ताकि बना रहे ऐतिहासिक प्रतीकों का वैभव

By: Apr 18th, 2017 12:02 am

रमेश चंद्रा लेखक, पुरातत्त्व विषयों के जानकार हैं

ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का प्रश्न प्रदेश व राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा होता है, क्योंकि ये धरोहरें किसी भी राष्ट्र की सभ्यता व संस्कृतियों का आईना होती हैं। विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर हमें अपने प्रदेश व देश की सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण का संकल्प लेना होगा…

धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से यूनेस्को द्वारा 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस घोषित किया गया है। निष्पादन कलाएं, ललित कलाएं, पुरातत्त्व एवं कला संस्कृति के विभिन्न रूप धरोहरों के परिचायक होते हैं। हिमाचल धरोहरों के दृष्टिकोण से समृद्ध क्षेत्र है। धरोहरों के संरक्षण के प्रति जागरूकता कार्यक्रमों के अभाव एवं धरोहरों के संरक्षण को प्राथमिकता में न रखने के कारण जन साधारण धरोहरों के मायने तक नहीं जानता। वर्तमान पीढ़ी के एक बड़े हिस्से को धरोहरों के राष्ट्रीय व प्रादेशिक मायने समझाने और उन्हें जनजागरण कार्यक्रमों के अंतर्गत लाने में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं विफल रही प्रतीत होती हैं। अपनी निजी भूमि पर सरकारी अनुमति के बिना एक पेड़ काटने पर तो सजा का प्रावधान है, परंतु एक ऐतिहासिक मंदिर का कत्ल करने का कोई संज्ञान नहीं लेता। धरोहरों के कत्लेआम की एक घटना वर्ष 2011 में घटित हुई। जनजातीय क्षेत्र भरमौर के दूरदराज गांव गोशाल, जिसे सुखतर भी कहते हैं, में ग्रामीणों ने नए मंदिर के निर्माण की आड़ में 13वीं-14वीं शताब्दी का शिखर शैली में निर्मित मंदिर ध्वस्त कर दिया। उसके स्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण किया गया। प्राचीन मंदिर के एक लिंटल पर ऐतिहासिक महत्त्व का अभिलेख उकरित है, जिसका वर्णन वोगल द्वारा लिखित दुर्लभ पुस्तक एंटिक्विटीज ऑफ चंबा स्टेट के प्रथम भाग में भी मिलता है। शिलालेख क्षतिग्रस्त होने के कगार पर है। इस मानव विनाश पर क्या कोई जवाबदेही तय करेगा। भरमौर की बोद्धिसत्व मूर्ति का कब्जाधारी अब तक कानून की पकड़ से बाहर है। मूर्ति इस क्षेत्र में बोध कालीन सभ्यता के प्रमाण का साक्ष्य थी। इस तरह एक अध्याय का अंत हो गया और किसी को कोई दर्द नहीं।

