हम किसी से कम नहीं

By: Apr 17th, 2017 12:05 am

गंगा राम राजी

आज की कहानी में कहानी के तत्त्व कथानक, पात्र संवाद, देश, काल, भाषा शैली और उद्देश्य आदि की चर्चा नहीं हो सकती। आज कहानी में इनकी अनिवार्यता खोजना कहानी के स्थूल रूप को दर्शाना है। कथानक में ह्रास आया है और चरित्रों में जटिलता का समावेश हुआ है और प्रतिनिधि चरित्रों की जगह व्यक्ति चरित्रों की सृष्टि हुई है। कथा और शिल्प की एक तानता मिलती है। हमारे दश में एक नए मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसका संबंध गांव और शहर दोनों से है, जहां गांव से शहर की ओर के पलायन से गांव में परिवार के विघटन की प्रक्रिया तेज होती गई, वहीं शहर में नए परिवार का आधार बिंदु भी बदलने लगा। यह प्रभाव भारत के दूसरे प्रदेशों से हिमाचल की ओर भी पलायन करने लगा है। आज की कहानी में इन्हीं के अंतरविरोधों की कथा है। हिमाचल के कहानीकार इसी तथ्य को लेकर कदमताल करते दिखाई देते हैं। आज कहानी के तत्त्व के साथ शिल्प भी बदला है। आज की कहानी जीवन के साथ के यथार्थ, जीवन के लिए की जाने वाली मशक्कत, शोषण, खीज, स्नेह आदि को एक साथ लेकर कहानी के आंतरिक अनुशासन का पालन करते हुए सार्थकता तक पहुंची है।  कहानी को जीवन के साथ होना चाहिए तब पाठक जीवन के अनुभव का मिलान लेखक के अनुभव से तो कर ही सकता है। लेखक कहानी में केवल जीवन की स्थिति का चित्रण ही नहीं करता, जीवन की गति के साथ जीवन की प्रगति का भी चित्रण करता है। अभी तो उत्तरआधुनिकता ने सबको प्रभावित किया है। बीसवीं शताब्दी का अंतिम दशक हमारी सामाजिक व राजनीतिक स्थिति की दृष्टि से काफी उथल-पुथल का दशक रहा है। पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण, सांप्रदायिक शक्तियों का नए सिरे से उभार, आतंकवाद, राजनीतिक अपराधिकरण, उदारीकरण स्त्री और दलित जागरण, बाजार का बढ़ता हस्तक्षेप और इन सबके परिणाम स्वरूप हत्या, आत्महत्या जैसी घटनाओं ने हिंदी कथा साहित्य को सबसे अधिक प्रभावित किया। मैं यहां पर उत्तरआधुनिकता के आगे पर आधुनिकवाद, आल्टरमॉडर्निज्म की चर्चा नहीं करना चाहता, क्योंकि यह विषयांतर हो जाएगी, परंतु हमारा रचना संसार इससे प्रभावित होता जा रहा है। जब मनुष्य के रहन-सहन में परिवर्तन आने लगा है तो आज की कहानी भी तो उसके ही अनुरूप ही होगी। कहानी का मूल्यांकन करने वाले पाठक से बड़ा कोई नहीं हो सकता है, इसलिए पाठक ही कह सकता है कि कहानी को जीवन के साथ होना चाहिए या कहानी में जीवन होना चाहिए और तब वह जीवन के अनुभव का मिलान लेखक के अनुभव से कर सकता है और लेखक तो जीवन की स्थिति के चित्रण के साथ जीवन की गति का, जीवन की प्रगति का भी चित्रण करता ही है। हिमाचल में हिंदी साहित्य पर जितना कार्य हो रहा है वह दूसरे प्रदेशों से कम नहीं है। जो कार्य कभी भोपाल में होता आया था, वह अब हिमाचल में हो रहा है। इस प्रदेश के कुछ हिंदी कहानीकार शीर्ष के कहानीकारों के साथ कंधा मिलाने के साथ नए आयाम भी प्रस्तुत कर रहे हैं। यह क्रिया चंद्रधर शर्मा गुलेरी के समय से चली आ रही है। कमलेश्वर की समांतर कहानी, प्रगतिशील की जनवादी कहानी, राकेश वत्स की सक्रिय कहानी या यूं कहा जाए कि पिछली शताब्दी के सातवें दशक में जो हिंदी कहानी के आंदोलन चले थे, उसमें डा. सुशील कुमार फुल्ल का सहज कहानी आंदोलन भी राष्ट्रीय मंच पर चर्चित रहा। उनकी समकालीन कालजयी कहानियों ने हिमाचल में कहानी लेखन की स्थिति स्पष्ट हो जाती है।

गंगाराम राजी, बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं, बराबर साहित्य जगत में सक्रिय है। अतिथि संपादक


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App