रैंकिंग परीक्षा में हिमाचली संस्थान फेल

By: Apr 16th, 2017 12:05 am

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावे करने वाले हिमाचल प्रदेश के नामी शिक्षण संस्थान एमएचआरडी के नेशनल इंस्टीच्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क के मानकों पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सके। पांच कैटेगरी की मूल्यांकन परीक्षा में प्रदेश के 130 से ज्यादा शिक्षण संस्थानों में से महज चार ही टॉप-100 में अपना स्थान बना पाए हैं। आखिर राष्ट्रीय रैंकिंग में क्यों पिछड़ गए प्रदेश के संस्थान, बता रही हैं भावना शर्मा…           (भाग-1)

प्रदेश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान रखने वाली यूनिवर्सिटी की गुणवत्ता की पोल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रैंकिंग फ्रेमवर्क योजना ने खोल कर रख दी है। प्रदेश में छात्रों को गुणवत्ता युक्त उच्च शिक्षा मुहैया करवाने का दावा करने वाले यह विश्वविद्यालय रैंकिंग के पांच मानकों पर ही खरा नहीं उत्तर पाई है। शिक्षक, छात्रों और शोध के साथ-साथ शैक्षणिक गुणवत्ता के मानकों पर आधारित इस रैंकिंग प्रतिस्पर्धा में हिमाचल का एक भी विवि टॉप रैंकिंग में अपना स्थान नहीं बना पाया है। यहां तक कि प्रदेश की उच्च शिक्षा के लिए एक मात्र हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय भी देश के टॉप-100 विश्वविद्यालयों में अपना स्थान न बना कर रैंकिंग में 101 से 150 संस्थानों के बीच ही अपनी जगह तलाश पाया है।

एचपीयू में दूसरे साल भी निराशा

एमएचआरडी का यह दूसरे वर्ष की नेशनल इंस्टीच्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क है, जिसमें विवि को दूसरे वर्ष भी टॉप-100 में स्थान नहीं मिला है। इसकी सबसे बड़ी वजह रही है विवि में शैक्षणिक गुणवत्ता पर होता प्रहार,विवि में आए दिन होती हिसंक गतिविधियां तो वहीं शिक्षकों के रिक्त पदों का अनुपात,जो बीते पांच वर्षों से लगातार बरकरार है। वही प्रदेश में लागू रूसा प्रणाली के चलते विश्वविद्यालय का विफल रहना भी इस रैंकिंग में जगह न बना पाने का सबसे बड़ा कारण कहीं न कहीं बना है। अगर बात की जाए विश्वविद्यालय को सरकार की ओर से मिलने वाली ग्रांट की,तो सभी राज्यों में प्रदेश विश्वविद्यालय को प्राप्त होने वाली ग्रांट में सबसे अधिक ग्रांट हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय को 100 करोड़ की प्रदेश सरकार से अब तक प्राप्त हो रही है।

नौणी ने बचाई लाज

देश भर के टॉप-100 संस्थानों में केवल डा. वाईएस परमार बागबानी और वानिकी विवि नौणी ने ही 84वां स्थान प्राप्त कर प्रदेश के विश्वविद्यालयों की लाज रखी है। इस विवि को सरकार से 72 करोड़ तक की ग्रांट इस वर्ष अब तक प्राप्त हुई है…

सियासी खींचतान में पिछड़ी सेंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला

यही हाल प्रदेश की सेंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला का है। यह बड़ी यूनिवर्सिटी भी इस वर्ष नेशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क में 101 से 150 पायदान पर ही अपनी जगह बना पाई है। इस विवि के रैंकिंग फ्रेमवर्क में पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि प्रदेश में वर्ष 2010 में स्थापित यह सेंट्रल विवि अभी तक अपना अस्तित्व तलाशने के लिए जंग लड़ रहा है। अस्थायी रूप से विवि का कैंपस अभी शाहपुर में चल रहा है। इस विवि को प्रदेश में अपना स्थायी कैंपस देने के लिए राजनीति इतनी होती है कि यह विवि अपना एक स्थायी कैंपस भी अभी तक प्राप्त नहीं कर पाया है। कैंपस न मिलने के चलते इस विश्वविद्यालय में न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर का विस्तार हो पाया है और न ही छात्रों को बेहतर सुविधाएं मिल पा रही हैं। केंद्र सरकार से हर वर्ष करोड़ों का बजट इस संस्थान को प्राप्त होता है,जिसका आंकड़ा अभी तक 14 करोड़ से अधिक पहुंच चुका है।हालात ये हैं कि संस्थान में चल रहे यूजी, पीजी और पीएचडी कोर्सेस में छात्रों को शिक्षा देने वाली फैकल्टी का भी विवि में अभाव है। रिक्त पदों पर नियुक्तियां भी विवि में नहीं हो पा रही हैं।