ढुलमुल नीति से धरोहरों का संरक्षण कैसे हो पाएगा। क्षेत्र से संबंधित ग्राम पंचायत प्रधानों, राजस्व कर्मचारियों, स्मारक रक्षकों एवं जिला भाषा अधिकारियों पर अब यह दायित्व सौंप देना चाहिए कि वे अपने-अपने कार्यक्षेत्रों में प्रतिमाह धरोहरों की वास्तविक स्थिति की रिपोर्ट जिलाधीशों को सौंपें। सरकार धरोहरों के संरक्षण की जवाबदेही तय करे। चंबा के मूलकिहार मूर्तियां उपेक्षित अवस्था में पड़ी हैं। चंबा के ही गूं क्षेत्र में 8वीं शताब्दी का शिलालेख, जिसमें चंबा के राजा मेरु वर्मन का वर्णन है, काल व वातावरण के प्रभाव से नष्ट हो रहा है। मेरु वर्मन का काल कला इतिहास में स्वर्ण युग कहा जाता है। कांगड़ा के गुलेर में एक कुएं के बीच 17वीं शताब्दी के राजा रूप सिंह के समय का शिलालेख उपेक्षित अवस्था में कुएं की दीवार में जडि़त है। हिमाचल में भीत्ति चित्रों के रूप में धरोहरें अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं। मंदिर की मूर्तियों, काष्ठ कलाओं व मंदिरों पर रंग-रोगन किए जा रहे हैं, जिससे इनका मूल स्वरूप प्रभावित हो रहा है। इनके रासायनिक प्रभाव से कला धरोहरों का क्षरण हो रहा है। इस दिशा में भी संबंधित विभागों को प्रभावी कदम उठाने होंगे। हिमाचल प्रदेश आज धरोहरों की सुरक्षा व संरक्षण में असुरक्षित स्थिति में पहुंच गया है। रियासती काल के भवन, स्मारक व अन्य निर्माण अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। चंबा का रंग महल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस ऐतिहासिक भवन में सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों के कारण महल अपना प्राचीन वैभव खो चुका है। इसमें चंबा की कला विधाओं प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना धरोहर दिवस पर एक सार्थक कदम होगा। चंबा की विशेष पहचान अखंड चंडी महल के एक कक्ष में भीत्ति चित्र रूपी धरोहरें विद्यमान हैं। कक्ष कई वर्षों से बंद पड़ा है। भित्ति चित्र नष्ट होने के कगार पर हैं। जिला मंडी की धरोहरों भी आज मानव विनाश के कगार पर हैं। मंडी का दमदमा महल, जिसके राज माधव मंदिर, हवन कुंड व चौकी भवन इस धरोहर के भाग हैं, लेकिन ये भी मानव लापरवाही व उपेक्षा के शिकार हैं।

दि हिमाचल प्रदेश एंशियंट एंड हिस्टोरिकल मोन्यूमेंट्स एंड आर्कियोलोजिकल साइट्स एंड रीमेन एक्ट, 1976 प्रावधानों के तहत सरकार इन धरोहरों को सरकारी अधिग्रहण में लेकर मंडी की जनता की भावनाओं के अनुरूप इस भवन में संग्रहालय एवं सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना करे। यह विडंबना ही है कि प्राचीनतम व गौरवमयी सिंधु घाटी सभ्यता के देश के अधिकांश लोग यह तक नहीं जानते कि धरोहरें होती क्या हैं? विशेषकर युवा पीढ़ी अपने देश की महान कला संस्कृतियों से विमुख हो रही है। इनके संरक्षण के प्रति अनभिज्ञ व उदासीन है। अधिकांश युवा पीढ़ी माइकल जैक्सन को तो जानती है, परंतु आधुनिक कला के पुरोधा विश्व प्रसिद्ध कलाकार माइकल एंजलो को नहीं जानती। डांसर शकीरा के बारे में तो जानकारी रखती है, परंतु विश्व कला जगत में भारत का नाम प्रकाश करने वाली अमृता शेरगिल को नहीं जानती और न ही जानने में रुचि रखती है। इस स्थिति का जिम्मेदार कौन है? धरोहर संपन्न हिमाचल प्रदेश की सभी सरकारों द्वारा प्रदेश में स्वतंत्र सशक्त पुरातत्त्व विभाग की स्थापना की अनदेखी करने व धरोहरों के प्रति सख्त कानून होने के बावजूद व जानकारियों के अभाव में हमारी धरोहरें सुरक्षित नहीं रह पाएंगी। इतिहास के साक्ष्य विलुप्त होते रहेंगे। इस स्थिति से बचने के लिए धरोहर विषयक नियमित रूप से धरोहर गोष्ठियां, लघु वार्ताएं, सेमिनार, चित्रकला प्रतियोगिताएं, धरोहरों पर क्विज कार्यक्रम आयोजित करें। इससे जन साधारण, विशेषकर युवाओं को धरोहरों के संरक्षण की प्रेरणा मिलेगी। एक वातावरण तैयार होगा। धरोहरों के संरक्षण  का प्रश्न प्रदेश व राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा होता है, क्योंकि धरोहरें किसी भी राष्ट्र की सभ्यता व संस्कृतियों का आईना होती हैं। विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर हमें अपने प्रदेश व देश की सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण का संकल्प लेना होगा।


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