भारत का इतिहास

By: Apr 19th, 2017 12:05 am

स्वराज्य पार्टी ने की आत्मनिर्णय की मांग

समिति की रिपोर्ट नेहरू-रिपोर्ट के नाम से विख्यात हुई। यह भारतीयों द्वारा अपने देश के संविधान निर्माण की पहली चेष्टा थी। कुछ संशोधनों के साथ नेहरू-रिपोर्ट को सर्वदल सम्मेलन ने सिद्धांत रूप में स्वीकार कर लिया। नेहरू समिति द्वारा प्रस्तुत सांविधानिक व्यवस्था डोमिनियन स्टेटस तथा संसदीय पद्धति पर उत्तरदायी सरकार के सिद्धांतों पर आधारित थी। इसमें यह माना गया था कि प्रभुता का वास भारत के लोगों में है, कुछ मूल अधिकार दिए गए थे तथा एक संघात्मक व्यवस्था की रूपरेखा सुझाई गई थी, जिसके अंतर्गत अवशिष्ट शक्तियों का वास केंद्र में होता, केंद्रीय तथा प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव सम्मिलित निर्वाचक मंडलों के आधार पर होते तथा अल्पसंख्यकों के लिए कुछ सीमित काल के लिए स्थानों के आरक्षण का प्रावधान होता। 31 अक्तूबर 1929 को वायसराय लार्ड इर्विन ने घोषणा की कि साइमन आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद, भारत की सांविधानिक समस्या पर विचार करने के लिए एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा, जिसमें ब्रिटिश भारत और देशी राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे। यह सम्मेलन भारत के भावी संविधान के बारे में विभिन्न वर्गों की अधिकतम सहमति प्राप्त करने का  प्रयास करेगा। 1929-32 में लंदन में तीन गोलमेज हुए। इन सम्मेलनों के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने कुछ विस्तृत सुझाव प्रस्तुत किए, जो मार्च 1933 में एक श्वेतपत्र में प्रकाशित किए गए। ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों की एक संयुक्त समिति ने श्वेतपत्र की योजना  का परीक्षण किया और कुछ परिवर्तनों के साथ उन्हें स्वीकार किया। संसद ने यह संशोधित योजना 1935 के भारतीय शासन अधिनियम के रूप में पास की। जहां तक भारत के इस दावे का संबंध था कि उसे अपने संविधान को बनाने का अधिकार मिलना चाहिए, संसदीय संयुक्त समिति ने कहा कि भारतीयों को संविधान बनाने का अधिकार देना इस समय व्यावहारिक नहीं है। 1935 के अधिनियम की धारा- 110 में यह भी कहा गया कि भारत के संघीय और प्रांतीय विधानमंडलों को स्वतः संविधान में संशोधन करने का अधिकार न होगा। 1934 में स्वराज्य पार्टी ने आत्म निर्णय के अधिकार की मांग की और एक प्रस्ताव द्वारा घोषणा  की कि  आत्म-निर्णय के अधिकर  को क्रियान्वित करने का एकमात्र उपाय देश का संविधान बनाने के लिए  भारतीय प्रतिनिधियों की एक संविधान सभा बुलाना। कांग्रेस ने भी इस मांग का समर्थन किया और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने जून 1934 में श्वेत पत्र के संबंध में एक प्रस्ताव पास किया।


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