केजरीवाल की गरीबी रेखा

By: Apr 8th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

 लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

जेठमलानी की नजर में मुकदमा लेते समय तो केजरीवाल अमीर थे और फीस देते समय अचानक गरीब हो गए हैं। इसलिए अब वह उनका मुकदमा मुफ्त लड़ेंगे। जेठमलानी की पारखी नजर को मानना पड़ेगा। सारे देश में उन्होंने मुफ्त मुकदमा लड़ने के लिए मुवक्किल भी ढूंढा तो वह केजरीवाल मिला। यानी जो पौने चार करोड़ वकील को न अदा कर सके, वह बीपीएल की श्रेणी में आता है। बिलो पावर्टी लाइन। गरीबी रेखा के नीचे…

अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं। इसके साथ-साथ वह आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। इन आरोपों के दो वर्ग हैं। पहले वर्ग में वे आरोप आते हैं जो किसी भी राजनीतिक दल की नीतियों और उसकी विचारधारा को लेकर लगते हों। मसलन भाजपा कहती है कि सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा हैं और उनकी पार्टी की सरकार जो नीतियां लागू कर रही है, उससे देश रसातल में चला जाएगा। इस प्रकार के आरोपों का फैसला देश की जनता चुनावों में कर देती है। दूसरा वर्ग व्यक्तिगत आरोपों की श्रेणी में आता है। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति पर उसकी ईमानदारी को लेकर आरोप लगाता है या फिर वह कहता है कि अमुक व्यक्ति ने अमुक प्रकल्प में इतने लाख का घोटाला कर लिया है, तो ये व्यक्तिगत आरोप होते हैं। राजनीतिक दलों के व्यक्ति इस प्रकार के व्यक्तिगत आरोप भी एक-दूसरे पर लगाते रहते हैं। लेकिन सामान्य नैतिकता का तकाजा है कि इस प्रकार के आरोप लगाने से पहले इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि आरोप सही हों और उसके पुख्ता सबूत उपलब्ध हों। केजरीवाल का स्वभाव है कि वह सभी पर इस प्रकार के व्यक्तिगत आरोप लगाते रहते हैं। कुछ लोग चुपचाप उनकी गालियां सुन लेते हैं, लेकिन जो ज्यादा संवेदनशील होते हैं, वे इस अपमान को सह नहीं पाते। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के साथ भी यही हुआ। केजरीवाल ने उन पर दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के मामलों में आर्थिक भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। जेटली ने इन आरोपों को नकारा। उन्होंने कहा कि इन झूठे आरोपों की वजह से उनकी साख और छवि को धक्का लगा है। इसके हर्जाने के रूप में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय में केजरीवाल पर दिसंबर, 2015 में दस करोड़ का मानहानि का दावा ठोंक दिया।

जिस प्रकार केजरीवाल की बिना प्रमाण के आरोप लगाने की आदत है, उसी प्रकार राम जेठमलानी को भी विवादों से जुड़े मुकदमे लड़ने की आदत है। इंदिरा गांधी हत्याकांड से जुड़ा मुकदमा भी राम जेठमलानी के कारण अभी तक याद किया जाता है। जाहिर है कि जेठमलानी से अच्छा वकील केजरीवाल को भला और कहां से मिल सकता था? इस प्रकार जेठमलानी केजरीवाल के भी वकील हो गए। जेठमलानी ने कचहरी में जेटली से लंबी बहस की, लेकिन उनका ज्यादा जोर यह जानने में लगा रहा कि जेटली अपनी इज्जत की कीमत किस आधार पर आंक रहे हैं। वैसे यदि केजरीवाल के खिलाफ उस तथाकथित घोटाले का कोई सबूत होता तो शायद उन्हें इतनी लंबी कवायद करनी ही न पड़ती। अब केजरीवाल के पास और कोई रास्ता बचा ही नहीं था। अब तो उन्हें किसी तरह से यह सिद्ध करना था कि अव्वल तो इन आरोपों से जेटली का अपमान हुआ ही नहीं, यदि हुआ भी है तो उसकी कीमत दस करोड़ तो नहीं हो सकती। इस मोड़ पर अनेक राजनीतिज्ञों को जेठमलानी की जरूरत पड़ती है। जैसे-जैसे केस आगे बढ़ता जा रहा है, राम जेठमलानी की फीस का बिल बढ़ता जा रहा है।  अब तक वह तीन करोड़ बयालीस लाख रुपए हो गया है। परंतु केजरीवाल ने अभी तक उसकी अदायगी नहीं की। यदि साथ-साथ अदायगी करते रहते तो शायद यह मामला तूल न पकड़ता, क्योंकि फीस का मामला वकील और मुवक्किल का आपसी मामला है।

