केजरीवाल की ईवीएम कुंठा !

By: Apr 25th, 2017 12:05 am

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के आधिकारिक नतीजे बुधवार को घोषित किए जाएंगे। यह एक छोटा, सीमित सा चुनाव था, लेकिन उसका विश्लेषण जरूरी है, ताकि प्रधानमंत्री मोदी के निरंतर करिश्मे, उत्तर प्रदेश के चुनावी प्रभाव और कुल मिलाकर भाजपा-युग का यथार्थ जाना जा सके। एमसीडी चुनावों के एग्जिट पोल के नतीजे सामने हैं। लगातार 10 साल की सत्ता, कई घोटालों और दिल्ली को ‘कचरा घर’ बनाने के आरोपों के बावजूद, यदि, भाजपा को तीनों निगमों में बंपर बहुमत हासिल होता है, तो कई सवाल और जिज्ञासाएं उठती हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है और नगर निगम उसके अधीन हैं। एग्जिट पोल के मुताबिक, ‘आप’ को 23-24 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है। भाजपा के खिलाफ कोई रुझान नहीं लगता, क्योंकि उसके पक्ष में 52 फीसदी वोट आ सकते हैं। कांग्रेस भी 23-25 फीसदी वोट के आसपास सरकती लग रही है। क्या केजरीवाल और ‘आप’ का राजनीतिक आकर्षण समापन की ओर है। ‘आप’ की हार का सिलसिला जारी है। पंजाब में 100 सीटें जीतकर सरकार बनाने का दावा करते थे केजरीवाल और उनके साथी। चुनावी परचम 19 सीटों पर ही थम गया। जो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार माने जाते थे, वे सभी चुनाव हार गए। गोवा में कुल 40 विधानसभा सीटों में से 39 पर ‘आप’ उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हुईं। दिल्ली में विधायक जरनैल सिंह ने पंजाब से चुनाव लड़ने के लिए अपनी राजौरी गार्डन सीट से इस्तीफा दिया था। उपचुनाव में ‘आप’ भाजपा-अकाली उम्मीदवार से हार गई और पंजाब में जरनैल की जमानत जब्त हुई। और अब क्रम एमसीडी में भी बुरी तरह हारने का है। यदि एग्जिट पोल के करीब ही जनादेश रहा, तो यह केजरीवाल की सत्ता और ‘आप’ के अस्तित्व पर बड़ा सवालिया निशान होगा। जनादेश की घोषणा से पहले ही, संभावित पराजय को लेकर, केजरीवाल और ‘आप’ के प्रवक्ताओं ने ईवीएम की गड़बडि़यों पर अपनी कुंठाएं व्यक्त करना शुरू कर दिया है। हैरत है कि फरवरी, 2015 में इन्हीं ईवीएम के जरिए ‘आप’ को 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी। तब तो केजरीवाल समेत सभी नेता बल्ले-बल्ले थे, लेकिन अब लगातार हार हो रही है, तो खुद के गिरेबान में नहीं झांकते। तब ‘आप’ के पक्ष में 52-55 फीसदी वोट आए थे। अब एमसीडी चुनावों में ‘आप’ 23-24 फीसदी वोट तक लुढ़कती लग रही है, जबकि दिल्ली में मुख्यमंत्री केजरीवाल की सत्ता अब भी बरकरार है। क्या कुंठाओं के जरिए राजनीतिक और चुनावी यथार्थ को ढका जा सकता है? क्या दिल्ली की जनता की केजरीवाल सरकार और ‘आप’ के प्रति नाराजगी और निराशा को नजरअंदाज किया जा सकता है? क्या लगातार प्रधानमंत्री मोदी और अब ईवीएम को कोसकर केजरीवाल और ‘आप’ नया जनादेश हासिल कर सकते हैं? ईवीएम पर न तो चुनाव आयोग और न ही अदालत ने केजरीवाल की दलीलों को मान्यता दी है। फिर बार-बार ईवीएम और उसकी भीतरी गड़बडि़यों पर सवाल क्यों? दरअसल यह केजरीवाल और ‘आप’ का ‘बौद्धिक दिवालियापन’ है। एमसीडी चुनाव के मतदान को कुछ देर के लिए नेपथ्य में डाल दें और सिर्फ एग्जिट पोल के आंकड़ों पर ही गौर करें। जो मतदाता वोट डालकर बाहर आते हैं, तो उनसे पूछा जाता है कि किसे वोट दिया? ऐसे हजारों मतदाताओं के सैंपल लेकर उन्हें संकलित किया जाता है और फिर एक अनुमान की घोषणा की जाती है। चूंकि ये सैंपल ईवीएम पर नहीं लिए जाते, फिर भी संभावित हार के मद्देनजर ‘आप’ के प्रवक्ता टीवी चैनलों की बहस में किलकिलाते रहे और दोषारोपण बार-बार ईवीएम पर ही…! यदि एमसीडी चुनावों में भी ‘आप’ पराजित होती है, तो उसे सबक सीखना चाहिए और अपनी राजनीति पर आत्ममंथन करना चाहिए। एक अलग किस्म की राजनीतिक व्यवस्था के केजरीवाल एवं उनके समूह के दावों के प्रति जनता का मोहभंग हो चुका है। जनता केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को लेकर भी सहमत नहीं है।


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