राम मंदिर पर साजिश !

By: Apr 21st, 2017 12:05 am

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी या सवाल नहीं। अलबत्ता कुछ जिज्ञासाएं और सामान्य सवाल जरूर हैं। शीर्ष अदालत ने ऐसा कोई साक्ष्य पाया होगा या कानूनी प्रकिया में ऐसा जरूरी समझा होगा, जिसके आधार पर आपराधिक साजिश के पहलू पर न्यायिक सुनवाई करने का फैसला दिया गया है। पहला सवाल तो यह है कि आपराधिक साजिश के साथ-साथ विवादित ढांचे के स्वामित्व का फैसला क्यों नहीं हो सकता? अयोध्या में उस स्थान पर राम मंदिर बनेगा या फिर एक मस्जिद के पुनर्निर्माण का फैसला अदालत देगी? क्या आगामी दो साल के दौरान भाजपा और संघ परिवार राम…राम रटते रहेंगे और अंततः 2019 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर एक निर्णायक चुनावी मुद्दा होगा? यदि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा सरीखे चेहरों ने 1992 में कथित बाबरी मस्जिद ढहाने की कोई आपराधिक साजिश रची थी, तो उस साजिश में अन्य पक्ष कौन थे? क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और तब के हिंदूवादी प्रधान न्यायाधीश…? जब विवादित ढांचा गिराया जा रहा था, अर्द्धसैनिक बल अयोध्या में थे, तो तब कुछ घंटों के लिए प्रधानमंत्री राव कहां गायब हो गए थे? वह खामोश क्यों थे? सरकारी मशीनरी प्रधानमंत्री के अचानक किसी रहस्य-लोक में चले जाने से भौंचक्क क्यों थी? क्या प्रधानमंत्री का गायब होना और कथित बाबरी मस्जिद का विध्वंस किसी साजिश की ओर संकेत नहीं करते? क्या शीर्ष अदालत ने यह पहलू देखा है? क्या सीबीआई की विशेष अदालत लखनऊ में इस पर भी संज्ञान लेगी? आपराधिक साजिश के साक्ष्य पहले भी इलाहाबाद हाई कोर्ट और लिब्राहन आयोग के सामने आए होंगे! दोनों न्यायिक और जांच संस्थानों ने किसी भी तरह की साजिश की सूचनाओं और सबूतों से इनकार क्यों किया था? लखनऊ कोर्ट में अब तक 195 गवाहों के बयान हो चुके हैं, जबकि करीब 800 गवाहों के बयान होने बाकी हैं। क्या गवाहियां अब 25 साल बाद भी सिलसिलेवार तौर पर मिलेंगी? बहरहाल सुप्रीम कोर्ट के अपने विशेषाधिकार हैं, जिन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती। हम उम्मीद करते हैं कि दो साल की तय अवधि के दौरान ही आपराधिक साजिश की गुत्थी सुलझ जाएगी और दोषियों को सजा भी सुनाई जा सकती है, लेकिन राम मंदिर के मुद्दे का यहीं पटाक्षेप नहीं होगा। विशेष अदालत के फैसले को भी उच्च अदालत में चुनौती दी जाएगी और विवादित ढांचे का फैसला भी लटका रहेगा कि वह राम मंदिर है या कोई मस्जिद..! तो आखिर और कितने साल या दशक यह विवाद शीर्ष अदालत के विचाराधीन रहेगा और इस पर राजनीति जारी रहेगी? सवाल यह भी हो सकता है कि साजिश विवादित ढांचा गिराने की हुई या कारसेवकों को उकसाने और भड़काने को ही आपराधिक साजिश मान लिया गया? क्या कोई भी षड्यंत्र इसलिए रचा गया, ताकि राम का भव्य मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो सके? क्या अंततः राम मंदिर के लिए साजिश…! कमोबेश रामभक्त ऐसा नहीं कर सकते। रामभक्तों ने 78 बार बाहरी और विदेशी आतताइयों से टकराव लिया था, संघर्ष किया था, लहूलुहान हुए और बलिदान दिए गए थे। क्या उनकी पीढि़यां किसी साजिश के जरिए राम मंदिर बना सकती हैं? ऐसा लगता तो नहीं है, लेकिन हमें अदालत के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। एक और हास्यास्पद् और हैरतभरा पहलू यह है कि आखिर मोदी सरकार में सीबीआई इतनी स्वायत्त कैसे हो गई और उसे इस केस के लिए इजाजत कैसे दी गई? बेशक सीबीआई ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, तब केंद्र में यूपीए सरकार थी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह थे। उनकी कोशिश को समझा जा सकता है। विवादित ढांचा 6 दिसंबर, 1992 को ढहाया गया। उसके लिए न तो किसी तरह के डायनामाइट या विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया और न ही बड़े-बड़े गुंबद तोड़ने के लिए हथियारों या उपकरणों का प्रयोग किया गया। लेकिन सीबीआई किसी भी राजनीतिक या संवेदनशील मामले के संदर्भ में सबसे पहले पीएमओ की ओर देखती है। प्रधानमंत्री मोदी चाहते तो आडवाणी, जोशी, उमा सरीखे नेताओं पर आपराधिक साजिश की धाराएं नहीं लगाई जा सकती थीं। यदि सीबीआई इतना लटका सकती है, तो उसे कोई नया मोड़ दे सकती थी। इस फैसले को राष्ट्रपति की उम्मीदवारी से नहीं जोड़कर देखना चाहिए। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं, बल्कि आरएसएस भी आडवाणी को राष्ट्रपति बनाने के पक्ष में नहीं रहा है। अब तो डा. जोशी के नाम पर भी ढक्कन लग गया। बेशक भाजपा में अंदरूनी राजनीति भी है। यह मोदी और शाह की भाजपा है। उसी के मुताबिक सियासत चलती है, लेकिन प्रधानमंत्री भी नहीं चाहेंगे कि केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार होने के बावजूद उसके शीर्ष नेता अदालतों के चक्कर काटते रहें या अंततः जेल जाना पड़े। कोर गु्रप की बैठक में इसी पर मंथन किया गया है। बहरहाल अब धारा 120-बी के तहत केस चलेगा। आरोपियों को जमानत लेनी होगी। अब यह केस रोजाना की सुनवाई के आधार पर 2 साल में ही निपट जाएगा, ऐसा लगता नहीं है, लेकिन भाजपा में काफी उथल-पुथल रहेगी।


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