नामकरण के दिन की जाती है षष्टी देवी की पूजा

By: Apr 26th, 2017 12:05 am

पहले यहां पुत्रियों के जन्मोत्सव करने की प्रथा नहीं थी, परंतु आजकल पढ़े-लिखे परिवारों से पुत्र-पुत्री में भेद न होने के कारण कन्याओं के जन्मदिन के पूजन की भी स्वस्थ परंपरा चल पड़ी है। नामकरण के दिन गोबर की बनाई षष्टी देवी को इस अवसर पर पूजने की प्रथा है…

रीति-रिवाज व संस्कार

जन्मदिन पूजन : संस्कारों के अलावा इस क्षेत्र में जन्मदिन पूजन की परंपरा भी है। ज्योतिषी द्वारा वर्षफल बनवाकर उस दिन गणपति,नवग्रह, मार्कंडेय एवं षष्टी देवी की पूजा का विधान किया जाता है। वर्ष में अशुभ ग्रहों के लिए दान आदि करने की प्रथा है तथा पशुओं  को आटे की पिन्नी भी दी जाती है। इसी दिन नए वस्त्र धारण करने की मान्यता भी है। दीर्घायु के लिए मार्कंडेय जी का पूजन व उनका प्रसाद कच्चा दूध, गुड़ एवं तिल सहित पीने की प्रथा भी है। पुत्र के प्रथम वर्ष की पूर्ति को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पहले यहां पुत्रियों के जन्मोत्सव करने की प्रथा नहीं थी, परंतु आजकल पढ़े-लिखे परिवारों से पुत्र-पुत्री में भेद न होने के कारण कन्याओं के जन्मदिन के पूजन की भी स्वस्थ परंपरा चल पड़ी है। नामकरण के दिन गोबर की बनाई षष्टी देवी को इस अवसर पर पूजने की प्रथा है। अर्की क्षेत्र में बच्चों के जन्मदिन के उपलक्ष्य पर भ्याई पूजन (गोबर की बनी भ्याई) की परंपरा का निर्वाह होता है तथा होई माता के व्रत के दिन भी भ्याई को पूजना अनिवार्य होता है। जन्मदिन पूजन के समय नवग्रहों के लिए तुलादान भी किया जाता है, जिससे अनिष्ट को टाला जा सके।

विवाह के संस्कार : सोलह संस्कारों में प्रदेश में आरंभ के तीन संस्कारों को छोड़कर अन्य सभी को लेकर मान्यता कहीं अधिक कहीं कम परंतु प्रचलन में अवश्य देखने को मिलती है। इन सबमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण संस्कार विवाह संस्कार है।

विवाह गणना (ब्या गणना) : वर और कन्या के संबंधी उनके जन्मपत्रों  (कुंडली) को लेकर ज्योतिषी से ग्रह मिलान करवाते हैं। संतुष्टि हो जाने पर बात आगे बढ़ाई जाती है। मुहूर्त देखना (साह देखना) ः कुंडली मिलान हो जाने पर ज्योतिषी से शुभ समय निकलवाकर विवाह तिथि दोनों पक्षों की सहमति से निश्चित की जाती है। दोनों पक्ष तब देवाज्ञा से आगे के कार्यक्रम एवं मुहूर्तों पर पर्चा बनवा लेते हैं। पहले समय में विवाह में रात्रि लग्न ही शुभ माना जाता था और विवाह कम से कम चार दिन चलता था। आजकल समय की कमी के कारण दिन में ही विवाह संपन्न होने लगे हैं। पहले उत्तरायण के चैत्र माह को छोड़कर दक्षिणायन का केवल मार्गशीर्ष माह ही विवाह के लिए शुभ माना जाता था। विशेष वर्जित श्रावण और भाद्रपद थे, जिनका एक कारण पहाड़ी क्षेत्रों में इन दिनों वर्षा की अधिकता भी था, लेकिन कहीं- कहीं इनमें भी विवाह होते देखे गए हैं।

समिधा मुहूर्त  : विवाह से लगभग दो माह पूर्व समिधा का मुहूर्त होता है। इस दिन विवाह का आरंभ माना जाता है। संबंधियों और गांव वालों को समिधा(विवाह में प्रयुक्त होने वाला ईंधन) काटने के लिए बुलाया जाता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App