फैकल्टी की कमी पड़ी भारी

प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में फैकल्टी का स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है । चाहे बात प्रदेश के कालेजों की हो या फिर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की, इन सभी में फैकल्टी की कमी की समस्या हमेशा रहती है। हिमाचल  विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती हमेशा विवादों में रही है, जिसका खामियाजा छात्रों सहित प्रदेश विश्वविद्यालय को भुगतना पड़ा है। राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते विवि में कई वर्षों तक भर्तियां अधर में ही रही हैं। 2012 में विवि ने 30 पदों के लिए साक्षात्कार करवाए, जिनके लिफाफे विवि 2016 में जाकर खोल पाया। यहीं नहीं, 2014 में भी 26 पदों के लिए साक्षात्कार करवाए गए थे, लेकिन यह भर्ती भी विवादों में घिर गई थी। हालांकि 2016 में विवि ने ये लिफाफे तो खोल दिए और भर्ती प्रक्रियां शुरू कर दी, लेकिन अभी भी विवि में शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली हैं। विवि के कई विभाग अभी भी एक-एक शिक्षक के सहारे ही चल रहे हैं। विवि में ज्यादातर फैकल्टी हिमाचल से ही है। बाहरी राज्यों से नाममात्र शिक्षक ही विवि में हैं। यही आलम पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय का भी है। यहां भी शिक्षकों के कई पद खाली हैं। पालमपुर में 380 शिक्षक होने चाहिएं, लेकिन अभी 250 शिक्षक तैनात हैं, सबसे खराब स्थिति पशु विज्ञान कालेज में बताई जा रही है।  आंकड़े बताते हैं कि कृषि विवि में हर साल औसतन दस शिक्षक रिटायर हो रहे हैं, जबकि नई नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं। अगले साल भी 13 वैज्ञानिक विवि से सेवानिवृत्त होंगे। इतना जरूर है कि हाल ही में विवि में शिक्षकों व गैर शिक्षकों के 48 पद भरने को मंजूरी मिली है। 2011 में 17, 2012 में 12, 2013 में दस और 2014 में नौ, 2015 में दस शिक्षक रिटायर हो चुके हैं, जबकि 2016 और 2017 में रिटायर होने वाले वैज्ञानिकों की संख्या 13-13 है। डा. वाईएस परमार बागबानी विश्वविद्यालय नौणी  में 237 पद शिक्षकों के स्वीकृत हैं, जिसमें से 169 शिक्षक हैं। इस विवि में भी शिक्षकों की कमी है।  इसके अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में भी शिक्षकों की काफी कमी है। यूजीसी द्वारा प्रोफेसर के 27, एसोसिएट प्रोफेसर के 53 और असिस्टेंस प्रोफेसर के 118 पद स्वीकृत किए हैं, जिसमें से अभी पांच प्रोफेसर ,11 एसोसिएट प्रोफेसर और 51 असिस्टेंस प्रोफेसर हैं। यहीं नहीं गैर शिक्षकों के भी 97 पद खाली हैं।

