रिज के हवाले से

By: Apr 22nd, 2017 12:02 am

चिंता को सुनिश्चित करता रिज एक बार फिर अपने राजनीतिक ऐश्वर्य पर फिदा है। जो शिमला के इतिहास से रू-ब-रू हैं, उन्हें मालूम होगा कि रिज पर पांव धरते फिजाएं बदलती हैं और कैसे धरती व आसमान मिलते हैं। यह गौरव केवल शिमला को ही हासिल है कि रिज पर आकर प्रधानमंत्री जैसी हस्ती इस शहर के नाते में चलती है और  तब छतरी बनकर आसमान तन जाता है। एक बार फिर ऐसे नक्षत्रों में शिमला देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने आंचल में भरने को तैयार है, तो सियासत के लिए भी  यह एक अवसर बनेगा। ऐसे में शिमला नगर निगम के डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर ने सबसे पहले रिज को सियासी अड्डा बना लिया, तो विरोधी चिंतन की वजह को कई संदर्भों और इतिहास के पन्नों में खंगालना होगा। इसमें हैरानी नहीं कि जब नगर निगम के चुनाव सिर पर हों और रिज की प्रशंसा में प्रधानमंत्री का आशीर्वाद भाजपा को मिले, तो सूपड़े की रक्षा इसी दायरे में होगी। तो क्या चुनावी मुद्दों से बड़ा रिज का मुद्दा हो गया और यह इसलिए भी क्योंकि प्रधानमंत्रियों के हर आगमन से प्रदेश ही लाभान्वित हुआ। प्रदेश को पूर्ण राज्यत्व की सौगात देते हुए स्व. इंदिरा गांधी ने इसी रिज से जो आलेख लिखा, कमोबेश उसी से निकली प्रगति ने हिमाचल का आसमान बदल दिया और फिर अगर प्रधानमंत्री मोदी यहीं से हिमाचली आकाश  पर हस्ताक्षर करते हैं, तो भविष्य के कई स्रोत पैदा होंगे। विकास के तमाम दावों, उद्घाटनों व शिलान्यासों की फेहरिस्त के साथ-साथ रिज की गहमागहमी में कदमों की आहट जब एक साथ होगी, तो निस्संदेह भाजपा की उड़ान, जुब्बड़हट्टी पर उतर रही एयर इंडिया की सस्ती हवाई सेवा से कहीं अधिक कीमती होगी। टिकेंद्र भी शायद रिज पर भाजपा के उड़ते परिंदों से कहीं ज्यादा चिंतित हैं और यह इतिहास भी है कि केंद्रीय नेताओं को यह स्थल हमेशा एक शगुन की तरह, राजनीतिक समीकरणों में पढ़ पाया। खुद प्रधानमंत्री से बेहतर नेता भाजपा के पास नहीं है और जब वह रिज की क्षमता पर भारी पड़ती पार्टी क्षमता का मूल्यांकन करेंगे, तो राजनीति के न जाने कितने सूखे नलके भी बहने लगेंगे। दूसरी ओर टिकेंद्र पंवर शिमला नगर निगम के ओहदेदार हैं और कामरेड भी, इसलिए रिज का महत्त्व उनकी हस्ती सरीखा ही है। रिज की तरह उनकी सियासी क्षमता है और रिसाव का अंदेशा भी। रिज कहीं भाजपा को ही सुनता रहा, तो इसका असर नगर निगम चुनावों तक होगा। इसलिए राजनीतिक तौर पर भी रिज के समागम को नगर निगम की कुर्सियां तक सुनने लगेंगी। हालांकि शिमला को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए रिज का महत्त्व है और यही ऐसा स्थल है, जहां हर तरह की आबोहवा को महसूस किया जाता है। विडंबना यह रही कि इससे पहले शिमला के बजाय धर्मशाला शहर का चयन बतौर स्मार्ट सिटी हो गया, जहां रिज जैसा कोई ऐतिहासिक मैदान नहीं है और  इस बार रिज पर ही सियासी खतरा है। बहरहाल टिकेंद्र पंवर ने रिज के अपने खतरों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री से अपनी सभा का केंद्र बदलने का अनुरोध करते हुए भी यह नहीं समझा कि जब मोदी-शाह के केंद्र में हिमाचल आ गया, तो फिर क्या रिज और क्या रिसाव। हैरानी तो यह कि प्रदेश के एकमात्र रिज पर भी जोखिम है, तो नगर निगम का दायित्व है क्या। स्मार्ट सिटी की योजना बनाते शिमला ने यह क्यों नहीं सोचा कि भविष्य में जब भीड़ बढ़ेगी या समारोह होंगे, तो अकेले रिज का साथ देने के लिए भी तो कोई टक्कर का मैदान हो। यह पूरे हिमाचल की विडंबना है कि अगर बड़ी रैलियां करनी हों, तो ढंग के मैदान नहीं। सुजानपुर के मैदान पर बार-बार मोदी तो आ नहीं सकते, लेकिन जब रिज पर आएंगे तो उस रैली का जिक्र तो करना होगा जो केंद्र में सरकार बनाने से पूर्व हुई थी। रिज पर आ रहे प्रधानमंत्री से पहले, हम यह महसूस कर सकते हैं कि पहाड़ पर गर्मी जल्दी आ रही है और जलवायु परिवर्तन से शिमला जैसा शहर भी पसीना-पसीना है। डिजिटल बोर्ड पर अंकित तापमान के अलावा सियासी हवाओं की सारी गर्मी जब रिज तक पहुंचेगी, तो मालूम होगा कि यहां से दूर तक चुनाव तक इसकी खबर होगी। रिज एक बार फिर राजनीति को पढ़कर अपनी कमर कस रहा है। खुद को बचाने की शर्तों के बीच, भविष्य के सुर सुनने को आतुर यह वही रिज है, जिसने न जाने कितने परिवर्तनों को आते और जाते देखा, तो साथ ही समय को बदलते भी देखा।


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