बुजुर्गों की बेकद्री
( भूपेंद्र ठाकुर, गुम्मा, मंडी )
आधुनिकता की चमक-दमक के साथ ही सामाजिक मूल्यों का अवमूल्यन होता जा रहा है। उम्र के बढ़ते पड़ाव पर बुजुर्गों की अनदेखी एक आम बात हो गई है अर्थात बुजुर्ग बोझ समझे जा रहे हैं। इसके पीछे हमारी कमजोर मानसिकता या सामाजिक आबोहवा भी प्रमुख कारण मानी जा रही है। भारतीय संस्कृति भी पाश्चात्य रंग में रंगती नजर आ रही है। हमारी संस्कृति बुजुर्गों के आशीर्वाद से फलीभूत होती थी, मगर अब सब बदलता नजर आ रहा है। हालात तो ऐसे भी हो गए हैं कि बुजुर्गों को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो पा रही। चाहे एकल परिवार हो या संयुक्त परिवार, साधन संपन्न लोग हों या नौकरी-पेशे वाले, बुजुर्गों को अपमान झेलना पड़ रहा है। भारत में भी बुजुर्गों के लिए वद्धाश्रम खोले जा रहे हैं, जो कि शर्म की बात है। देश में बुजुर्गों की सेवा के लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत है। कई राज्यों में माता-पिता भरण अधिनियम तो है, मगर सख्ती से अनुपालन नहीं किया जा रहा है। आने वाले वक्त में इसे सख्ती से लागू करना होगा, ताकि अपने ही परिवार में किसी बुजुर्ग को अपमान न झेलना पड़े।
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