कालेजों में छात्र संघों का शोर

प्रदेश  के 119 कालेजों के साथ प्रदेश विवि में छात्र संगठन सक्रिय हैं। हालांकि प्रदेश के सभी कालेजों और विवि छात्र संघ के प्रत्यक्ष चुनावों पर रोक लगा दी है, लेकिन  इसके बाद भी  एसएफआई, एबीवीपी और एनएसयूआई प्रदेशव्यापी आंदोलनों और धरने-प्रदर्शन शिक्षण संस्थानों में आए दिन करते हुए नजर आते हैं। ऐसे में पूरे शैक्षणिक सत्र के दौरान छात्र राजनीति इन शिक्षण संस्थानों में चलती रहती है। शिक्षकों की राजनीति के साथ-साथ गैर शिक्षक कर्मचारियों के भी अलग-अलग संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल से प्रभावित हर एक शिक्षण संस्थान में हैं। जहां इन संगठनों के चुनावों और मांगोें को लेकर आए दिन होने वाले आंदोलनों का असर कहीं न कहीं प्रशासनिक और शैक्षणिक माहौल पर होता है।

कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने टेके घुटने

प्रदेश के तीसरे विश्वविद्यालय में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने तो नेशनल इंस्टीच्यूशन रैंकिंग फ्रेमवर्क 2017 में आवेदन न कर रैंकिंग की प्रतिस्पर्धा से ही खुद को बाहर कर लिया है। दो वर्षों में न तो बीते वर्ष और न ही इस वर्ष विवि ने रैंकिंग फ्रेमवर्क के लिए आवेदन किया है। कृषि विश्वविद्यालय ने रैंकिंग फ्रेमवर्क में अपनी योग्यता साबित करने में ही रुचि नहीं दिखाई है, जिससे यह विवि रैंकिंग में कहां स्थान रखता है इसका आकलन ही नहीं हो पाया है। हालांकि इस विश्वविद्यालय में कृषि क्षेत्र से जुड़े अनेक तरह के शोध प्रोजेक्ट चल रहे हैं। वहीं, छात्रों के लिए यूजी, पीजी और पीएचडी स्तर के प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय की अपनी एक अलग पहचान है बावजूद इसके यह विवि एमएचआरडी की योजनाओं पर गंभीर नहीं दिख रहा है। बात की जाए इस विश्वविद्यालय को सरकार से मिलने वाले बजट की, तो बीते वित्त वर्ष तक विश्वविद्यालय को 111 करोड़ तक की ग्रांट सरकार से प्राप्त हुई है।

शिक्षक राजनीति हावी

प्रदेश के संस्थानों में शिक्षक भर्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप होने की बात बार-बार सामने आती रही है। यही वजह है कि विश्व स्तरीय फैकल्टी इन संस्थानों में नहीं आती हैं। वहीं, हर एक संस्थान में शिक्षकों के राजनीतिक संगठन अपनी पैठ बनाए हुए हैं। प्रत्यक्ष रूप से तो संस्थानों में शिक्षक राजनीति पर रोक लगाई गई है, लेकिन अंदरखाते राजनीति गुट सक्रिय हैं।  यहां तक कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक और छात्र राजनीति बार-बार विवि पर हावी होती नजर आई है, जिसके चलते विवि का शैक्षणिक माहौल भी कई बार बिगड़ा है।

जानकारी के अभाव में छिटके तमगे

एमएचआरडी की ओर से बीते दो वर्षोें से की जा रही देश के टॉप-100 संस्थानों की रैंकिंग में प्रदेश के संस्थानों की जगह न बनाने के पीछे की वजह संस्थानों में इस योजना को लेकर सही जानकारी का अभाव है। एचपीयू की ओर से जो रिपोर्ट नेशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क के लिए भेजी गई है ,उसमें बहुत से पहलुओं को शामिल ही नहीं किया है। विश्वविद्यालय के कुलपतियों को अपने स्तर पर संस्थानों को प्रोत्साहित करना होगा, जिसका अभाव प्रदेश में देखने को मिल रहा है। हालात ये हैें कि बीते सत्र प्रदेश से एक भी विश्वविद्यालय को रैंकिंग फ्रेमवर्क की जानकारी नहीं थी, तो वहीं इस वर्ष भी मात्र तीन विश्वविद्यालयों और एक कालेज ने ही इस रैंकिंग में भाग लिया है। रैंकिंग में भाग न लेने की दूसरी बड़ी वजह यह भी है कि संस्थान अपनी खामियों को उजागर नहीं करना चाहते हैं और रैंकिंग फ्रेमवर्क के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, उसके बाद ही इस फ्रेमवर्क का हिस्सा बनने के लिए संस्थान आवेदन करेंगे।

