परंपराओं से सहेजें पेयजल

By: Apr 26th, 2017 12:02 am

डा. जोगिंद्र सकलानी लेखक, एचपीयू के राजनीति शास्त्र विभाग में सहायक प्राचार्य हैं

गांवों में आज भी बावडि़यां एवं कुएं हैं, लेकिन उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। उनका पानी पीने योग्य नहीं है, जिसका मुख्य कारण उनकी देखभाल और निरंतर साफ-सफाई का न होना है। सर्वे से जानकारी मिली है कि मात्र 20 प्रतिशत प्राकृतिक जल स्रोतों का पानी ही पीने योग्य है…

देश एवं प्रदेश में सैकड़ों संस्थाएं समाज में किसी ने किसी रूप में कार्य कर रही हैं। घुमारवीं में भी ‘संस्कार संस्था’ पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, नशा निवारण अभियान, पौधारोपण तथा शिक्षा के क्षेत्र में जरूरतमंद छात्रों की सहायता करके समाज निर्माण में अपना सराहनीय योगदान दे रही है। यह संस्था पूरे घुमारवीं क्षेत्र में अपने सामाजिक कार्यों के कारण अन्य संस्थाओं के लिए एक मिसाल बनकर उभरी है। इसकी सक्रियता एवं सामाजिक कार्यों में योगदान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक वर्ष के दौरान इस संस्था द्वारा आयोजित दो कार्यक्रमों में महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने शिरकत की और संस्था के सामाजिक कार्यों एवं परंपरागत संस्कृति को सहेजने के प्रयासों की उन्मुक्त कंठ से प्रशंसा की। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह सराहनीय कार्य कर रही है, वहीं जल एवं पर्यावरण संरक्षण, परंपरागत तकनीक के पुनरोत्थान जैसे गंभीर विषयों पर कार्य एवं शोध करके संस्था ने यह साबित कर दिया है कि अगर मन में जज्बा हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। यह संस्था पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रतिवर्ष पौधारोपण का ही कार्य नहीं करती अपितु उनकी देखभाल को भी सुनिश्चित करती है। मेधावी छात्रों को पुरस्कार प्रदान करना तथा कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करके उन्हें शिक्षा में सहयोग देना भी इसकी सामान्य गतिविधियों में सम्मिलित है। नशा आज समाज को दीमक की तरह चाट रहा है और इससे प्रदेश भी अछूता नहीं है। संस्कार संस्था स्कूलों, कालेजों और अन्य शिक्षण संस्थानों में नशे के विरुद्ध लगातार जागरूकता अभियान चला रही है। अभी हाल ही में संस्कार संस्था ने घुमारवीं में माननीय महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत की उपस्थिति में जल संरक्षण अभियान कार्यक्रम के तहत सर्वेक्षण की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की। जल संरक्षण हेतु यह शोध घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र की लगभग सभी पंचायतों, गांवों में किया गया। इसमें जल संरक्षण, प्राकृतिक स्रोतों की स्थिति पानी की समस्या परंपरागत स्रोतों की स्थिति को सहेजने में सरकारी प्रयासों, प्राकृतिक स्रोतों की खराब हालात को लेकर प्रश्नोत्तरी के माध्यम से अनेक जानकारियां एकत्र की गईं। साथ ही आम जनमानस में जल संरक्षण तथा प्राकृतिक स्रोतों के रक्षण हेतु चेतना जागृत करने का प्रयास किया गया। सामाजिक जन जागरण एवं पर्यावरण संबंधी विषयों पर गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जल संरक्षण के इस सर्वेक्षण को संस्था के विभिन्न सदस्यों ने समाज के सहयोग से 165 गांवों में जाकर 747 लोगों के साक्षात्कार करके पूरा किया। एकत्रित आंकड़ों एवं प्रश्नावली के आधार पर यह निष्कर्ष निकला है कि आज गांवों की अधिकतर आबादी पीने के पानी हेतु नलों पर निर्भर है (76 प्रतिशत)। बावडि़यों एवं कुओं  से मात्र 12 प्रतिशत लोग ही पानी पीते हैं। सर्वे के अनुसार 86 प्रतिशत लोगों का यह कहना है कि उनके गांव में आज की बावडि़यां एवं कुएं हैं, लेकिन उनकी स्थिति अच्छी नहीं है और उनका पानी पीने योग्य नहीं है, जिसका मुख्य कारण उनकी देखभाल और निरंतर साफ-सफाई का न होना है। यह भी जानकारी मिली है कि मात्र 20 प्रतिशत प्राकृतिक जल स्रोतों का पानी ही पीने योग्य है। लोगों का यह मत है कि प्रशासन इन स्रोतों के रखरखाव के लिए कोई प्रयास नहीं करता है, जिसके कारण आज गंभीर जल संकट उत्पन्न हो रहा है। सर्वे का एक अन्य रोचक पहलू यह भी है कि अधिकांश लोग प्राकृतिक जल स्रोतों को सहेजना चाहते हैं और पीने के साथ-साथ उनका प्रयोग कृषि एवं बागबानी हेतु भी करना चाहते हैं। संस्थागत स्तर पर जल संरक्षण, नशा निवारण एवं परंपरागत तकनीक पर्यावरण सुरक्षा को सहेजने के लिए धरातल पर कार्य कर रहे हैं और आम समाज को इस सब में सहयोगी बना रहे हैं। आज जरूरत महसूस हो रही है कि परंपरागत एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण हेतु प्रदेश स्तर पर अभियान चलाए जाएं और पंचायतों में मनरेगा तथा अन्य योजनाओं के माध्यम से प्राकृतिक जल स्रोतों की रखरखाव किया जाए। सरकार द्वारा इस दिशा में आम जनमानस को इस प्रक्रिया में सहयोगी बनाया जाए तथा प्रदेश स्तर पर जल संरक्षण हेतु अभियान चलाया जाए, तभी हम अपनी आने वाले पीढ़ी को जल एवं अन्य समस्याओं की भयंकर त्रासदी से बचा सकते हैं। सरकार ऐसे प्रयास करने वाली संस्थाओं को समय-समय पर अनुदान भी उपलब्ध करवाए और उनके प्रयासों को भी सराहा जाए।


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