जिंदगी और घर बचाने की जंग
भारतीय समाज में मद्यपान या दूसरे किसी भी तरह की नशाखोरी को बुराई की नजर से देखा जाता रहा है, क्योंकि इससे हमारी सेहत पर तो बुरा असर पड़ता ही है, साथ ही साथ परिवार का आर्थिक गणित भी इससे गड़बड़ा जाता है…
जब जिंदगी और घर को बचाने की बात आई, तो प्रदेश की महिला शक्ति एक बार फिर से लामबंद है। शराब के ठेकों को राष्ट्रीय व राज्यीय मार्गों से दूर हटाने के माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बाद इस परिधि में आने वाले शराब के ठेके अब ग्रामीण इलाकों या शहर की कालोनियों की ओर सरक रहे हैं, लेकिन महिलाएं इनके रास्ते में दीवार बनकर खड़ी हो गई हैं। एक के बाद एक लगातार खुल रहे शराब के ठेकों का विरोध हो रहा है। इन ठेकों के संभावित दुष्परिणामों को देखते हुए इसमें प्रशासन को दखल देने का आग्रह किया जा रहा है। भारतीय समाज में मद्यपान या दूसरे किसी भी तरह की नशाखोरी को बुराई की नजर से देखा जाता रहा है, क्योंकि इससे हमारी सेहत पर तो बुरा असर पड़ता ही है, साथ ही साथ परिवार का आर्थिक गणित भी इससे गड़बड़ा जाता है। मद्य सेवन मादकता तो प्रदान करता ही है, इसी के साथ वह व्यक्तित्व के विनाश, निर्धनता की वृद्धि और मृत्यु के द्वार भी खोलता है । अतः सजग समाज इस आसुरी प्रवृत्ति को समाप्त करना परमावश्यक समझता रहा है और इसी कारण समय-समय पर इसके खिलाफ आंदोलन खड़े होते रहे हैं। मौजूदा समय में महिला समाज का जो गुस्सा शराब की बोतल पर फूट रहा है, यह इसी संवेदना की बानगी है। हालांकि समाज, विशेषकर नारी शक्ति हमेशा से ही मयकदों की मुखर विरोधी रही है, लेकिन जब कई बुराइयों की जड़ ये दुकानें गांव-देहात में पसरने लगी हैं, तो मौजूदा प्रतिक्रिया स्वाभाविक ही थी। विरोध की यह चिंगारी इतनी भयावह होगी, इसकी कल्पना शायद समाज, प्रशासन, शराब विक्रेताओं और यहां तक कि खुद महिला समाज ने भी नहीं की होगी। हैरानी यह भी कि इस विरोध के लिए कोई सुनियोजित तैयारी भी नहीं थी और न ही इसके पीछे किसी विशेष संगठन की प्रेरणा काम कर रही है। समाज को रहने लायक बनाए रखने की महिलाओं की यह कवायद पूरी तरह से स्वैच्छिक प्रयास है और दिन-ब-दिन यह मजबूत ही हो रही है। आज प्रदेश का शायद ही कोई हिस्सा ऐसा बचा हो, जहां इस तरह का विरोध प्रदर्शन देखने को न मिला हो। दरअसल इस विरोध की वजह भी बिलकुल स्पष्ट है। महिला समाज शराब से उसके परिवार पर होने वाले आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक नुकसान के प्रति भलीभांति परिचित है। शराब के शारीरिक नुकसान को ही देखें, तो इस विरोध की वजह और जिरह भी साफ हो जाएगी। शराब का अधिक मात्रा में सेवन करने से दिल की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं, जिससे कारण हृदय तक पहुंचने वाला रक्त सही गति से वहां तक नहीं पहुंच पाता। शराब का सेवन करने से दिमाग पर हानिकारक असर पड़ता है। शराब में इथानॉल मौजूद होता है, जिससे हमारे मूड और व्यवहार में बदलाव आता रहता है। शराब का सेवन करने से पाचन तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ता है और इसके साथ ही यह पेट के जरूरी हिस्सों पर भी अपना दुष्प्रभाव डालती है। ऐसे में पेट और पाचन तंत्र अपना कार्य सही से नहीं कर सकते। शराब का अधिक सेवन करने से लिवर में हेपेटाइटिस हो जाता है, जिसे हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि हमारा लिवर खराब हो जाता है। इन खतरों को देखते हुए परिवार की कौन सी महिला सदस्य चाहेगी कि उसके परिवार का कोई पुरुष सदस्य पियक्कड़पन का शिकार हो जाए। शराब के आर्थिक पहलू पर गौर करें, तो सरकारें राजस्व संबंधी जो भारी-भरकम आंकड़ों का जिक्र करती हैं, वह कहीं और से नहीं, बल्कि इन्हीं परिवारों से उगाहा जाता है। पतियों के शराब में सारी कमाई बर्बाद करने से दर्द भी इस आक्रोश का एक कारण बनता जा रहा है। सामाजिक तौर पर शराब शांति को निगलती रही है, इसीलिए जिन परिवारों या क्षेत्रों में शराब का सेवन अधिक होता है, वहां अपराध का ग्राफ भी ऊपर की ओर चढ़ा होता है। इन तमाम पहलुओं पर भलीभांति गौर करने के बाद ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, ‘शराब सब बुराइयों की जननी है । इसकी आदत राष्ट्र को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर देती है।’ बापू गांधी के इसी सरोकार को समझते हुए आज शराब के ठेकों को लेकर हिमाचल में जंग आर-पार की होने लगी है और इसका बीड़ा खुद नारी शक्ति ने उठाया है। नशाखोरी के खिलाफ जंग के इस आगाज का अंजाम क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा।
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