भारत का इतिहास

By: Apr 12th, 2017 12:05 am

मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में समिति का गठन

प्रस्ताव भारी बहुमत से सरकार की इच्छा के विरुद्ध पास हो गया। प्रस्ताव के पास हो जाने पर सरकार ने 1919 के अधिनियम के कार्यकरण की जांच करने तथा  वर्तमान कमियों को दूर करने की दृष्टि से आवश्यक सांविधानिक सुधार सुझाने के लिए एलेक्जैंडर मुडीमेन की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की। समिति ने अपनी रिपोर्ट 3 दिसंबर, 1924 को गवर्नर-जनरल को प्रस्तुत कर दी। समिति के बहुमत के अनुसार वर्तमान संविधान संतोषजनक ढंग से चल रहा था। अतः समिति ने प्रशासन में केवल कुछ मामूली परिवर्तन ही सुझाए। किंतु समिति के कुछ सदस्यों के अनुसार,जिनमें तेज बहादुर सप्रू और मोहम्मद अली जिन्ना भी थे, व्यवस्था में मूलभूम कमियां थीं और  संविधान में आमूल परिवर्तन हुए बिना कुछ सुधार संभव नहीं था। जब समिति की रिपोर्ट पर बहस हुई, तो सितंबर, 1925 को विधानसभा ने एक संशोधन प्रस्ताव पास किया जिसमें पिछले साल की राष्ट्रीय मांग को अधिक विस्तृत रूप में दोहराया गया था। ‘राष्ट्रीय मांग’ संबंधी प्रस्तावों का ऐतिहासिक महत्त्व है, क्योंकि उनके द्वारा पहली बार केंद्रीय विधानसभा ने इस मांग का समर्थन  किया कि भारत का भावी संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाया जाए। ब्रिटिश सरकार ने नवंबर, 1927 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक भारतीय संविधान आयोग (साइमन कमीशन) की स्थापना की और उसे ग्रह पता लगाने का काम सौंपा कि  क्या  भारतीय  उत्तरदायी शासन की दिशा में और  अधिक प्रगति करने योग्य हो गए हैं। साइमन आयोग के सातों के सातों सदस्य अंग्रेज थे। आयोग में एक भी भारतीय सदस्य न होने से देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई और इस बात पर भारी क्षोभ प्रकट किया गया कि अपने ही देश का संविधान बनाने के काम में भारतीयों को भाग नहीं लेने दिया जा रहा है। 1927 में हुए कांग्रेस के मुंबई और मद्रास अधिवेशनों में एक प्रस्ताव के द्वारा कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान मंडलों के निर्वाचित सदस्यों तथा विभिन्न दलों के नेताओं के सहयोग से एक स्वराज्य संविधान बनाने के लिए कहा गया। भारत सचिव का कहना था कि  भारतीय स्वयं अपने लिए संविधान बनाने में सर्वथा असमर्थ थे, क्योंकि सांप्रदायिक मतभेदों के कारण वे कोई सर्वमान्य संविधान बना ही नहीं सकते थे। इसी चुनौती के उत्तर में तथा कांग्रेस के मुंबई और मद्रास अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों के संदर्भ में फरवरी, 1928 में देहली में एक सर्वदल सम्मेलन हुआ। बाद में मई, 1928 में मुंबई में हुई एक बैठक में सम्मेलन ने पंडित मोती लाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।


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