग्वेद के श्रीसूक्त का संदर्भ देते हुए मृग को लक्ष्मी का पशुरूपी चिन्ह बनाते हैं।


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