लावारिस पशुओं को उपयोगी बनाएं

By: Apr 7th, 2017 12:02 am

प्रेम भावटा लेखक, रोहड़ू, शिमला से हैं

लावारिस पशुओं को चिन्हित कर उनके लिए चरागाहों की व्यवस्था की जाए। सरकार की देखरेख में पशु मेले भी आयोजित किए जा सकते हैं, जिसमें कृषि व भार-वहन हेतु पशुओं की वैध बिक्री संभव हो सकती है। जब तक पशुओं को उपयोगी नहीं बनाया जाता, तब तक इस समस्या का हल नहीं निकल पाएगा…

किसी भी देश का विकास संसाधनों की उपलब्धता और उनके विवेकपूर्ण दोहन पर निर्भर करता है। यह दोहन मानव की बौद्धिक शक्ति, शारीरिक शक्ति, पशुधन शक्ति, धन शक्ति एवं खनिज संपदा शक्ति के रूप में हो सकता है। इस दोहन को ही तथाकथित क्रांति का नाम दिया जाता है। हर क्रांति अपने साथ कुछ न कुछ अवगुण लेकर आती है। श्वेत क्रांति के आने से एक ओर जहां दुग्ध उत्पादन में आशातीत बढ़ोतरी संभव हो पाई, वहीं एक ऐसी सामाजिक, धार्मिक एवं मानवीय समस्या उठ खड़ी हुई, जिसका हल हम अब तक खोज नहीं पाए हैं। आज हालात ये हैं कि जो गोवंश कभी हमारी संपन्नता की निशानी माना जाता था, उसी गोवंश को हम सड़कों पर धकेल रहे हैं। ये परिस्थितियां कैसे बनीं, इस पर गौर किए बिना इस समस्या का हल नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए जिम्मेदार अधिकतर कारण नीतिगत हैं। इसका दोष सिर्फ पशुपालकों को भी नहीं दिया जा सकता, क्योंकि गैर उपयोगी संसाधन को आप सिर्फ आस्था की एवज में ज्यादा दिन तक नहीं ढो सकते। जब से गोवंश का संकरीकरण हुआ है, यह समस्या उस समय से ही उपजनी आरंभ हुई है। इसके लिए कृत्रिम गर्भाधान प्रणाली भी दोषी है, जिसके कारण गउओं में बांझपन की समस्या बढ़ी है। पूर्व में हमारा गोवंश सामूहिक रूप से झुंडों में विचरण करता था। झुंडों में मौजूद सांड द्वारा प्राकृतिक रूप से गाय गाभिन हुआ करती थी। बांझपन की समस्या न के बराबर थी। सामूहिक चरागाहों पर अवैध अतिक्रमण के चलते इस भारी-भरकम शरीर वाले पशु, जो कि इस पहाड़ी प्रदेश की भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार अनुपयुक्त थे, उसे पशुपालकों को खूंटे पर बांधने के लिए विवश होना पड़ा। इसके कारण प्राकृतिक रूप से गर्भाधान में रुकावट आई।

इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी की जा सकती है कि बांझपन की समस्या अधिकतर उन गउओं में अधिक देखी जा सकती है, जिनकी विशाल कद-काठी है। एक और परंपरा के टूटने से बांझपन की समस्या बढ़ी है। हमारे समाज में सामूहिक रूप से सांड़ पालने का चलन था, जिसे शिव-नादिया कहा जाता था। उसे कहीं भी विचरण करने की छूट थी, क्योंकि उस वक्त भी लोगों को उसकी उपयोगिता का अंदाजा हो चुका था। उसकी परवरिश को आस्था के साथ जोड़ा गया था। बछड़ों के पालन-पोषण में हो रहा पक्षपात भी इसका एक कारण  है। उन्हें अपेक्षाकृत कम दूध देकर मरने के हालात में छोड़ दिया जाता है। यदि खुशकिस्मती से कोई बच जाए तो उन्हें पांच-छह माह की उम्र में सड़कों पर धकेल दिया जाता है। जहां उन्हें आवारा कुत्ते नोच जाते हैं। इस तरह प्रकृति की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी टूट जाती है, जिसके कारण वयस्क सांड की उपलब्धता कठिन हो जाती है। गांव के कुल देवता या ग्राम देवता इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सरकारी डिपुओं में मिलने वाले सस्ते राशन की सुलभ उपलब्धता ने पशुपालकों को बिजाई और कटाई के झंझट से छुटकारा दिला दिया है। इसके कारण उसके लिए पशु पालना गैर उपयोगी साबित हो रहा है। अगर परिस्थिति ऐसी ही रही, तो निकट भविष्य में सरकार को दूध व दूध से बने पदार्थों को भी सरकारी डिपुओं पर उपलब्ध करवाना पड़ेगा। माननीय न्यायालय के दिशा-निर्देशानुसार सरकार गौशाला के निर्माण की योजना को जमीनी स्तर पर उतारने की कोशिश कर रही है, जिसके परिणाम भी आशातीत नहीं लग रहे हैं।

इसकी तस्वीर कुछ इस तरह से दिखती है गौशाला में 10-20 पशु फटेहाल बाड़े में बंद होंगे, मानो कैद काट रहे हों। वहां से गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जुबान से व्यवस्था को कोसने वाले शब्द ही निकलेंगे। यह महज एक रोजगार परक योजना बनकर रह गई है और सेवाभाव इस में से गायब हो रहा है। किसान का पशुपालन से दूरी बनाने का एक कारण उपभोक्ता का असली शुद्ध व मिलावटी व नकली दूध का ठीक-ठाक बोध न होना भी है। ईमानदार दूध उत्पादक को प्रोत्साहन न मिलने से उसके लिए मिलावटी व नकली दूध के साथ स्पर्धा करना कठिन हो रहा है। मांग और पूर्ति के समीकरण को मिलावर्टी व नकली दूध पाट रहा है। जैविक खेती की पहचान भी नगण्य है। रासायनिक उत्पाद भ्रामक प्रचार के चलते बाजी मार रहे हैं। जैविक खेती को प्रोत्साहित करना होगा। इतनी बड़ी तादाद में पशुओं को सरकारी जिम्मेदारी पर छोड़ना व्यावहारिक नहीं है। इसके लिए एक योजना यह हो सकती है कि लावारिस पशुओं को चिन्हित कर उनके लिए चरागाहों की व्यवस्था की जाए। सरकार की देखरेख में पशु मेले भी आयोजित किए जा सकते हैं, जिसमें कृषि व भार-वहन हेतु पशुओं की वैध बिक्री संभव हो सकती है। जब तक पशुओं को उपयोगी नहीं बनाया जाता, तब तक इस समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App