टॉप-100 रैंकिंग में सिर्फ चार संस्थान

 आईआईटी मंडी

 रैंक —35वां

खूबियां—नामी कंपनियों में 65 छात्रों को लाखों का पैकेज

एनआईटी हमीरपुर

रैंक—59वां

खूबियां-बेहतर शैक्षणिक माहौल, बड़ा पुस्तकालय, 204 टीचर

जेपी यूनिवर्सिटी सोलन

रैंक— 83 वां

खूबियां— बेहतर फैकल्टी के साथ लाजवाब शैक्षणिक माहौल

नौणी विश्वविद्यालय

रैंक – 84वां

खूबियां—बागबानी एक्सपर्ट्स की रिसर्च, बोटेनिकल-हर्बल गार्डन

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर सुविधाएं देने के दावे करने वाले प्रदेश के 130 से अधिक शिक्षण संस्थानों की पोल केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नेशनल इंस्टीच्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क ने खोल दी है। रैंकिंग में पिछड़े प्रदेश के संस्थान नेशनल इंस्टीच्यूशनल  रैंकिंग फ्रेमवर्क 2017 में प्रदेश के मात्र चार शिक्षण संस्थान ही देश के टॉप-100 में जगह बना पाए हैं। इनमें से दो संस्थान जहां तकनीकी शिक्षा से जुड़े हैं, तो वहीं दो अन्य संस्थानों में एक सरकारी विश्वविद्यालय तो एक निजी विश्वविद्यालय शामिल है। तकनीकी संस्थानों में आईआईटी मंडी को ओवरआल रैंकिंग में 35वां स्थान प्राप्त हुआ है तो एनआईटी हमीरपुर को 59वां स्थान प्राप्त हुआ है। जेपी यूनिवर्सिटी को इस रैंकिंग एमएचआरडी की ओर से 83वां और प्रदेश का सरकारी विवि नौणी  84वें पायदान पर रहा है। इन संस्थानों को रैंकिंग में अपना स्थान बनाने में इनकी खूबियों ने मदद की है। एमएचआरडी ने नेशनल इंस्टीच्यूशनल  रैंकिंग फ्रेमवर्क के मानकों पर काफी हद तक खरे उतरे हैं। नेशनल इंस्टीच्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क में संस्थान की रैंकिंग देने के लिए किसी भी शिक्षण संस्थान में विद्यार्थियों के लिए बेहतर लर्निंग रिसोर्सेज, शोध के मामले में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर जर्नल में प्रकाशन, संस्थान की बुनियादी सुविधा, अध्ययन करके निकलने वाले छात्रों के फीडबैक और समाज में संस्थान की छवि को लेकर मूल्यांकन किया गया है। रैंकिंग के पांच मानकों को शामिल किया गया था, जिसमें टीचिंग, लर्निंग एंड रिर्सोस रिसर्च एंड प्रोफेशनल प्रैक्टिस-ग्रेजुएशन आउट कम,   और इनक्लूसिविटी-परसेप्शन शामिल किया गया था। मानकों में संस्थान की ओर से दी गई  जानकारी को कई श्रेणियों में बताना होता है। मसलन, स्टूडेंट्स की संख्या, कितने छात्र, कितनी छात्राएं, कुल बजट और उसका यूटिलाइजेशन, छात्रों का इंटेलेक्चुअल प्रापर्टी राइट में योगदान, ग्रेजुएट, पीएचडी स्कॉलरों की संख्या, रिसर्च पेपर की संख्या, शिक्षक-छात्र अनुपात, सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों की संख्या आदि मानकों पर संस्थान की रैंकिंग की जाती है।