इसमें किसी तीसरे की कोई रुचि नहीं होती। जब कोई व्यक्ति वकील करता है तो उसकी फीस को ध्यान में रख कर ही करता होगा, फिर आखिर केजरीवाल ने राम जेठमलानी को उनकी फीस समय रहते क्यों अदा नहीं की? इसी में सारा रहस्य छिपा हुआ है। केजरीवाल चाहते थे कि उनके मुकदमे की यह फीस दिल्ली सरकार अदा करे। तर्क बिलकुल सीधा है, जिसे केजरीवाल के मित्र मनीष सिसोदिया पूरा जोर लगा कर सभी को समझा रहे हैं। उनका कहना है कि केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बन चुके हैं, इसलिए उन पर जो भी मुकदमा वगैरह दर्ज होगा और उसको लड़ने में उनका जितना खर्चा आएगा, वह सारा दिल्ली सरकार को ही करना होगा। पंजाबी में कहा जाए तो पंगा केजरीवाल लें और भुगते दिल्ली की सरकार। सिसोदिया ने तो दिल्ली सरकार के बाबुओं को हुक्म जारी कर दिया था कि राम जेठमलानी को सरकारी खजाने से तीन करोड़ बयालीस लाख की राशि दे दी जाए, लेकिन बाबू लोग थोड़ा चौकन्ने थे। उनका कहना था कि सरकारी खजाने से अदायगी सरकारी मुकदमों के लिए की जा सकती है, केजरीवाल के व्यक्तिगत घरेलू मामलों में हो रहे खर्च का भुगतान भला सरकार कैसे कर सकती है? अतः दिल्ली सरकार का विधि विभाग इस मामले में लेफ्टिनेंट गवर्नर से अनुमति लेने पर बजिद है। केजरीवाल अच्छी तरह जानते हैं कि यह मुकदमा दो व्यक्तियों अरुण जेटली बनाम केजरीवाल के बीच का है।

इसका न तो सरकार से कुछ लेना-देना है और न ही किसी राजनीतिक पार्टी से। यदि केजरीवाल फिर भी यही समझते हैं कि मुकदमा भाजपा ने किया है तो केजरीवाल के वकील की फीस उनकी पार्टी को देनी चाहिए, लेकिन वह यह फीस सरकारी खजाने से चुकाना चाहते हैं। मामला केवल केजरीवाल का ही नहीं है। दस करोड़ की मानहानि का मुकदमा केजरीवाल, आशुतोष, राघव चड्डा, संजय सिंह, कुमार विश्वास और दीपक वाजपेयी पर संयुक्त रूप से है। यदि मनीष सिसोदिया के इस तर्क को मान भी लिया जाए कि केजरीवाल के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद उनका सारा भार उठाना दिल्ली की जनता की कानूनी जिम्मेदारी बन जाती है तो भी उनके साथ की यह जो फौज इस मुकदमे में फंसी हुई है, इसका खर्च भला दिल्ली सरकार कैसे उठा सकती है? इनका तो दिल्ली सरकार से कुछ लेना-देना नहीं है। जेठमलानी की फीस के बिल में एक और फंडा है। मुकदमा 2016 में शुरू हुआ था। एक साल में ही जेठामलानी का बिल पौने चार करोड़ तक पहुंच गया है। मुकदमे के अंत तक हो सकता है बिल, अरुण जेटली द्वारा मांगे गए दस करोड़ के हर्जाने से भी ज्यादा हो जाए। दिल्ली की जनता के लिए केजरीवाल जैसा मुख्यमंत्री पालना मुश्किल होता जा रहा है। मामले को तूल पकड़ता देख कर राम जेठमलानी को खुद मैदान में उतरना पड़ा। उन्होंने कहा यदि केजरीवाल या दिल्ली सरकार उनकी फीस का भुगतान नहीं कर पाती तो भी वह मुकदमा छोड़ेंगे नहीं। वह इसे हर हालत में लड़ेंगे। वह अपने गरीब मुवक्किलों के मुकदमे मुफ्त में ही लड़ते हैं।

वह केजरीवाल के मुकदमे को भी इसी वर्ग का मान कर मुफ्त केस लड़ेंगे। जेठमलानी कानून की रग-रग से वाकिफ हैं। वह इतना तो जानते ही होंगे कि केजरीवाल का जो मुकदमा वह लड़ रहे हैं, वह व्यक्तिगत मुकदमे की श्रेणी में आता है या सरकारी श्रेणी में? मुकदमा दिल्ली के मुख्यमंत्री पर नहीं है, बल्कि केजरीवाल पर है। उसका भुगतान सरकार को करना चाहिए या केजरीवाल को अपनी जेब से। यदि वह इस पर भी रोशनी डाल देते तो शायद इससे उनके इस गरीब मुवक्किल की आंखें भी चौंधिया जातीं और आम जनता को भी ज्ञान हो जाता कि जेठमलानी सरकारी खजाने को लुटने से बचा गए। यदि उनकी नजर में केजरीवाल गरीब मुवक्किल की श्रेणी में आते हैं, तो उन्होंने उसे लगभग चार करोड़ रुपए का बिल भेजा ही क्यों था? जेठमलानी की नजर में मुकदमा लेते समय तो केजरीवाल अमीर थे और फीस देते समय अचानक गरीब हो गए हैं। इसलिए अब वह उनका मुकदमा मुफ्त लड़ेंगे। जेठमलानी की पारखी नजर को मानना पड़ेगा। सारे देश में उन्होंने मुफ्त मुकदमा लड़ने के लिए मुवक्किल भी ढूंढा तो वह अरविंद केजरीवाल मिला। यानी जो पौने चार करोड़ वकील को न अदा कर सके, वह बीपीएल की श्रेणी में आता है। बिलो पावर्टी लाइन। गरीबी रेखा के नीचे। वैसे हिंदोस्तान के बाकी लोग भी जेठमलानी की गरीब की इस परिभाषा को सुन कर सोचते होंगे कि वे भी केजरीवाल जैसे गरीब होते तो कितना अच्छा होता।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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