सख्ती से करवाएं सड़क नियमों का पालन

By: Apr 25th, 2017 12:07 am

newsसंदीप अवस्थी

लेखक, मंडी से हैं

हमें ध्यान में रखना होगा कि पर्यटन क्षेत्र में सुरक्षा पर्यटकों की प्राथमिकता में रहती है। कोई पर्यटक हिमाचल से जख्म लेकर वापस लौटे, तो वह दोबारा हिमाचल क्यों आना चाहेगा। लिहाजा यदि हम वास्तव में पर्यटन राज्य बनने के लिए गंभीर हैं, तो पर्यटकों की सुरक्षा की खातिर सड़क यातायात को सुरक्षित बनाना होगा…

आए दिन हिमाचल प्रदेश में सड़क दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं, जिसमें हजारों निर्दोष लोग असमय मौत का ग्रास बनते जा रहे हैं। कारण चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन देवभूमि हिमाचल में लगातार दुर्घटनाओं का आंकड़ा भयानक ही होता जा रहा है। तीखे मोड़, सर्पीली सड़कें भी इसका एक अहम कारण है। नशे में गाड़ी चलाना, मोबाइल फोन का गाड़ी चलाते वक्त प्रयोग करना, यातायात नियमों को नजरअंदाज करके गाड़ी चलाना आदि भी ऐसे कुछ कारण हैं, जो सड़क हादसों के कारण बन रहे हैं। प्रदेश में अब कोई भी ऐसा जिला नहीं रहा होगा, जिसने भयंकर सड़क हादसों को न झेला हो। हादसे होते हैं, हर बार जांच कमेटी बिठाई जाती है, सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाती है और फाइल बंद हो जाती है। यदि इसी तरह से हिमाचल में दुर्घटनाओं का सिलसिला चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों का आना-जाना न के बराबर हो जाएगा और न जाने कितने ही लोग मौत का ग्रास बन कर रह जाएंगे। वर्ष 2017 के शुरुआती दिनों में ही प्रदेश में भयंकर दुर्घटनाओं का सिलसिला शुरू हो गया था और एक दर्दनाक हादसे में मंडी-कुल्लू मार्ग पर कनिका बस ब्यास नदी में गिर गई थी। इसमें में 40 के करीब लोग मारे गए थे और अब जिला सिरमौर के नेरवा में बस टौंस नदी में समा गई और 44 के लगभग लोगों की जान मौके पर चली गई। इन विभिन्न दुर्घटनाओं से देवभूमि सिहर उठी है। आखिर यह सब मानवीय भूलों के कारण हो रहा या देव इच्छा से, इस तर्क को सुलझा पाना इतना सरल नहीं होगा। आखिर कब तक हिमाचल की नदियां, सड़कें और पहाड़ इन भयानक हादसों की गवाही भरते रहेंगे। आज की इस भागदौड़ की जिंदगी में किसी के पास भी इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे के बारे में चर्चा करने का समय नहीं है। जब कोई हादसा घटित हो जाता है, तभी सबको पुराने हादसों की दर्द भरी दास्तां याद आती है। टौंस नदी में बस का गिरना एक बार फिर हमें चेता रहा है कि हमें ऐसे हादसों को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। परिवहन माफिया पर सख्त लगाम कसने की तैयारी सरकार को करनी होगी। खटारा बसों को खत्म करके उनके स्थान पर नई बसों को ही चलने की अनुमति देनी चाहिए, ताकि कल को कोई और बेकसूर अपनी जान से हाथ न धो बैठे। बस चालकों और परिचालकों की क्षमता और कुशलता को भलीभांति परखते हुए ही इन्हें गाड़ी चलाने की जिम्मेदारी दी जाए। पहाड़ी राज्य हिमाचल में बेहिसाब तीखे मोड़ हैं। न जाने कितने ही हादसे ऐसे होंगे, जो इन मोड़ों की वजह से होते हैं। अतः इन तीखे मोड़ों को दुरुस्त करना होगा। जिन स्थानों पर दुर्घटनाओं की संभावना अधिक हो, वहां चेतावनी सूचक निशान लगवाने होंगे। सड़क हादसों का एक अहम पहलू यह रहा है कि इनमें बाहरी राज्यों से आ रही कई बसें शिकार हो चुकी हैं। दूसरे राज्यों से आने वाली इन बसों पर कड़ी निगरानी रखनी होगी। प्रदेश में प्रवेश करते ही दूसरे राज्यों के बस चालकों को पहाड़ी व मैदानी सड़कों के फर्क को समझाते हुए उचित सतर्कता बरतने की हिदायत देनी चाहिए।

हिमाचल प्रदेश को यदि दुर्घटना मुक्त और पर्यटन राज्य बनाना है, तो अब सख्त कदम उठाने का वक्त आ गया है, नहीं तो ये दुर्घटनाओं का तांडव नहीं थम सकता। हमें ध्यान में रखना होगा कि पर्यटन क्षेत्र में सुरक्षा पर्यटकों की प्राथमिकता में रहती है। कोई पर्यटक हिमाचल से जख्म लेकर वापस लौटे, तो वह दोबारा हिमाचल क्यों आना चाहेगा। लिहाजा यदि हम वास्तव में पर्यटन राज्य बनने के लिए गंभीर हैं, तो पर्यटकों की सुरक्षा की खातिर सड़क यातायात को सुरक्षित बनाना होगा। नशे में गाड़ी चलाने वालों के लाइसेंस रद्द करने के साथ-साथ उन्हें सजा का भी प्रावधान होना चाहिए। कानून को सख्त बनाने के साथ उसका प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन भी किया जाना चाहिए। प्रदेश में कई हादसे ओवरलोडिंग के कारण भी होते हैं। नियमों को ताक पर रखकर बस सेवा देने वालों को भी कड़ाई से नियंत्रित करना होगा। बाहरी राज्यों से आने वाली जो गाडि़यां हादसों का शिकार होती हैं, उनमें से अधिकतर गाडि़यां खटारा होती हैं। इसी कारण ये यहां हादसे का शिकार होती हैं। अभी हाल ही में शिमला में हुए बस हादसे में भी यही बात निकलकर सामने आई है।

मिट्टी का तेल भी बसों में खूब प्रयोग में लाया जा रहा है, लेकिन विभाग इनका कुछ भी नहीं कर पाता। हिमाचल के कई निजी संस्थानों में खटारा गाडि़यां बच्चों और स्टाफ को ढोती हुई देखी जा सकती हैं। देश की यह मानवीय संपदा भी यहां सुरक्षित नहीं है। किसी भी देश या प्रदेश की सरकारें सर्वोच्च शक्तिशाली होती हैं। यदि सरकार कठोर फैसले लेने पर आ जाए, तो ऐसे हादसों पर कुछ ही दिनों में लगाम लगाई जा सकती है। आश्चर्य की बात है कि सब कुछ होने के बावजूद सड़कों पर परिवहन माफिया की गाडि़यां बेखौफ दौड़ रही हैं और जब कोई अनहोनी घटना घटित होती है, तभी आनन-फानन में झूठे शोक प्रकट किए जाते हैं। कुछ समय बाद फिर वही लचर व्यवस्था और फिर कोई नया हादसा। हिमाचल के संदर्भ में हर बार यही पुरानी कहानी दोहराई जा रही है। यदि सरकार और विभाग पाक साफ हैं, तो ऐसी गाडि़यां सड़क पर किसकी मिलीभगत से दौड़ रही हैं? इसका जवाब जनता चाहती है।

ई-मेल : awasthi.bjp1977@gmail.com

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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