सिर पर शिखा के वैज्ञानिक कारण

By: Apr 23rd, 2017 12:05 am

हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही लोग सिर पर शिखा रखते आ रहे हैं खास कर ब्राह्मण और गुरुजन। सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है कि इस कार्य को आर्यों की पहचान तक माना लिया गया।  यदि आप यह सोचते हैं की शिखा केवल परंपरा और पहचान का प्रतिक है, तो आप गलत हैं। सिर पर शिखा रखने के पीछे बहुत बड़ी वैज्ञानिकता है जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चूका है। आज हम इस लेख में सिर पर शिखा की वैज्ञानिक आधार पर विवेचना करेंगे जिससे आप जान सके की हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज ज्ञान विज्ञान में हम से कितना आगे थे। सर्वप्रमुख वैज्ञानिक कारण यह है कि शिखा वाला भाग, जिसके नीचे सुषुम्ना नाड़ी होती है, कपाल तंत्र के अन्य खुली जगहों मुंडन के समय यह स्थिति उत्पन्न होती है। जिसके खुली होने के कारण वातावरण से उष्मा व अन्यब्रह्मांडिय विद्युत-चुंबकी य तरंगों का मस्तिष्क से आदान प्रदान बड़ी ही सरलता से हो जाता है। और इस प्रकार शिखा न होने की स्थिति में स्थानीय वातावरण के साथ-साथ मस्तिष्क का ताप भी बदलता रहता है। मस्तिष्क को सुचारु सर्वाधिक क्रियाशिल और यथोचित उपयोग के लिए इसके ताप को नियंत्रित रहना अनिवार्य होता है, जो शिखा न होने की स्थिति में एकदम असंभव है।  क्योंकि शिखा लगभग गोखुर के बराबर इसताप को आसानी से संतुलित कर जाती है और उष्मा की कुचालकता की स्थिति उत्पन्न करके वायुमंडल से उष्मा के स्वतः आदान प्रदान को रोक देती है। आज से कई हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज इन सब वैज्ञानिक कारणों से भलिभांति परिचित हैं। जिस जगह शिखा चोटी रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है। शिखा एक धार्मिक प्रतीक तो है ही साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। आधुनिक युवा इसे रूढि़वाद मानते हैं, लेकिन असल में यह पूर्णतया वैज्ञानिक है। दरअसल, शिखा के कई रूप हैं।  आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते हैं, लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नहीं है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है।   शरीर में पांच चक्र होते हैं, मूलाधार चक्र जो रीढ़ के निचले हिस्से में होता है और आखिरी है सहस्राह चक्र जो सिर पर होता है। इसका आकार गाय के खुर के बराबर ही माना गया है। शिखा रखने से इस सहस्राह चक्र का जागृत करने और शरीर, बुद्धि व मन पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। शिखा का हल्का दबाव होने से रक्त प्रवाह भी तेज रहता है और मस्तिष्क को इसका लाभ मिलता है।


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