सैलानियों की कल्चरल नाइट्स किसने की बंद

By: Apr 24th, 2017 12:05 am

कांगड़ा —  गर्मी से निजात पाने के लिए पर्यटकों ने ठंडे पहाड़ों की तरफ रुख किया है तो पर्यटन व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों के चेहरे खिले हैं, वे प्रसन्न इसलिए हैं, क्योंकि आगाज अच्छा है, तो उन्हें उम्मीद है कि सीजन भी इस बार अच्छा ही रहेगा। हालांकि सरकार की तरफ से पर्यटकों को सुविधाएं देने के कोई ठोस बंदोबस्त न किए गए हैं। बावजूद इसके पर्यटकों के कांगड़ा घाटी आने का सिलसिला बरकरार है। कुछ वर्ष पूर्व पर्यटन विभाग ने यहां देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन शुरू किया था, लेकिन पिछले चार-पांच वर्षों से ऐसी संध्याओं को बंद कर दिया गया है। ऐसा क्यों हुआ, इसका कोई ठोस जवाब महकमों के पास नहीं है। उल्लेखनीय है कि धौलाधार होटल, क्लब हाउस मकलोडगंज, चामुंडा देवी व पालमपुर इत्यादि स्थानों पर पर्यटन सीजन में करीब दो माह तक रोजाना सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। राजस्थान में भी ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रम पर लोक कला को पर्यटकोें के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। ऐसे कार्यक्रमों को महंगी टिकट लेकर देखा जा सकता है। टैक्सी चालक, ऑटो चालक पर्यटकों को सायं ऐसे स्थल पर पहुंचाने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। उदयपुर में ऐसे एक घंटे के कार्यक्रम को देखने के लिए 90 रुपए चुकाने पड़ते हैं। अगर कैमरा या मोबाइल से फोटो लेना है तो 100 रुपए अलग से देना होगा। एक बारी में करीब 500-1000 लोग कार्यक्रम का लुत्फ उठाते हैं। यानी एक अनुमान के अनुसार एक कार्यक्रम में 40 से 50 रुपए की आय होती है। तो फिर यहां ऐसी कोशिशें क्यों नहीं की जातीं। कश्मीर में हालात खराब हो जाने की वजह से पर्यटकों ने वहां जाने से किनारा कर लिया है। ऐसे में पर्यटकों ने हिमाचल की तरफ रुख किया है।

बैठकों की बजाय काम करने की जरूरत

यहां बड़े प्रोजेक्ट मसलन रोप-वे, ट्यूलिप गार्डन, स्काई व बस, पौंग में वाटर ट्रांसपोर्ट, तकीपुर का अधूष पर्यटन केंद्र, कांगड़ा बाइपास का सौंदर्यीकरण को लेकर भले ही कागजी कार्रवाइयों का दौरा चला हो, लेकिन हिमाचली लोक कला को तो पर्यटकों के आगे प्रस्तुत किया जा सकता है। इसके लिए उच्च स्तरीय बैठकों व उच्चाधिकारियों से मंजूरी लेने के बजाय धरातल पर काम करने की जरूरत है।


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