भाजपा के मुसलमान !

By: Apr 24th, 2017 12:05 am

वैसे तो यह सवाल ही बेतुका है, क्योंकि हकीकत सभी जानते हैं कि भाजपा (या आरएसएस) और मुसलमानों के आपसी समीकरण और संबंध कैसे हैं? लेकिन एक संदर्भ के जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जो कहा, उसके बाद एक और सांप्रदायिक शोर मच गया है। सियासत गरमा उठी है। कानून मंत्री ने जो भी कहा है, उसे छोडि़ए, लेकिन मुसलमान भाजपा और मोदी से नफरत की हद तक भाव रखते हैं। मुसलमान दो-तीन फीसदी ही भाजपा को वोट देते होंगे। शेष भाजपा को वोट देना पसंद नहीं करते, क्योंकि मुस्लिमधर्मी दलों ने उसे ‘सांप्रदायिक’ करार दे रखा है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिम बहुल की कुल 87 संसदीय सीटों में से 45 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे और 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों में मुसलमानों के एक तबके ने भाजपा को वोट दिए, नतीजतन 325 सीटों का ऐतिहासिक जनादेश, अंततः, भाजपा को ही मिला। यानी मुसलमान करवट बदलने लगा है। कांग्रेस और सपा की सरकारों में सबसे ज्यादा मुसलमान विरोधी सांप्रदायिक दंगे कराए गए। क्या संविधान में मुसलमानों को यही अधिकार दिए गए हैं? क्योंकि कानून मंत्री के बयान के बाद सभी मुस्लिम पक्षों से संविधान और मौलिक अधिकारों की बातें कही जाने लगी हैं। सच्चर कमेटी की रपट के मुताबिक, मुसलमानों के 25 में से औसतन एक बच्चा ही 10-12वीं कक्षा की पढ़ाई तक पहुंच पाता है। मुस्लिम औरतों में तालीम भी बेहद कम है, लिहाजा वे पिछड़ी हैं। मुसलमान बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने के मायने भी नहीं जानते। क्या देश के संविधान ने मुसलमानों को इन दयनीय हालात के लिए विवश कर रखा है? सच्चर कमेटी की रपट तो कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान रखी गई थी, जिसमें मुसलमानों के चौतरफा गरीबी, पिछड़ेपन, विकासहीनता और अशिक्षा के आंकड़े दर्ज हैं। यदि मोदी सरकार के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कुछ कहा है, तो इसलिए कि वह मुसलमानों को तसल्ली देना चाहते हैं कि उनकी नौकरी नहीं छीनी जाएगी, उनके कारोबार पर उल्टा असर नहीं पड़ेगा, मुसलमान किसी भी तरह के उत्पीड़न के शिकार नहीं होंगे। यह तसल्ली इसलिए जरूरी थी, क्योंकि नाममात्र मुसलमान ही भाजपा को वोट देते रहे हैं। हालांकि वोट देने या न देने का तर्क सरकार के लिए उचित नहीं है, क्योंकि सरकार तो सभी की होती है। कानून मंत्री यही भरोसा दिलाना चाहते थे कि मोदी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत पर काम कर रही है, लेकिन मंत्री के बयान की व्याख्या गलत की गई है। दरअसल आजादी के बाद, संविधान बनने के शुरुआती दिनों में, कांग्रेस और वामपंथी दलों ने आरएसएस और जनसंघ को मुसलमानों का ‘काल्पनिक दुश्मन’ करार दिया था। यह प्रचार भी किया गया कि यदि देश में संघ परिवार की सत्ता आ गई, तो मुसलमान खदेड़ दिए जाएंगे या कुचल दिए जाएंगे। आज देश के 15 राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ है और उसके 13 मुख्यमंत्री कार्यरत हैं। आज प्रचंड बहुमत के साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा का ही शासन है। मुसलमान खुद आकलन करें कि मोदी सरकार ने उनके कितने और क्या नुकसान किए हैं? देश में कितने सांप्रदायिक प्रलय आए हैं? कितने दंगे कराए गए हैं? लेकिन यह तथ्य एक और बार दोहरा दूं कि मुसलमान बुनियादी और सोच के आधार पर भाजपा को वोट नहीं देते। कानून मंत्री ने बयान देकर न तो मुसलमानों पर कोई एहसान किया है और न ही उन्हें धमकाया गया है। आज मुस्लिमों में बेरोजगारी की दर 18 फीसदी है, तकनीकी शिक्षा मात्र 1.3 फीसदी मुस्लिम युवाओं ने हासिल की है, मुसलमानों की रोजाना की औसत आमदनी 32.66 रुपए है। देश की प्रशासनिक सेवाओं में सिर्फ तीन फीसदी और पुलिस सेवा में मात्र चार फीसदी ही मुसलमान हैं। ये खौफनाक और दारुण आंकड़े किन सरकारों की देन हैं? भाजपा की मोदी सरकार तो बीते तीन साल से ही देश का शासन देख रही है। जाहिर है कि ये ऐसी सरकारें रही हैं, जो धर्मनिरपेक्षता की नारेबाजी करती रही हैं और सांप्रदायिकता का खौफ पैदा कर मुसलमानों के वोट बटोरती रही हैं। हालांकि मुसलमान नाममात्र के ही वोट भाजपा को देते रहे हैं, उसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने केरल की एक जनसभा में कहा था कि मुसलमानों को वोट बैंक की मंडी न समझा जाए। प्रधानमंत्री की यह भी इच्छा है कि हिंदू-मुसलमानों को आपस में नहीं, गरीबी के खिलाफ मिलकर लड़ना चाहिए। प्रधानमंत्री ने सूफीवाद, देशभक्ति, दस्तकारी और हुनर के संदर्भ में भी मुसलमानों का आकलन किया है। गौरतलब यह है कि गुजरात में मुसलमान सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी में हैं। चुनावों से जाहिर है कि अब भाजपा मुसलमानों के लिए ‘अछूत’ नहीं रह गई है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने जिस तरह ‘तीन तलाक’ का मुद्दा उठाया था, उसके नतीजतन ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कहना पड़ा है कि वे डेढ़ महीने में ही इसका समाधान निकाल देंगे। चर्चा यह भी है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा को भरपूर वोट दिए थे। तभी तो मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की जीत हुई। मोदी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए न केवल कई कार्यक्रम शुरू किए हैं, बल्कि बजट में 3800 करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान भी किया है। मेरा आग्रह है कि अब ऐसा दौर आ गया है कि मुसलमान भी भाजपा के हो रहे हैं, लिहाजा उन्हें लड़ाने-भिड़ाने की सियासत से बाज आया जाए।


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