इसमें विभिन्न कोर्सेस में छात्रों की संख्या 844 के करीब है। संस्थान में स्वीकृत शिक्षकों के पद 90 है, जबकि संस्थान में शिक्षकों की संख्या 97 के करीब है। संस्थान में यूजी में छात्रों की संख्या 474 और पीजी कोर्सिस में 66, जबकि पीएचडी में छात्र संख्या 185 के करीब है। आईआईटी मंडी में शोध का स्तर भी बेहतर है। आईआईटी मंडी में प्लेसमेंट सैल भी मजबूत है। संस्थान के 65 स्टूडेंट्स को देश की नामी कंपनियों के जॉब ऑफर मिले हैं। सभी की प्लेसमेंट आईआईटी मंडी के प्लेसमेंट सैल के तहत हुई है। प्रथम चरण में कंपनियों ने 65 स्टूडेंट्स को जॉब ऑफर की है। एक प्रशिक्षु को सबसे अधिक 28 लाख का पैकेज ऑफर किया गया है। आईआईटी में दूसरे चरण में प्लेसमेंट का दौर चल रहा है। औसतन दस लाख रुपए प्रति स्टूडेंट को पैकेज ऑफर किया गया है।

 एनआईटी हमीरपुर प्रदेश के नामी शिक्षण संस्थानों में से एक है। इसके पुस्तकालय में लगभग 100 विद्यार्थियों की एक साथ बैठने की  व्यवस्था है। एनआईटी हमीरपुर इनडोर और आउटडोर खेलों के लिए खेल सुविधाएं प्रदान करता है। खेल सुविधाओं के अतिरिक्त कालेज छात्रों को समय-समय पर ऐतिहासिक भ्रमण या एजुकेशनल टूअर के लिए बाहर भी ले जाता है। तकनीकी शिक्षा के लिहाज से इसे हिमाचल का सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना जा सकता है। एनआईटी हमीरपुर में 204 शिक्षक तैनात हैं, जबकि  2800 के करीब छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिसमें यूजी में 2195 छात्र है और पीजी में 415 हैं, जबकि पीजी इंटिग्रेटिड में 167 और पीएचडी में 108 छात्र हैं। संस्थान में नौ प्रोजेक्ट पर शोध कार्य चल रहा है। इस संस्थान को टॉप-100 में जगह दिलाने में संस्थान का शैक्षणिक स्तर बेहतर होने और छात्रों को बेहतर सुविधाएं और प्लेसमेंट मुहैया करवानी जैसी सुविधाओं का अहम स्थान रहा है। इसके अलावा रैंकिंग में 83वे स्थान पर रही जेपी यूनिवर्सिटी सोलन एक निजी विश्वविद्यालय है।

यहां बेहतर फैकल्टी के साथ-साथ बेहतर सुविधाएं भी हर क्षेत्र में छात्रों को मिल रही हैं। वहीं सरकारी विश्वविद्यालय नौणी को उसके बागबानी, वानिकी के क्षेत्र में छात्रों को बेहतर शिक्षा देने के लिए रैंकिंग में स्थान मिला है। नौणी विवि में तीन अलग-अलग कालेज चलाए जा रहे हैं।

इनमें   बेहतर शोध के लिए बोटेनिकल गार्डन, हर्बल गार्डन में ही ऐसे पेड़-पौधे और मेडिसिन प्लांट उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, जिससे छात्र कैंपस में ही बेहतर शोध कार्य कर रखे। बागबानी रिसर्च  के आधार पर विवि को 84वीं रैंकिंग मिली है।

नए कालेजों में स्टाफ नहीं

 प्रदेश के कालेजों में भी स्टाफ की भारी कमी है। प्रदेश सरकार ने छात्रों को घर द्वार उच्च शिक्षा मुहैया करवाने के लिए कालेज तो खोल दिए हैं, लेकिन इनमें पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं। प्रदेश में कालेजों की बात की जाए तो 36 नए खुले कालेजों में फैकल्टी न के बराबर है। प्रिंसीपल की तैनाती तो कई नए कालेजों में कर दी गई है, लेकिन एक मात्र आर्ट्स संकाय के लिए भी पर्याप्त शिक्षक इन कालेजों में सरकार नियुक्त नहीं कर पाई है। तो वहीं अन्य कालेजों में भी शिक्षकों की कमी है। प्रदेश के कालेजों में सैकड़ों पद शिक्षकों के खाली हैं। इन खाली पदों को भरने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा उचित कदम नहीं उठाए जा रहे है,ं जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App