मोदी की मुट्ठी में माल्या !

By: Apr 20th, 2017 12:02 am

बैंकों के जरिए देश के औसत आदमी के करीब 9000 करोड़ रुपए डकारने वाले उद्योगपति विजय माल्या लंदन में हिरासत में लिए गए, लेकिन तीन घंटे में ही अदालत से जमानत भी मिल गई। माल्या मोदी सरकार के कार्यकाल में ही ‘भगोड़े’ की तरह देश छोड़ कर गए और अब प्रधानमंत्री मोदी की ही मुट्ठी में हैं, क्योंकि लंदन में वेस्टमिंस्टर कोर्ट में माल्या के खिलाफ प्रत्यर्पण का केस चलेगा। भारतीय उच्चायोग और सीबीआई के अधिकारी उस केस में भारत सरकार का पक्ष रखेंगे। मोदी सरकार की गिरफ्त माल्या की गर्दन पर कस चुकी है। प्राथमिक तौर पर ब्रिटेन सरकार के विदेश मंत्री ने हमारे साक्ष्यों और तर्कों को स्वीकार किया है, लिहाजा माल्या को हिरासत में लिया जा सका और अब प्रत्यर्पण का केस चलेगा। लेकिन फिर भी इस ‘आर्थिक आतंकवादी’ को लेकर कुछ सवाल सहज ही उठ रहे हैं। आखिर माल्या को जमानत मिली कैसे? प्रख्यात वकील एवं राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी के मुताबिक, भारत और ब्रिटेन में 1993 में प्रत्यर्पण संधि हुई। उस संधि के अनुच्छेद-12 के मुताबिक, यदि गिरफ्तारी के 60 दिनों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो आरोपी को जमानत दे दी जाती है। ब्रिटेन के कानूनों के मुताबिक, ऐसे आरोपी को लंबे वक्त तक जेल में नहीं रखा जा सकता। लेकिन माल्या को इतने बड़े अपराध के बावजूद तीन घंटे में जमानत मिल गई, यह हैरान करता है! दूसरे, जब माल्या देश से भागने में कामयाब हुए, तब ‘लुकआउट सर्कुलर’ किसके आदेश पर वापस लिया गया था? यह सवाल मोदी सरकार से ही है कि उसने अभी तक जांच क्यों नहीं बिठाई? लेकिन बुनियादी और प्राथमिक सवाल यह है कि देश जानना चाहता है कि सरकारी बैंक माल्या को लगातार कर्ज क्यों और कैसे देते रहे? सरकारी पैसा हजम करने वाले उद्योगपति को 2009 में एनपीए भी घोषित कर दिया गया, लेकिन 2010 में फिर से कर्ज कैसे मिल गया? क्या ऐसी सरकारी बैंकीय सेवाएं देश के आम नागरिक को भी नसीब होंगी? माल्या को जितना भी कर्ज बैंकों से मिला, वह सब कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के दौरान मिला, जब डा. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। बहरहाल माल्या को 17 सरकारी बैंकों के करीब 9000 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है। उनकी करीब 4200 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त करने के ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के फैसले को अदालत ने मंजूरी दे दी है। 73 करोड़ रुपए में गोवा का किंगफिशर विला नीलाम हुआ था। हालांकि विमान चौथी बार भी नीलाम नहीं हो सका। कर्ज की इस सूची में सर्वाधिक 1600 करोड़ रुपए देश के सबसे बड़े सरकारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने वसूलने हैं। उसके बाद पंजाब नेशनल बैंक और आईडीबीआई के 800 करोड़ रुपए प्रति के कर्ज हैं। बैंक ऑफ इंडिया ने 650 करोड़ और बैंक ऑफ बड़ौदा ने 550 करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा है। इनके अलावा, सूची में एक्सिस बैंक और उसके 50 करोड़ रुपए के कर्ज तक के ब्योरे हैं। दरअसल देश जानना चाहता है कि आखिर माल्या को इतना कर्ज कैसे मिला या दिया गया? इसमें किस-किस की मिलीभगत रही? यह कर्ज बैंक के चेयरमैन के आदेश तक सीमित नहीं हो सकता। इसमें मंत्रालय के सचिव और संभवतः वित्त मंत्री भी शामिल हो सकते हैं! कोई गारंटी नहीं और 9000 करोड़ रुपए माल्या की झोली में…! क्या देश में, आम करदाता के संसाधन उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को सहज ही उपलब्ध हैं? क्या वे देश का पैसा डकार सकते हैं और ऐयाशी से जीवन जी सकते हैं। बैंकों में एनपीए की राशि दिसंबर, 2016 तक 6.14 लाख करोड़ रुपए हो गई है, जो बीते 30-40 सालों में बैंकों और उद्योगपतियों की मिलीभगत का नतीजा है। यह राशि किसी भी देश का बजट हो सकती है, लेकिन भारत में बट्टेखाते में पड़ी है। इसमें मोदी सरकार के दौरान की राशि तो ‘जीरे’ बराबर है। राहुल गांधी चिल्लाना छोड़ें और वित्त मंत्री रहे अपने नेताओं को तलब करें कि ऐसा क्यों होता है? बहरहाल प्रत्यर्पण का मामला भी बहुत जटिल और लंबा है। खास चेहरों में ललित मोदी, नदीम सैफी, संजीव चावला और टाइगर हनीफ का प्रत्यर्पण अभी तक संभव नहीं हो पाया है। भारत प्रवास पर आईं ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे को मोदी सरकार ने 57 भगोड़ों की सूची दी थी, तो बदले में ब्रिटेन ने भी 17 ‘वांछित लोगों’ की सूची देकर प्रत्यर्पण की मांग की थी। पूर्व राजनयिक जी.पार्थसारथी का मानना है कि अच्छी बात यह है कि मामले को निजी तौर पर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के साथ हमारे प्रधानमंत्री ने उठाया था। प्रत्यर्पण देशों के आपसी संबंधों पर भी निर्भर करता है। ब्रिटेन के साथ हमारा प्रत्यर्पण का रिकार्ड बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है, लेकिन फिर भी उम्मीद रखनी चाहिए कि एक दिन माल्या भारत में ही होगा और फिर हम अपने कानून के मुताबिक फैसला कर सकेंगे!


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