सौतेले व्यवहार से कुंद होती प्रतिभा

By: Apr 21st, 2017 12:07 am

newsभूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

हिमाचल शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में आता है, तो हमें खेल तथा अन्य युवा गतिविधियों में भी विद्यार्थियों को शिक्षा संस्थान में फलने-फूलने का पूरा-पूरा मौका देकर अच्छे शिक्षक होने का परिचय देना होगा, नहीं तो हमारी शिक्षा को रट्टे की शिक्षा के दर्जे से अधिक कुछ नहीं मिलेगा…

हिमाचल प्रदेश में खेलों का स्तर देश के पड़ोसी राज्यों के मुकाबले अभी बहुत नीचे है। खेलों के स्तर का पता करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका दिखाती है कि हिमाचल का कभी-कभार ही किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक आता है। खेलों के उत्थान के लिए विद्यालय तथा महाविद्यालय स्तर पर जब तक काम नहीं होगा, खेलों को ऊपर नहीं लाया जा सकता है। शिक्षा की तरह ही खेल राज्य सूची का विषय है। केरल के बाद हिमाचल देश का सबसे शिक्षित राज्य है, मगर खेलों में हिमाचल केरल से बहुत पीछे है। इसका कारण हिमाचल में शिक्षा संस्थानों में खेल गतिविधियों में हतोत्साहित करना है। हिमाचल प्रदेश के विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में खिलाडि़यों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। बिना खेल छात्रावासों के हमीरपुर का सरकारी महाविद्यालय हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय खेल प्रतियोगिताओं में हर वर्ष औसतन आठ-दस विजेता या उपविजेता ट्रॉफियां जरूर जीतता है। नब्बे के दशक में प्राचार्य डा. ओपी शर्मा तथा शारीरिक शिक्षा के प्राध्यापक प्रो. डीसी शर्मा द्वारा महाविद्यालय में खेलों को उत्कृष्टता दिलाने के लिए प्रशिक्षकों का प्रबंध तथा विजेता खिलाडि़यों को नकद इनाम दिलाने की परंपरा शुरू की गई और राष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता खिलाडि़यों  को हजारों रुपए नकद इनाम देना भी शुरू किया था और यह इनाम सबसे पहले दिया जाता था। उसके बाद हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय स्तर पर मैरिट में आने वाले विद्यार्थियों को दिया जाता था। उसके बाद खेल तथा अन्य गतिविधियों के पदक विजेताओं को इनाम दिया जाता था। तदोपरांत महाविद्यालय स्तर पर विश्वविद्यालय परीक्षा में पहले तीन स्थानों पर आने वालों को तथा अंत में हाउस परीक्षा तथा अंतर कक्षा खेल प्रतियोगिताओं के राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर में इस परंपरा को तोड़ कर परीक्षा में पहले तीन स्थानों में आने वालों को विश्वविद्यालय स्तर से लेकर हाउस परीक्षा तक के इनाम पहले दिए गए और राष्ट्रीय स्तर के पदक विजेताओं को सबसे बाद में इनाम दिए गए, जबकि वहां कुछ खिलाडि़यों को छोड़कर कोई पास नहीं था। राजकीय महाविद्यालय के खिलाडि़यों ने इसके लिए बाद में महाविद्यालय प्रशासन को भविष्य में ऐसा न करने का लिखित आवश्वासन मांगा है, नहीं तो वे किसी और महाविद्यालय में अपना भविष्य तलाशेंगे। ऐसा क्यों हो रहा है? इस सबके पीछे वहां के कुछ प्राध्यापकों का हाथ बताया जा रहा है।

हर बार वार्षिक इनाम बांट समारोह में हमीरपुर महाविद्यालय के खिलाड़ी ही पिछले तीन दशकों से मुख्य आकर्षण का केंद्र रहे हैं। विश्वविद्यालय स्तर पर मैरिट में कई बार तो एक भी छात्र नहीं होता है, इसलिए अपनी नाकामी छिपाने के लिए राष्ट्रीय स्तर व हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पदक विजेता खिलाडि़यों को इनाम बांट समारोह का आकर्षण न बनने देने के लिए अब उनको इनाम ही सबसे बाद में देने का दुचक्र रच दिया है। इस विषय में प्राचार्य तथा प्राध्यापक शारीरिक शिक्षा को जरूर सोचना होगा कि गलती कहां हो रही है। जब प्रदेश का देश की सरकारें खिलाडि़यों को करोड़ों रुपए तक नकद इनाम पदक जीतने पर दे रही हैं, साथ ही प्रशासनिक सेवाओं में नौकरी भी दे रही हैं, ऐसे में महाविद्यालय को अपने पदक विजेता खिलाडि़यों का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने प्रदेश व देश को गौरव दिलाया होता है। मीडिया चाहे छपने वाला हो या टेलीविजन व रोडियो, खेल की खबरों को उचित स्थान दिया जाता है। हर अखबार एक पूरा पृष्ठ प्रतिदिन खेल समाचारों को देती है, तो क्या ऐसे में हमारे महाविद्यालय अपने खिलाडि़यों को प्रोत्साहित करने की जगह उनको जलील करेंगे। पूरे संसार में अंतरराष्ट्रीय खेलों को खिलाड़ी महाविद्यालय व विश्वविद्यालय देते हैं। क्या हिमाचल अपने महाविद्यालयों में खिलाडि़यों को प्रताडि़त करता रहेगा।

किसी देश की तरक्की व खुशहाली का पैमाना खेलें होती हैं। इसका सटीक उदाहरण ओलंपिक खेलों की पदक तालिका होती है। विश्व के सब विकसित देश अमरीका, रूस, जर्मनी, जापान, यूके, चीन, कोरिया आदि पदक तालिका में आसानी से ऊपर देखे जा सकते हैं। अगर हिमाचल शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में आता है, तो हमें खेल तथा अन्य युवा गतिविधियों में भी अपने विद्यार्थियों को शिक्षा संस्थान में फलने-फूलने का पूरा-पूरा मौका देकर अच्छे शिक्षक होने का परिचय देना होगा, नहीं तो हमारी शिक्षा को रट्टे की शिक्षा के दर्जे से अधिक कुछ नहीं मिलेगा। यही कारण है कि देश में महाविद्यालयों की हुई रैंकिंग में पहले सौ स्थानों तक किसी भी हिमाचली महाविद्यालय का न होना कहीं सही तो नहीं है।

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हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

  -संपादक


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