परिश्रम के तेल से जलता है सफलता का दीया

By: Apr 12th, 2017 12:05 am

हमेशा याद रखें- पराजय तब नहीं होती है जब आप गिर जाते हैं या हार जाते हैं बल्कि पराजय तब होती है जब आप हार मान लेते हैं और दोबारा उठने से इनकार कर देते हैं। यदि आप दुविधाग्रस्त हैं तो मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा की हमारे भीतर अनंत ऊर्जा एवं शक्ति का भंडार है। हमें केवल उसे जागृत करने की जरूरत है…

यह नितांत सत्य है कि जब भी हम अपने जीवन में कुछ नया करने के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले हमारे अंदर से ही विरोध के स्वर उठते हैं, उसके बाद परिवार की तरफ से असफलता- नाकामियों के किस्से सुनाए जाते हैं और उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं। लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि इन तमाम तरह के असमंजस, विरोधाभासों और अंजान डर से पार पाकर ही हम अपने लक्षित मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। इस बात से हम सभी भली भांति परिचित हैं कि दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं होता है, जरूरत होती है तो केवल बुलंद हौसलों और कड़ी मेहनत की। इसलिए जब आप एक बार किसी भी मुश्किल कार्य अथवा इच्छित लक्ष्य को पूरा करने की ठान लेते हैं तो फिर उसे मूर्त रूप देने और अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक छोटे से कदम से की गई शुरुआत ही पर्याप्त है। कहने वाले तो यहां तक चुनौती देते हैं कि सीढि़यां उन्हें मुबारक हों, जिन्हें छत तक जाना है, हमारी मंजिल तो आसमां है और वहां तक पहुंचने का मार्ग भी हम खुद बनाएंगे। परिश्रम तथा पुरुषार्थ से असंभव कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। आपको भी दुनिया प्रतिभाशाली अथवा ‘जीनियस’ का दर्जा तभी देती है, जब आप असंभव को संभव बना डालते हैं। दोस्तो, हमेशा याद रखें- पराजय तब नहीं होती है जब आप गिर जाते हैं या हार जाते हैं बल्कि पराजय तब होती है जब आप हार मान लेते हैं और दोबारा उठने से इनकार कर देते हैं। यदि आप दुविधाग्रस्त हैं तो मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा की हमारे भीतर अनंत ऊर्जा एवं शक्ति का भंडार है। हमें केवल उसे जागृत करने की जरूरत है। जब हम पूरे प्राण पण से अपनी समस्त ऊर्जा को किसी एक नेक एवं अभिष्ट कार्य हेतु नियोजित कर देते हैं तो सफलता स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। कई बार हम निराश होकर प्रयत्न करना छोड़ बैठते हैं, मानसिक निराशा के चलते हमारी समस्त इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं और हम इस सांसारिक जगत में घोर अवसाद में डूब जाते हैं तो इन विपरीत परिस्थितियों में डूबने से बचने अथवा अपना आत्मविश्वास पुनः लौटाने के लिए आवश्यक है कि हम सत्संगति करें, सकारात्मक सोच वाले उद्यमी मित्रों के साथ उठे-बैठें, सद्साहित्य पढ़ें ताकि हमें सकारात्मक मानसिक एवं बौद्धिक खुराक मिलती रहे। कई बार हमें ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म की तर्ज पर स्वयं को ‘आल इज वेल’ कहना पड़ता है। लंका गमन के समय भी समुद्र किनारे दुविधाग्रस्त वानरों को जब उस पार जाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तो वानरराज जामवंत ने हनुमान जी को सैकड़ों योजन पार उड़ने की उनकी क्षमता का आभास-एहसास करवाया था। महाभारत काल में युद्ध के समय अपने परिजनों के व्यामोह में भ्रमित अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने उपदेश देकर कर्म करने की शिक्षा दी थी। हनुमान ही वह महान वीर थे जो मूर्छित लक्ष्मण को जीवित करने वाली संजीवनी बूटी हिमालय पर्वत समेत उखाड़ लाए थे। सफलता के पथ पर अग्रसर होने के लिए यह अत्यावश्यक है कि हम सहनशीलता और धैर्य को अपनी ताकत बनाएं। हमारे विचार एवं नजरिया ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। यदि हम अपने विचारों में गंदगी मिला देंगे तो हमारा दिमाग बदबूदार नाला बन जाएगा और यदि हम अपने विचारों में सुगंध मिला देंगे तो वह खुशबूदार पवित्र नदी की भांति सर्वत्र सकारात्मकता का प्रवाह करते हुए अपना एवं सबका कल्याण करेगी। शुरुआती कोशिशों में हमें कामयाबी भले ही न मिल, लेकिन जब हम अपनी हर असफलता के बाद पुनः नई स्फू र्ति, ऊर्जा और बुद्धिमानी पूर्वक तैयारी करके अपने लक्ष्य को साधने हेतु जुट जाते हैं तो कामयाबी हमारे कदम चूमने को आतुर हो उठती है। हमेशा याद रखें- सफलता का दीया परिश्रम रूपी मंत्र से ही प्रज्वलित होता है।

– अनुज आचार्य, बैजनाथ


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